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खो बैठे जब होश

बड़े-बड़े देखे यहाँ

कुटिल , सोच में खोट

मर्यादा की आड़ ले

दें दूजों को चोट

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सुन्दर, सरल , स्वभाव

यदि सन्मुख हों तो बहे

सरस प्रेम रस भाव

कलियुग इसको ही कहें

चाटुकारिता भाय

तज कर अमृत का कलश

विष-घट रहा सुहाय

गिनें , गिनाएँ , फिर गिनें

नित्य पराए दोष

एक न अपने में दिखे

खो बैठे जब होश

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

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Comment by Usha Awasthi on July 2, 2020 at 10:04am

आ. हार्दिक धन्यवाद आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 2, 2020 at 9:43am

“ कलियुग इसको ही कहें ” समयानुकूल प्रस्तुति , आदरणीय सुश्री उषा अवस्थी जी , बधाई , सादर।

Comment by Usha Awasthi on July 1, 2020 at 6:47pm

   आ. हार्दिक आभार  आपका

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2020 at 5:21pm

आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Usha Awasthi on June 24, 2020 at 4:29pm

आदाब ,  हार्दिक धन्यवाद आपको

Comment by Samar kabeer on June 24, 2020 at 2:49pm

मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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