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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२१ २१२१ १२२१ २१२

तुम मेरे नाम की पहचान बन गए
मेरे लिए ख़ुदा रब भगवान बन गए

दहशत के कारबार का सामान बन गए
लगता है सारे लोग ही हैवान बन गए

तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के
अब वो मेरे हदीस ओ क़ुरआन बन गए

हालात आज शहर के अब देखिये ज़रा
हँसते हुए थे शहर जो शमशान बन गए

ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के
ज़ाहिर हुए जहां पे तो दीवान बन गए

मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2014 at 5:12pm

अच्छी ग़ज़ल लिखी है आ० गुमनाम जी ,बस पहले शेर की प्रथम पंक्ति में थोड़ी सी गड़बड़ है आशा है उसे आप ठीक कर लेंगे ,बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए 

तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के

ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के---मिसरे करीब करीब एक जैसे हो गए एक में बदलाव करेंगे तो बेहतर लगेगी  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 25, 2014 at 2:03pm

तेरे सभी ख़तों को रखा था सँभाल के
अब वो मेरे हदीस ओ क़ुरआन बन गए........बहुत सुंदर. बधाई आदरणीय

Comment by gumnaam pithoragarhi on September 22, 2014 at 11:25pm

sir ek akshar miss ho gaya hai..........

आज .

तुम आज मेरे नाम की पहचान बन गए  -मेरे नाम की पहचान बन गए  -


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 22, 2014 at 8:44pm

आदरणीय गुमनाम भाई , बढ़िया गज़ल  कही है , आपको दिली बधाइयाँ |

तुम मेरे नाम की पहचान बन गए  --- मतले का उला बेबहर हो गया है  , देख लीजिएगा |

Comment by harivallabh sharma on September 22, 2014 at 8:21pm

हरेक शेर लाजबाब ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आदरणीय बधाई.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 22, 2014 at 11:23am

हँसते हुए थे शहर जो शमशान बन गए
वाह!!! क्या बात कही है आपने ?सोलह आने सच्च .बधाई आ ० गुमनाम पिथौरागढ़ी जी.

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 21, 2014 at 9:59pm
मेरा नाम एक नाम हो गया
जब से मेरा नाम
तेरे नाम के साथ जुड़ गया
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ,आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी , बधाई .
Comment by Santlal Karun on September 21, 2014 at 7:41pm

आदरणीय पिथौरागढ़ी जी,

खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! 

"ख़त आंसू सूखे फूल रखे थे सँभाल के
ज़ाहिर हुए जहां पे तो दीवान बन गए"

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