Added by Usha Awasthi on July 11, 2022 at 11:11pm — No Comments
कुछ उक्तियाँ
उषा अवस्थी
आज 'गधे' को पीट कर
'घोड़ा' दिया बनाय
कल फिर तुम क्या करोगे
जब रेंकेगा जाय?
कैसे - कैसे लोग है
कैसे - कैसे घाघ?…
Added by Usha Awasthi on July 6, 2022 at 3:30pm — No Comments
सब एक
उषा अवस्थी
सत्य में स्थित
कौन किसे हाराएगा?
कौन किससे हारेगा?
जो तुम, वह हम
सब एक
ज्ञानी वही अज्ञानी भी वही…
Added by Usha Awasthi on July 3, 2022 at 6:56pm — No Comments
सत्य
उषा अवस्थी
असत्य को धार देकर
बढ़ाने का ख़ुमार हो गया है
स्वस्थ परिचर्चा को
ग़लत दिशा देना
लोगों की आदत में
शुमार हो गया है।
असत्य के महल खड़े कर
खिल्ली मत उड़ाओ
अनेकानेक झूठ को
सत्य से,धूल चटाओ
शास्त्र वाक्यों को दोराकर
अभिमान मत जताओ
कर्म में परिणित करो
व्यर्थ मत,समय गँवाओ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 1, 2022 at 7:05pm — 2 Comments
कलम की धार
सशक्त हथियार
चौबीसों घण्टे
चलता व्यापार
निष्पक्ष समाचार
बुराई पर वार
सम्भावित, हर लम्हा
तलवार की धार…
Added by Usha Awasthi on May 29, 2022 at 5:30pm — 2 Comments
पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति अविचल,अपरिमित,
अव्याख्येय वसन्त
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 6, 2022 at 12:37pm — 6 Comments
विरहणी; भाई ,पति का
संदेश तुम्ही से कहती थी
अपने भावों को पहुँचाने
तुम्हे निहोरा करती थी
स्वर्ण रश्मियों की डोरी से
चन्द्र उतर कर तुम आते
तपते मन के ज़ख़्मों पर…
Added by Usha Awasthi on March 24, 2022 at 11:05am — 2 Comments
मन की कारिख धोई कै, प्रेम रंग चटकाय
मोद सरोवर डूबिए, काम, क्रोध विलगाय
पाप ताप की होलिका जब जारै कोई बुद्ध
प्रकटै तब आह्लाद संग नित्य, मुक्त जो शुद्ध
ज्ञानाग्नि में दहन कर , सभी शुभ अशुभ कर्म
होली हो वैराग्य की, जाने सत का…
Added by Usha Awasthi on March 16, 2022 at 11:50pm — 8 Comments
कैसे अपने देश की
नाव लगेगी पार?
पढ़ा रहे हैं जब सबक़
राजनीति के घाघ
जिनके हाथ भविष्य की
नाव और पतवार
वे युवजन हैं सीखते
गाली के अम्बार
अपने को कविवर समझ
वाणी में विष घोल
मानें बुध वह स्वयं को
उनके बिगड़े बोल
वेद , पुराण, उपनिषद
सत्य सनातन भाष्य
समझ सके न आज भी
साल पचहत्तर बाद
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on January 24, 2022 at 10:18am — 4 Comments
एक साथ यदि सारी दुनिया
क्वारन्टाइन हो जाए
सदा सर्वदा दूर संक्रमण
जग से निश्चित ही जाए
प्रलयंकारी अस्त्र-शस्त्र
ग़र सभी साथ में नष्ट करें
सारे देश सम्मुनत, हर्षित
सर्व सुखों का भोग करें
वन उपवन से प्रकृति सुसज्जित
मानव का कल्याण करे
नित नवीन होता परिवर्तन
सुखद, सात्विक मोद भरे
सकल विश्व का मंगल तय तब
चँहु दिशि व्यापे खुशहाली
सुन्दर पर कल्पित, सपना है
यह पुलाव तो है…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 2, 2022 at 11:31am — 3 Comments
सब धर्मों का सार जो
वह तो केवल एक
बाह्य रूप दिखता अलग
परम चेतना एक
फैलाते भ्रम व्यर्थ ही
जो विवेक से शून्य
वे मतिभ्रष्ट, विवेकहीन
उन्हे चढ़ा अहमन्य
हुए विषमता से परे
जिन्हे सत्य का बोध
गुण-अवगुण से हो विलग
नित्य बसे मन मोद
प्रकृति और चैतन्य का
आपस का संयोग
उस दर्पण में फलीभूत
हो ज्ञानी का योग
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on November 3, 2021 at 6:44am — 3 Comments
ऊँचे तो वही उठ पाएंगे
जो सत्य की गहराई
झूठ का उथलापन
जान जाएंगे
जो सत्य को कमजोर समझते
विनम्रता का तिरस्कार करते
वैराग्य का उपहास उड़ाते हैं
वह बुद्धि बल से पंगु
अपनी दुर्बलता छिपाते हैं
जो सत्य को तोड़ते, मरोड़ते हैं
वे साहित्यकार नहीं
चाटुकार होते हैं
दिन कहाँ समान रहते हैं?
सत्य है, आज इसकी
कल उसकी झोली भरते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on October 27, 2021 at 10:36pm — 10 Comments
खाली हो गई हूँ
इच्छाओं से, आशाओं से
व्यर्थ विचारों से
निरर्थक प्रवाहों से
अस्थिर लगावों से
अनर्गल खिंचावों से
आधुनिक चकाचौंध से
कौन जाने, मौत
कब दरवाजा खटखटा दे
साथ ले जाने को
किन्तु वह क्या साथ
ले जा पाएगी ?
वह तो पंच तत्वों में
तन को मिलाएगी
मुझे ना मार पाएगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on September 16, 2021 at 10:59pm — 6 Comments
जिजीवषा जो इन्सा की
वह नहीं कभी भी हारेगी
जन-जन तक पहुँचाने सुविधा
अपने श्रम बल को वारेगी
उत्पाती कोरोना की यह
सघन श्रृंखला टूटेगी
जकड़न से पाश मुक्त होकर
मानवी हताशा छूटेगी
गहन बुद्धि अन्वेषण से
वैज्ञानिक युक्ति निकालेगा
निर्मित कर अचूक औषधियाँ
इसको तो जड़ से मारेगा
भय जाएगा मन से समूल
कीटाणु सर्वदा हारेगा
मास्क, शुद्धता, शारीरिक
दूरी का भूत…
ContinueAdded by Usha Awasthi on September 8, 2021 at 9:58pm — 4 Comments
झाड़ू -पोंछा कर रही
अन्तर में अनुराग
स्वस्थ रहें सब, उल्लसित
हृदय भैरवी राग
दाल, सब्जियाँ पक रहीं
उफन रही है प्रीत
क्यों ना खा सब तृप्त हों?
जब पवित्र मन मीत
चकले पर रोटी बिली
तवे पकाया प्यार
उमग खिलाती प्रेम से
गृहणी नेह सम्हार
बरतन हैं जब मँज रहे
सृजन हो रहा गीत
ताल बद्ध , लय बद्ध हो
बजता नव संगीत
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 22, 2021 at 8:30pm — 6 Comments
पृथ्वी सम्हलती नहीं
मंगल सम्हालेंगे
यहाँ ऑक्सीजन नष्ट की
वहाँ डेरा डालेंगे
बहुत मनाईं देवियाँ
बहुत मनाए देव
कर्म-लेख मिटता कहाँ ?
भाग्य लिखा सो होय
बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं
समस्त जीवन के अनुभवों की
अलिखित किताब होते हैं
बुज़ुर्ग बेमिसाल होते हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on May 3, 2021 at 8:04pm — No Comments
कौन आँसू पोंछे , कौन सान्त्वना दे ?
स्वजन की मौत पर अकेले ही रोए हैं
आतंकी कोरोना के, मुश्किल हालातों में
स्वयं सांत्वना दी , स्वयं नेत्रनीर धोए हैं
ना ही चेहरा देखा , ना मरघट जा पाए
कैसी विडम्बना ; जो मन को झुलसाए
संचित स्मृतियों को , प्रेमपूर्ण भाव में
सजा लिया है अपने अन्तर के गाँव में
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 28, 2021 at 4:00pm — No Comments
आशाओं , आकांक्षाओं की
जीवन की और प्रतिभाओं की
इस लोकतन्त्र के मन्दिर में
बलि नित्य चढ़ाई जाती है
कोरोना की महमारी में
त्रासद स्थिति, लाचारी में
लाशों पर राजनीति करके
जनता भरमाई जाती है
जिस समय मुसीबत ने घेरा
चँहु ओर काल का है डेरा
वीभत्स घड़ी में आन्दोलन
रैली करवाई जाती है
नज़रें गड़ाए सब वोटों पर
टिकती निगाह बस नोटों पर
शासन में भागीदारी की
कामना जगाई जाती…
ContinueAdded by Usha Awasthi on April 24, 2021 at 9:47am — 4 Comments
कैसी फ़ितरत के लोग होते हैं ?
दूसरे की आँखों में धूल झोंकने हेतु
नम्बर वही मोबाइल पर
नाम कुछ और जोड़ लेते हैं
दुर्जनों के दुर्वचन
सहिष्णुता की परख होते हैं
अपनी नहीं खुद उनकी
औक़ात बता देते हैं
उनकी माँ नहीं थीं, मेरे पिता
वे मुझमें माँ ढूँढते रहे,मैं उनमें पिता
उन्हे ना माँ मिलीं, ना मुझे पिता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on April 16, 2021 at 10:43am — 4 Comments
बच्चे सरायों में नहीं
घरों में पलते हैं
व्यक्तित्व आया से नहीं
माँओं से बनते हैं
कितनी जल्दी लोग
पाला बदल लेते हैं
आज गँठजोड़ किसी से
कल,किसी और से कर लेते हैं
क्या कहें वक्त के सफ़र को हम
जहाँ निजता की चाह होती है
एक ही घर के बन्द कमरों में
अब,मोबाइल से बात होती है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on March 6, 2021 at 1:25am — 8 Comments
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