For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है कोई आरज़ू का क़त्ल जो करना चाहे(९९ )

( 2122 1122 1122 22 /112 )

है कोई आरज़ू का क़त्ल जो करना चाहे

कौन ऐसा है जहाँ में कि जो मरना चाहे

**

तोड़ देते हैं ज़माने में बशर को हालात

अपनी मर्ज़ी से भला कौन बिखरना चाहे

**

आरज़ू सबकी रहे ज़ीस्त में बस फूल मिलें

ख़ार की रह से भला कौन गुज़रना चाहे

**

ज़िंदगी का हो सफ़र या हो किसी मंज़िल का

बीच रस्ते में भला कौन ठहरना चाहे

**

देख क़ुदरत के नज़ारे है भला कौन बशर

जो कि ये रंग नज़र में नहीं भरना चाहे

**

प्यार वो कश्ती है जिस पर जो चढ़ा है इक बार

कौन है ऐसा जो फिर उस से उतरना चाहे

**

जिस परिंदे ने फ़लक देख लिया चाहे क्यों

उसके सय्याद कोई पंख कतरना चाहे

**

आतिश-ए-ग़म की तलब कौन जहाँ में करता

हर कोई ज़ीस्त में खुशियों का ही झरना चाहे

**

अपनी मर्ज़ी से चुने कौन शब-ए-हिज्र 'तुरंत'

कौन है मीत से जो वस्ल न करना चाहे 

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1245

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on May 15, 2020 at 9:47am

आद0 गिरधर सिंह गहलोत जी सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल कही आपने। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 14, 2020 at 11:30pm

आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर "  साहेब , आपको कुछ नजीरें पेश कर रहा हूँ --

जो एक पल को बुझे बज़्म-ए-रंग-ओ-बू के चराग़

तो हम ने दार पे रौशन किए लहू के चराग़

हवा-ए-तीरा-नसब क्या बुझा सकेगी उन्हें

कि आंधियों में भी जलते हैं आरज़ू के चराग़

अदा-ए-मौसम-ए-गुल का कमाल क्या कहिए

कली कली से फ़रोज़ाँ हुए नुमू के चराग़

बुझी जो सुब्ह तो सीनों में दिल जलाए गए

हुई जो शाम तो रौशन हुए सुबू के चराग़

ये नक़्श-ए-पा हैं मिरे या सवाद-ए-मंज़िल तक

क़दम क़दम पे नुमायाँ हैं जुस्तुजू के चराग़

कभी कभी तो 'ज़िया' वो भी वक़्त आता है

बुझाने पड़ते हैं ख़ुद अपनी आरज़ू के चराग़

---अब्दुल क़वी ज़िया

दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें

सैलाब-ए-अश्क-ओ-आह पे बुनियाद क्या करें

करना है बन को ताज़ा निहालों की देख भाल

बीती हुई बहार को वो याद क्या करें

हाँ जान कर उमीद की मद्धम रखी है लौ

अब और पास-ए-ख़ातिर-ए-नाशाद क्या करें

संगीं हक़ीक़तों से कहाँ तक मलूल हों

रानाई-ए-ख़याल को बरबाद क्या करें

देखो जिसे लिए है वो ज़ख़्मों की काएनात

हम एक अपने ज़ख़्म पे फ़रियाद क्या करें

रिंदों की आरज़ू का तलातुम कहाँ से लाएँ

आसूदगान-ए-मसनद-ए-इरशाद क्या करें

किस को नहीं सुकून की ख़्वाहिश जहान में

उफ़्तादगान-ए-रहगुज़र-ए-बाद क्या करें

जो हर नज़र में ताज़ा करें मय-कदे हज़ार

सच है 'सुरूर'-ए-रफ़्ता को वो याद क्या करें

--आल-ए-अहमद सूरूर

गले से देर तलक लग के रोएँ अब्र-ओ-सहाब

हटा दिए हैं ज़मान-ओ-मकाँ के हम ने हिजाब

लहद की मिट्टी की तक़दीर की अमान मैं दूँ

सफ़ेद लट्ठे में कफ़ना के सुर्ख़ शाख़-ए-गुलाब

मैं आसमान तिरे जिस्म पे बिछा देता

मगर ये नील में चादर बनी नहीं कमख़ाब

तिरा वो रातों को उठ कर सिसक सिसक रोना

लहू में नींद की टीसें पलक पे इज्ज़ के ख़्वाब

तिरे जलाए दियों में भड़कती आग का फेर

ज़मीं की रेहल पे रक्खे रौशनी की किताब

हवा बहिश्त के बाग़ों की ज़ुल्फ़ ज़ुल्फ़ फिरे

तिरी लहद तिरे बालीं के गर्द जू-ए-शराब

कमान खींच ज़माने की सू-ए-सीना-ज़नाँ

फ़र्क़-ए-नाज़ गले से उतार तौक़-ए-ग़याब

मैं एक यख़-ज़दा माथे को चूम कर दम-ए-सुब्ह

तिरी ज़मीनों से गुज़रूँगा जहान-ए-ख़राब

मशक़्क़ती हैं तिरे काख़-ओ-कू-ए-हिज्र के हम

कार-ख़ाना-ए-अफ़्लाक-ओ-ख़ाक-ओ-आब-ओ-सराब

ये तंग-ओ-तार-गढ़ा नूर से भरे 'आमिर'

सदा रहे तेरे हुजरे में हाला-ए-माहताब

--आमिर सुहैल

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 14, 2020 at 11:09pm

जी बेहतर। 

मेरी जानकारी भी बहुत कम है, इसलिए इस पर उस्ताद ए मुहतरम जनाब समर कबीर साहब

से गुज़ारिश है कि वो मेरी जानकारी को अपने इल्म की रौशनी से मअ़मूर फरमाएं। सादर। 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 14, 2020 at 10:31pm

आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर  साहेब , आदाब ,आपकी हौसला आफ़जाई के लिए दिल से शुक्रिया | जहाँ तक मेरी जानकारी हैं ,इन दोनों अशआर में आख़िरी लफ़्ज़ बह्र में गिना नहीं जाता | पूरी की पूरी ग़ज़ल हर पंक्ति में अंतिम अक्षर को कम करके कही जाती है --

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 14, 2020 at 8:59pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी 'तुरंत ' आदाब । अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें।

तोड़ देते हैं ज़माने में बशर को हालात   और

अपनी मर्ज़ी से चुने कौन शब-ए-हिज्र 'तुरंत'   इन दोनों मिसरों का आख़िरी लफ़्ज़ बह्र में नहीं है। देखियेगा। सादर। 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 14, 2020 at 3:33pm

आदरणीय TEJ VEER SINGH जी , आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 14, 2020 at 3:32pm

भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2020 at 10:03am

आ. भाई गिरधारी सिंह जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 14, 2020 at 9:41am

हार्दिक बधाई आदरणीय  गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत जी। बेहतरीन गज़ल।

प्यार वो कश्ती है जिस पर जो चढ़ा है इक बार

कौन है ऐसा जो फिर उस से उतरना चाहे

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on May 13, 2020 at 3:38pm

आदरणीय Samar kabeer  साहेब ,आदाब , आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |  आपकी दोनों ही बातें सही है , प्रयास करूँगा सही करने का | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
16 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
23 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service