For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1
न्याय पर जनतंत्र जन कल्याण पर,
अर्थ अवसरवाद का चेहरा लगा है/
रोशनी सर्वत्र जाने में विवश है,
बादलोँ का सूर्य पर पहरा लगा है/
2
तुम अँधेरे पंथ पर क्यों चल रहे,
रोशनी के जाल हमने तिर दिये हैं/
रह गई जो कालिमा दीपक तले,
उन अँधेरोँ से तो दीपक पल रहे हैं/
3
नीँद उड़ती जा रही है,रात रिसती रह गई/
धार में नौका ना जाने किस दिशा को गह गई/
उड़ गये बादल छलक पाताल का पानी गया,
फिर बिगड़ते सन्तुलन की बात धरती कह गई/
4
कहीं रूपसि की रुपहली अवनिकायें तिर रहीं हैं/
चादरें पर्यावरण की गंदगी से घिर रही हैं/
तप भगीरथ फिर तेरी भागीरथी में,
नालियाँ गंदे शहर की गिर रही हैं

(मौलिक और अप्रकशित)

Views: 542

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 3, 2014 at 8:51pm

बादलों पर सूर्य का पहरा लगा है ! बहुत खूब !

अच्छे अर्थवान और प्रभावी मुक्तकों के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय. 

धार में नौका ना जाने किस दिशा को गह गई..  ना की जगह न को किया जाय तो इस पद को सधा हुआ देखा जा सकता है. 

शिल्प के लिहाज से अंतिम मुक्तक को एक बार फिर देखना हो सकता है.

सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 29, 2014 at 11:41am

बहुत सुन्दर मुक्तक

अफ़सोस, भागीरथ फिर एक नयी गंगा अवश्य ला  सकते है  पर इस गंगा के प्रदूषण मुक्त करने में वे विरथ है i

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 29, 2014 at 11:04am

नीँद उड़ती जा रही है,रात रिसती रह गई/
धार में नौका ना जाने किस दिशा को गह गई/
उड़ गये बादल छलक पाताल का पानी गया,
फिर बिगड़ते सन्तुलन की बात धरती कह गई/----वाह ! सुन्दर मुक्तक रचना हुई है | ऐसा जीवन में होता रहता है और इसी से जीवन में भटकाव के कारण लक्ष तक पहुचने में देरी होने का कारण होता है | अनुपम भाव मुक्तक के लिए बधाई श्री प्रेम नारायण दीक्षित जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 28, 2014 at 10:56pm
आदरणीय पं प्रेम नरायन दीक्षित जी , बहुत सुन्दर रचना, इतनी सुन्दर कि मन बहुत कुछ बोल जाता है, जैसे :
न्याय स्वयं होता नहीं
एक न्यायकर्ता चाहिए
दिशाशून्य जनतंत्र को
मुक्त जीवन चाहिए
*****************
हम अँधेरे में चल रहे हैं
इस विशवास के साथ
कि अंधेंरे को अँधेरे से
मिट जाना चाहिए
***************
नसों में रक्त बहता रहे ,
रुके नहीं , जीवन चलता है .
शहर की नालियों में पानी ,
बहता रहे , रुके नही.
शहर चलता रहता है .
शहर की आब-ओ- हवा अच्छी
रहे , शह्‌र खुश रहता है.
पर ये हमको कहाँ
समझ में आता है
हमें तो इसके लिए भी
एक भगीरथ चाहिए.
इस सारगर्भित रचना के लिए सादर बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service