For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1212 1122 1212 22

गरीब खाने तलक रोटियां नहीं जातीं ।

तेरे जहान से क्यूँ सिसकियाँ नहीं जातीं ।।

कतर रहे हैं वो पर ख्वाहिशों का अब भी बहुत।

नए गगन में अभी ,बेटियां नहीं जातीं ।।

वो तोड़ सकता है तारे भी आसमाँ से मग़र ।

मुसीबतो की ये परछाइयां नहीं जातीं ।।

यकीं करूँ मैं कहाँ तक जुबान पर साहब ।

लहू से आपके खुद्दारियाँ नहीं जातीं ।।

तमाम दे के रियायत हुजूर देख लिया ।

खराब कौम से गद्दारियाँ नहीं जातीं ।।

सियासतों का ये मंजर न पूछ अब हमसे ।

सियासतों से यहाँ खामियाँ नहीं जातीं ।।

नए निज़ाम से उम्मीद और क्या करना ।

चमन से आज भी दुश्वारियां नहीं जातीं ।।

नज़र का फेर था या फिर था हादसा कोई ।

दिलो दिमाग से रानाइयाँ नहीं जातीं ।।

न जाने क्या हुआ है आपकी निगाहों को ।

मेरे वजूद से रुस्वाइयाँ नहीं जातीं ।।

जरा सँभल के रहो दुश्मनों की फितरत से ।

मिले तो हाथ मगर खाइयां नहीं जातीं ।।

मैं भूल जाऊं सभी जख़्म कोशिशें हैं मेरी ।

मगर ज़िगर की ये मजबूरियां नहीं जातीं ।।

चले गए हैं मेरी जिंदगी से जब से वो ।

मेरे दयार से खामोशियाँ नहीं जातीं ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 29, 2018 at 9:18am

आ0 तेजवीर सिंह जी सप्रेम आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 29, 2018 at 9:14am

आ0 राम अवध विश्वकर्मा जी सप्रेम आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 29, 2018 at 9:00am

आ0 विजय निकोरे साहब तहे दिल से आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 29, 2018 at 8:59am

आ0 मुहम्मद आरिफ़ साहब तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 29, 2018 at 8:58am

आ0 सुरेंद्र नाथ सिंह कुश क्षत्रप जी सप्रेम आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 29, 2018 at 5:17am

आद0 नवीन जी अच्छी ग़ज़ल के लिए दिली मुबारकबाद। सादर

Comment by TEJ VEER SINGH on January 28, 2018 at 10:30pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी।बेहतरीन गज़ल।

नए निज़ाम से उम्मीद और क्या करना ।

चमन से आज भी दुश्वारियां नहीं जातीं ।।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 28, 2018 at 4:25pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है। बधाई

Comment by Mohammed Arif on January 28, 2018 at 7:52am

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,

                         बहुत कसे हुए अश'आरों से सजी ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के ब थ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
3 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
17 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service