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थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला

ज़माने को सरल सीधे , नहीं चेहरे सुहाते है 
हैं अब दर्पण वही जिनको , नहीं श्रृंगार भाते हैं 

 
कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है 

वही अब शख्स है मशहूर हर महफ़िल में देखा है 
जिसे बस झूठ और साजिश के सब व्यौहार आते हैं 
 
उसे मंज़ूर कब होंगी फरेब और झूट की दौलत 
वो बन्दा है सच्चाई का , उसे इनकार आते हैं  
 
भला उम्मीद की अंगुली कभी मै छोड़ कैसे दूँ  
मै गिरता हूँ , उठाने को , तेरे ऐतबार आते है 
 
 
थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला 
बड़ी किस्मत से जीवन में "अजय" इतवार आते हैं 
 
मौलिक & अप्रकाशित 
अजय कुमार शर्मा

 

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 4:04pm
क्या बात है वाह वाह 
और मक्ते ने तो लूट लिया साहब
ढेरों बधाई क़ुबूल करें 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 15, 2013 at 12:07pm

वाह अजय शर्मा जी क्या कहने इस ग़ज़ल के हर शेर जबरदस्त है जिसने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो है --

कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है.------वाह इस ग़ज़ल के लिए दाद कबूल कीजिये 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2013 at 11:30am

कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का
मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है... क्या बात है ! बहुत खूब !!

उसे मंज़ूर कब होंगी फरेब और झूट की दौलत 
वो बन्दा है सच्चाई का , उसे इनकार आते हैं  ......  सही बात-सही बात !  मगर झूट या झूठ ?
 
लेकिन जिस बंद ने मुतास्सिर किया वह इस ग़ज़ल का मतला है -
थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला 
बड़ी किस्मत से जीवन में "अजय" इतवार आते हैं ... वाह भाई वाह !
 
अच्छी ग़ज़ल सुनाने के लिए आपको बधाई.
 
Comment by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 11:15pm

वही अब शख्स है मशहूर हर महफ़िल में देखा है 
जिसे बस झूठ और साजिश के सब व्यौहार आते हैं..................सुन्दर,

बढ़िया गजल आदरणीय अजय जी बधाई स्वीकारें.

Comment by विवेक मिश्र on January 14, 2013 at 6:10pm

बेहतरीन मकता. हार्दिक बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on January 14, 2013 at 5:36pm

बधाई इस प्रस्तुति पर ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 14, 2013 at 4:07pm

//

कभी सौगंध पर इक , था चलन सौ बार मरने का 

मगर अब इक कसम निभती नहीं सौ बार खाते है
//

बहुत खूब आदरणीय अजय जी, बेहतरीन शेर कहा है , सुन्दर कहन ।

//थकन से चूर मुझसे एक दिन सप्ताह ने बोला 

बड़ी किस्मत से जीवन में "अजय" इतवार आते हैं //
क्या कहने , बिल्कुल नया ख्याल , उम्दा मकता , अच्छी ग़ज़ल कही है, बधाई स्वीकार करें ।

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