For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बड़े होकर मैं - ( लघुकथा ) जानकी बिष्ट वाही

" ऐ भाई ... दे दे ना ..."
"फिर आ गया तू ! चल भाग यहाँ से।"
" भाई ! एक दे दे ना,तुमको तो रोज बहुत मिलता है।"
" तेरी समझ में नहीं आता? ये जगह बच्चों के लिए नहीं ... अरे ! अभी भी यहीं खड़ा है ? लगाऊँ क्या एक ?"
" भाई ! आप बहुत अच्छे हो !एक दे दो, फिर नहीं आऊँगा यहाँ ।" अब उस लगभग बारह साल के बच्चे ने मस्का लगाने की कोशिश की।
" बड़ा ज़िद्दी है।कौन - कौन है तेरे घर में ?"
" माँ,छोटी बहन और मैं ।"
" और तेरा बाप ?"
" वो तो हमें छोड़ कर चला गया।उसने दूसरी शादी कर ली।" अब उसकी आवाज़ में एक नफ़रत का भाव था।
" अच्छा ! स्कूल नहीं जाता तू ..."
" जाता हूँ ना भाई ! सुबह स्कूल,शाम को कूड़ा बिनता हूँ,माँ का हाथ बंटाने को।बस चल जाता है।"
उसने कनखियों से उस गुलाबी ढेर को देखते हुए कहा।
" अच्छा ले ले दोनों में से जो ठीक लगे।"
" भाई ! माँ पर ये रंग खूब अच्छा लगेगा।खुश हो जायेगी।रेशमी हैं ना।" उसने प्यार से उस गुलाबी साड़ी पर हाथ फेरा।
" पर तू माँ से क्या कहेगा,कि इसे कहाँ से लाया ?"
" सच बोलूंगा कि श्मशान से लाया हूँ।"
" माँ पहन लेगी क्या इसे?"
" हाँ पहन लेगी, उसकी साड़ी अब पहनने लायक नहीं रही । और बड़े होकर मैं इससे भी अच्छी खरीद कर दूंगा ना। ...आप बहुत प्यारे हो भाई!"
साड़ी बगल में दबाये वह, कुलांचे भरता वहाँ से भाग गया ।


जानकी बिष्ट वाही
मौलिक एवम् अप्रकाशित
नॉएडा-उत्तर प्रदेश

Views: 952

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 16, 2016 at 10:32pm
इस सूंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Janki wahie on December 16, 2016 at 1:23pm
दिल से आभार आ.कल्पना जी, कथा पर आपकी सुखद उपस्थिति उत्साह बढ़ाने वाली है।
Comment by Janki wahie on December 16, 2016 at 1:22pm
सादर हार्दिक आभार आ.नीता कसार जी, कथा पसन्द कर सार्थक टिप्पणी के लिए।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 15, 2016 at 11:01pm
अच्छी कथा आदरणीया जानकी जी । हार्दिक बधाई ।
Comment by Nita Kasar on December 15, 2016 at 9:22pm
बच्चा मासूम है पर उसे ज़िम्मेदारियों का अहसास है,संवेदनशील कथा के लिये बधाई आपको आद०जानकी वाही जी ।
Comment by Janki wahie on December 13, 2016 at 9:01am
आ गोपाल नारायण सर जी आपकी दो पंक्तियाँ मन मोह गई

सच बोलूंगा कि श्मशान से लाया हूँ,
बड़े होकर मैं इससे भी अच्छी खरीद कर दूंगा।
ऐ माँ तेरे आँचल की छाया रही तो,
आसमाँ को जीत कर लाऊंगा।
Comment by Janki wahie on December 13, 2016 at 8:56am
हार्दिक आभार आ.प्रतिभा जी , आप हमेशा कथा पर उपस्थित होकर मेरा उत्साहवर्धन करती है।इसी तरह हमेशा अपना नेह दीजियेगा।
Comment by pratibha pande on December 13, 2016 at 8:27am

मन को छू गई आपकी  रचना ....हार्दिक बधाई आपको इस सृजन के लिए आदरणीया जानकी जी .

Comment by Janki wahie on December 13, 2016 at 6:24am
सादर हार्दिक आभार आ, मिथिलेश सर जी, कथा पर उपस्थित कर हौसला बढ़ाने के लिए। कथा और वरिष्ठजनों की उपस्थिति बेहतर लेखन के लिए प्रेरित करती है।
Comment by Janki wahie on December 13, 2016 at 6:19am
हार्दिक आभार शहज़ाद जी।आपकी बात विचारणीय है।पहले इसका शीर्षक "साड़ी "रखा था।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service