For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छन्न पकैया-छन्न पकैया,छन्न के ऊपर बिंदी

भाषायों की पटरानी है, अपनी माता हिंदी.(१)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, बात नहीं ये छोटी
भरे देश के जो भंडारे, उसको दुर्लभ रोटी. (२)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पके की हंडिया
भारत जिंदा रहा अगर जो, तभी बचेगा इंडिया. (३)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, कैसा गोरख धंधा
हर किसान के सर पे लटका है कर्जों का फंदा. (४)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, मन में ये अभिलाषा
बढ़ते जाएँ भारतवासी, भूल धर्म ओर भाषा. (५).
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न के नीचे रोली
नफरत की भाषा को छोडो, बोलो मीठी बोली. (६)  
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, ये तोहफा भी देना
घर में घुस पटको कंगारू, ओ धोनी की सेना. (७)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पकाए फलियाँ
शहरों की सड़कों से सुंदर, मेरे गाँव की गलियाँ. (८)  

.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, पड़े अक्ल पे ताले
करें निराले रोज़ घोटाले, अपने कुर्सी वाले (९)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, बात यही है जानी .
देख देख हमको जलते हैं, चीनी पाकिस्तानी. (१०)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया- छन छना छन छन्ना
भ्रष्टाचारी थरथर कांपें, जब हुंकारे अन्ना.  (११)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पकाए रागी
ओबीओ बगिया को सींचे, अपने खून से बागी. (१२)

Views: 805

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on July 29, 2015 at 6:09pm
छन्न पकैया-छन्न पकैया,छन्न के ऊपर बिंदी
भाषायों की पटरानी है, अपनी माता हिंदी....
कितनी सुंदर है यह छन्न पकैया... प्रत्येक पंक्ति देशप्रेम के रस में पगी हुई है.. आपकी हर रचना की तरह ही ये रचना भी हृदय को छूकर निकलती है..
.नमन सर जी बारम्बार आपको.
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 17, 2012 at 11:08pm

छन्न पकैया-छन्न पकैया- छन छना छन छन्ना 
भ्रष्टाचारी थरथर कांपें, जब हुंकारे अन्ना.  (११)
.
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पकाए रागी
ओबीओ बगिया को सींचे, अपने खून से बागी. 

प्रिय प्रभाकर जी ये भी खूब रही ..पूरे मैदान में आप ने चौका छक्का  लगाया ..दे घुमा कर ..रंग दे वासंती चोला ..हर विषय बहुरंगी 

छन्न पकैया  छन्न पकैया  कवि लेखक बहुरंगी 
लाल जो ऐसे भारत माँ के कभी न होगी तंगी 
भ्रमर ५ 


Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2012 at 9:50pm

छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पकाए फलियाँ
शहरों की सड़कों से सुंदर, मेरे गाँव की गलियाँ.

सर बहुत खूब....एक से बढ़ कर एक है......बधाई..स्वीकार करे

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 2, 2012 at 2:40pm

छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पकाए रागी
ओबीओ बगिया को सींचे, अपने खून से बागी. 

adarniya prabhakar ji. kya baat hai. sundar prastuti. badhai.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 5:56pm

महिमा जी, रचना पसंद करने के लिए धन्यवाद. आशा है कि जल्द ही आपकी छंद आधारित रचनाये पढने को मिलेंगी. 

Comment by MAHIMA SHREE on March 3, 2012 at 5:46pm
छन्न पकैया-छन्न पकैया, छन्न पकाए फलियाँ
शहरों की सड़कों से सुंदर, मेरे गाँव की गलियाँ.

सर बहुत खूब....एक से बढ़ कर एक है......बधाई..स्वीकार करे..
Comment by MAHIMA SHREE on March 3, 2012 at 5:38pm
माननीय योगराज सर,

नमस्कार,बहुत-2 धन्यवाद आपने इतनी जोरदार मेरी कविताओ की सराहना किया, पसंद की और मुझे छद मे लिखने के लिए उत्साहित किया..सर मैने बचपन से जो मन मे भाव उठे उसे ही लिखते आई हूँ कभी सोचा नही कौन सी शैली अपनानी है, कौन शैली मे लिखनी है...पर आज आप प्रबुधजन का ऐसा मानना है तो कोशिश करूँगी...पर छद के नियम जानेने पडेग....अभारी हूँ......

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 22, 2012 at 12:10pm

भाई नीरज जी, गनेश लोहानी जी, एवं भाई अरुण कुमार पाण्डेय अभिनव जी, आपके उत्साहवर्धन का बहुत बहुत शुक्रिया.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 22, 2012 at 12:07pm
मेरे प्रयास को सराहने के के लिए ह्रदय से आभार आदरणीय सीमा अग्रवाल जी.  इस मृत प्राय: विधा को पुन: सुरजीत करने का गौरव भी ओबीओ को ही हासिल है. आपने सही कहा, धोनी की सेना ने तो वाकई नंबर सात के छंद का जलूस ही निकाल दिया.   

Comment by Abhinav Arun on December 23, 2011 at 8:55am

बहुत खूब इस छन्न पकैया ने कई राज़ खोल दिए कई विन्दुओं पर सार्थक टिप्पणी और व्यंग्य किया बधाई और शुभकामनाएं !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
17 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service