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मानन्द-ए-ज़माना अभी  शातिर नहीं हैं हम(१०० )

( 221 1221 1221 122 )

.

मानन्द-ए-ज़माना अभी  शातिर नहीं हैं हम

लोगों की तरह झूठ के नासिर नहीं हैं हम 

**

नफ़रत के अलमदार ये अच्छे से समझ लें

ये मुल्क हमारा है मुहाज़िर नहीं हैं हम

**

हम सिर्फ़ मुहब्बत को समझते हैं इबादत

बस  यार ख़ुदा अपना है काफ़िर नहीं हैं हम

**

जो दिल में रहे अपने वही रहता लबों पे 

पोशीदगी-ए-राज़ में माहिर नहीं हैं हम

**

दिखते  हैं अगर रुख़  पे तबस्सुम के मनाज़िर

ग़ायब करें ग़म ऐसे भी साहिर नहीं हैं हम

**

होते हैं फ़क़त क़ैद मुहब्बत के क़फ़स में

दानों पे जो ललचाये वो ताइर नहीं हैं हम

**

गिर्दाब से बाहर को निकलना हैं गए सीख

मौजों से भी अनजान मुसाफ़िर नहीं हैं हम

**

हालात से कुछ ऐसे सबक़ सीखे हैं हमने

ग़म हो कि ख़ुशी होते मुतअस्सिर नहीं हैं हम

**

सौदा न हमारा करें हरगिज़ यूँ 'तुरंत'आप

इंसान हैं सोना कि जवाहिर नहीं हैं हम

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

मौलिक व अप्रकाशित

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