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कह रहे हैं जब सभी तुम भी कहो..( ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

2122 2122 212

कह रहे हैं जब सभी तुम भी कहो
आँख मूँदो आम को इमली कहो

बोलते हो झूठ लेकिन एक दिन
आइने के सामने सच ही कहो

कौन रोकेगा तुम्हें कहने से अब
तुम ज़हीनों को भी सौदाई कहो

कैसे कहता कह न पाया आज तक

दोस्तों को जब कहो बैरी कहो

वो नहीं कहता है तू भी कह नहीं
जब कहे हाँ तुम भी तब हाँ जी कहो

वो बने हैं एक दूजे के लिए
दोस्तों उनको दिया बाती कहो

कह नहीं पाया मैं जब उसने कहा
जो भी कहना है तुम्हें जल्दी कहो

*मौलिक एवं अप्रकाशित.

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Comment by सालिक गणवीर on September 23, 2020 at 6:42pm

आदरणीय समर कबीर साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिये ह्रदय तल से आभार. नया मतला कहने की कोशिश करता हूँ और दोनों अश'आर भी. सादर.

Comment by Samar kabeer on September 23, 2020 at 11:55am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'कल कहा था आज भी कल भी कहो
आम को हर बार ही इमली कहो'

मुझे मतले के दोनों मिसरों में रब्त नज़र नहीं आया,और ऊला में वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं लगा, 'कल भी कहो' 'कल भी कहना' सहीह होगा,लेकिन आपके रदीफ़ क़ाफ़िये का सवाल है, मतला दूसरा कहने का प्रयास करें ।

'हम ग़ुलामों की तरह पेश आएँगे

आप जिसको हुक्म की रानी कहो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ,देखियेगा ।

'ज़िंदगी बदलेगी रातों - रात फिर
मत कभी कहना नहीं हाँ जी कहो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,क्या कहना चाहते हैं ?

'दोस्तों उनको दीया बाती कहो'

इस मिसरे में 'दीया' को "दिया" कर लें, बह्र गड़बड़ हो रही है ।

Comment by सालिक गणवीर on September 19, 2020 at 8:46pm

भाई हर्ष महाजन जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभार.

Comment by Harash Mahajan on September 19, 2020 at 9:59am

आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब । अच्छी पेशकश हेतु बधाई स्वीकार करें ।

सादर ।

Comment by सालिक गणवीर on September 18, 2020 at 10:10pm

भाई लक्षण धामी 'मुसाफ़िर' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.

Comment by सालिक गणवीर on September 18, 2020 at 10:08pm

आदरणीय निलेश शेगाँवकर साहेब

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए बहुत आभार .सही कहा आपने, ही की बजाय तुम  करुँ तो?

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 18, 2020 at 7:34pm

आ. सालिक गणवीर जी,
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ नए आयाम भी हैं.. बधाई..
मतले के सानी में "ही" भर्ती का लग रहा है.. कुछ और कर सकें तो देखें..
थोडा बहुत फाइन ट्यून एक दो शेरोन में भी किया जाए तो ग़ज़ल और निखर उठेगी 
सादर 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2020 at 6:46pm

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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