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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (496)

यहाँ बाँध घन्टी गले दीप के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



१२२ १२२/ १२२/१२

जिन्हें भाव जग में खले दीप के

वही  कहते  आरे  चले  दीप के।१।

*

यहाँ बाँध  घन्टी  गले दीप के

तमस जी रहा है तले दीप के।२।

*

बहुत लोग भटके यहाँ साँझ को

नहीं एक  हम  ही  छले  दीप के।३।

*

चले है तमस  यूँ  दिखा आँख जो

लगे सब को अब दिन ढले दीप के।४।

*

कहाँ कब जले घर नहीं है पता

इरादे  कहाँ  अब  भले  दीप के।५।

*

परायों से बढ़ आज अपनो से भय

न बाती ही  कालिख …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 28, 2024 at 2:42pm — No Comments

अँधेरे उजाले मिले प्यार से- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२



अँधेरे    उजाले    मिले   प्यार   से

चकित है मनुज उनके व्यवहार से।१।

*

नहीं काम  आता  किसी  के कोई

मिटे  दुख  भला   कैसे  संसार  से।२।

*

हटा मैल मन का तनिक भी नहीं

नहा कर चले  नित्य  हरिद्वार से।३।

*

न बदला है  कोई  किसी के कहे

जो बदला स्वयं अपने आचार से।४।

*

अकेले न  तुम  हो  असंतुष्ट अब

हमें भी तो शिकवा है दो चार से।५।

*

शिखर चाहते   हैं  सजाना बहुत…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2024 at 11:14pm — No Comments

जाते वर्ष के दोहे

करुण  रुदन  करता  नहीं, कोई  जाता देख

चाहे लिखता वो रहा, हर दिन सुख का लेख।१।

*

कैसे मुख अब फेर  लूँ, मन में लिए सवाल

इस से भी बदतर कहीं, ना हो आगत साल।२।

*

यादें छोड़ तमाम फिर, गया और इक वर्ष

लाभ हानि का लोग क्यों, करते हैं निष्कर्ष।३।

*

स्वागत को हर्षित  हुए, करें  विदा तो हर्ष

क्या बोलूँ अब मैं भला, कैसा था यह वर्ष।४।

*

साथ समय के नित जिसे, कोसा दसियों बार

वही  बिछड़ते  दे   रहा,  नया  साल  उपहार।५।

*

नये …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 10:00pm — No Comments

दिल तो बेचैन उस की बातों से- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122/१२१२/२२

***

दिल की कालिख सँवार आँखों में

कह  रहे  सब  खुमार  आँखों में।१।

*

फिर सुहाता न कोई भी उस को

उग गया जिस के खार आँखों में।२।

*

वार  करती  है  जानलेवा  वो

क्या लिए है  कटार  आँखों में।३।

*

दिल तो बेचैन उस की बातों से

दिख रहा पर  करार  आँखों में।४।

*

सिर्फ दुख से न होती नम लोगो

हर्ष भी  लाता  धार  आँखों में।५।

*

मन की चाहत सुबास सरसों की

खिल गयी  पर …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:29pm — 1 Comment

लौटा है कौन देख के जन्नत हरी भरी-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



रहती हो जिसके साथ मुसीबत हरी भरी

कैसे हो उस की  यार  तबीयत हरी भरी।१।

*

वो भाग्यवान तात से जिसको मिले सदा

आशीष  लाड़  डाँट  नसीहत  हरी भरी।२।

*

सबने है आग द्वेष की सुलगा रखी बहुत

रखता है मन में  कौन मुहब्बत हरी भरी।३।

*

बढ़ता न ताप दुनिया का ऐसे कभी नहीं

रखते धरा को लोग जो औसत हरी भरी।४।

*

बाँटें दुखों के बोझ को मिलके सदा यहाँ

दो ईश खूब सब को ही…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2023 at 7:22pm — 2 Comments

उस मुसाफिर के पाँव मत बाँधो - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/१२१२/२२

*

सूनी आँखों  की  रोशनी बन जा

ईद आयी सी फिर खुशी बन जा।१।

*

अब भी प्यासा हूँ इक सदी बीती

चैन  पाऊँ  कि  तू  नदी  बन  जा।२।

*

हो गया जग  ये  शीत का मौसम

धूप सी  तू  तो  गुनगुनी  बन जा।३।

*

मौत आकर खड़ी है द्वार अपने

एक पल को ही ज़िन्दगी बन जा।४।

*

मुग्ध कर दू फिर से हर महफिल

आ के अधरों  पे  शायरी बन जा।५।

*

इस नगर  में  तो  सिर्फ  मसलेंगे

फूल जाकर  तू  जंगली  बन जा।६।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 2, 2023 at 7:00am — 5 Comments

सब से हसीन ख्वाब का मंजर सँभालकर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212

****

सब से हसीन ख्वाब  का मंजर सँभालकर

नयनों में उस के प्यार का गौहर सँभालकर।१।

*

उर्वर करेगा कोई  तो  फिर  से ये सोच बस

सदियों रखा है जिस्म का बंजर सँभालकर।२।

*

कीटों  के  प्रेत   नोच  के  हर  शब्द  ले  गये

रक्खा है खत का आज भी पैकर सँभालकर।३।

*

पुरखों से सीख पायी है इस से ही रखते हम

नफरत के  दौर  प्यार  के  तेवर  सँभालकर।४।

*

फूलों से उस को दूर ही रखना सनम सदा

जिस ने रखा है हाथ में…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2023 at 12:39pm — 3 Comments

सरकार नित ही वोट से मेरी बनी मगर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

***

ये सच नहीं कि रूप  से वो भा गयी मुझे

बारात उस के वादों की बहका गयी मुझे।१।

*

सरकार नित ही वोट  से  मेरी बनी मगर

कीमत का भार डाल के दफना गई मुझे।२।

*

दंगो की आग दूर थी कहने को मीलों पर

रिश्तों की ढाल भेद  के  झुलसा गई मुझे।३।

*

अच्छे बहुत थे नित्य के यौवन में रत जगे

पर नींद ढलते काल में अब भा गयी मुझे।४।

*

नद झील ताल सिन्धु पे है तंज प्यास यूँ

दो एक…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 9, 2023 at 7:58am — No Comments

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२ २२२२ २२२२ २

**

पर्वत पीछे गाँव पहाड़ी निकला होगा चाँद

हमें न पा यूँ कितने दुख से गुजरा होगा चाँद।१।

*

आस नयी जब लिए अटारी झाँका होगा चाँद

मन कहता है झुँझलाहट से बिफरा होगा चाँद।२।

*

हम होते तो कोशिश करते बात हमारी और

शिवजी जैसा किसने माथे साधा होगा चाँद।३।

*

चाँद बिना हम यहाँ  नगर  में जैसे काली रात

अबके पूनौ हम बिन भी तो आधा होगा चाँद।४।

*

बातें करती होगी बैठी याद हमारी पास

कैसे कह दें तन्हाई  में तन्हा होगा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 1, 2023 at 12:33pm — 4 Comments

कुछ हो मत हो नेता दिख -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२

*

कुछ हो मत  हो  नेता दिख

मुख से निकला वादा दिख।१।

*

दुनिया को  गर  खुश रखना

उसके हित बस खटता दिख।२।

*

शीष  नवायें  सब  तुझ  को

इच्छा  है   तो   दादा  दिख।३।

*

लोकतन्त्र  की   रीत  निभा

राजा  होकर  जनता  दिख।४।

*

खबरों   में   गर   आना   है

नियमित से बस उल्टा दिख।५।

*

भीड़  जुटानी  अगल बगल

जीने  से  बढ़  मरता  दिख।६।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 12, 2023 at 7:49am — 4 Comments

जब दंगों का मंजर देखा -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/ २२२२


जब  दंगों  का  मंजर  देखा
सब आँखों में बस डर देखा।१।
*
जलती बस्ती  अनजानी थी
पर उसमें भी निज घर देखा।२।
*
मानव तो  मानव  जैसे ही
मंदिर मस्जिद अन्तर देखा।३।
*
अपने दुख  तब  से बौने हैं
औरों का दुख ढोकर देखा।४।
*
चीख उठीं दीवारें सारी
सन्नाटा जब छूकर देखा।५।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 31, 2023 at 5:40am — No Comments

आजादी का मान रखो



जब आजादी पायी है तो, आजादी का मान रखो।

देश, तिरंगे, लोकरीति की, सबसे ऊँची शान रखो।।

*

पुरखों ने बलिदान दिया था, खुली हवा हम पायें।

मस्त गगन में विचरें, खेलें, मिलकर लय में गायें।।

राजनीति की चकाचौंध में, कभी नहीं भरमायें।

भले-बुरे की, सोचें समझें, तब निर्णय पर आयें।।

*

सिर्फ स्वार्थ की अति से बेबश, पुरखे दास बने तब।

स्वार्थ न फिर सिर चढ़े हमारे, सोते जगते ध्यान रखो।

*

भूमि एक थी, धर्म एक तब, किन्तु एकता टूटी।

इस कारण ही सब ने आकर, इज्जत…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 15, 2023 at 6:42am — 2 Comments

देश समूचा पूँजी अपनी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

हिन्दू भैया!,मुस्लिम भैया!, क्यों करते हो दंगा।

हो जाता है  इस से  जग में, देश  हमारा नंगा।।

एक साथ में रहते  देखो, बीतीं  कितनी सदियाँ।

फिर भी नहीं सुहाने देती, इक दूजे को अँखियाँ।।

*

क्यों इतनी घृणा को मन में, पाल रहे हो अपने।

क्यों अपने हाथों से अपने, जला रहे हो सपने।।

जो मजहब के बने पुरोधा, कितना मजहब मानें।

झाँक कभी जीवन में उनके, ये सच भी तो जानें।।

*

वँटवारे की पीर सहन की, पुरखों ने जो सब के।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2023 at 4:28pm — No Comments

लोक को बाँटा है ऐसे इस सियासत ने यहाँ (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

कोई भी  नेता  हमारा  वादे  का  सच्चा नहीं

घोषणा करता मगर कुछ लोक को देना नहीं।१।

*

हर बहस के पीछे केवल कुर्सियों की टीस है

शेष सन्सद में हमारे  हित  कोई झगड़ा नहीं।२।

*

बस चुनावी वक्त  में  ही  रात दिन चर्चा में हम

शेष वर्षों में हमीं को उन का दिल धड़का नहीं।३।

*

लोक को बाँटा है ऐसे इस सियासत ने यहाँ

भीड़ में भी बोलिए तो कौन अब तन्हा नहीं।४।

*

विष घुली नदिया सा जीवन कर के नेता चैन में

लोक उनके आचरण को क्यों भला समझा…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 30, 2023 at 5:48am — 4 Comments

यह तन जो साँसों का घर है (गीत)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

यह तन जो साँसों का घर है।

टूटेगा   ही,   जब   नश्वर  है।।

*

साँस महज है पवन डोलती।

तन रहने तक समय तोलती।।

केवल मन की हमजोली बन,

तन को उकसा द्वार खोलती।।

*

कच्ची स्याही, कच्चा कागज,

मिटने वाला हस्ताक्षर है।

*

अभिलाषा पर अभिलाषा गढ़।

मन बढ़ जाता, तन सीने चढ़।।

उस पर भी कर सीनाजोरी,

सब दोषों को तन पर दे मढ़।।

*

मन के कर्मों का अपराधी,

तन हो जाता यूँ ऊसर है।।

*

सतरंगी चञ्चलता मन की।

सह ना पाती जड़ता तन…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 26, 2023 at 5:52pm — 2 Comments

शरारत के दिन गये - गजल (लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

*

पढ़ लिख गये हैं और जहालत के दिन गये

लेकिन इसी के साथ रिवायत के दिन गये।१।

*

जितने  भी  संगदिल  थे  तराशे  गये  बहुत

लेकिन न इतने भर से कयामत के दिन गये।२।

*

हर छोटी बात अब तो है तकरार का विषय

इस से समझ लो आप मुहब्बत के दिन गये।३।

*

साया गया जो बाप का क्या कुछ छिना न पूछ

उस की समझ  खुली  है  शरारत के दिन गये।४।

*

बाँटा  गया  अनाज  यूँ  दो- चार - दस  किलो

उस पर कहन कि आज से गुरबत के दिन गये।५।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2023 at 7:30pm — 2 Comments

दोहा - पंचक

आँगन में जब शूल के, हँसते हों नित फूल
अच्छे दिन का आगमन, समझो है अनुकूल।।
*
सुख चलते हों नित्य जब, लेकर टूटे पाँव
रंगत कैसे प्राप्त हो, अभिलाषा के गाँव।।
*
दुख की तपती धूप में, जलते सुख के पाँव
कैसे फिर बोलो मिले, अभिलाषा को छाँव।।
*
गिरकर भी सँभले नहीं, जो भी जन सौ बार
कब ईश्वर भी कर सके, आ उन का उद्धार।।
*
जीया  मीठी  बातकर, जो  जीवन  पर्यन्त
या तो वो शातिर बहुत, या फिर सीधा सन्त।।
*
मौलिक -अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2023 at 3:42pm — No Comments

दोहे - मिट्टी - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

जीवन दाता ने रचा, जीवन बड़ा अनन्त

मिट्टी से आरम्भ कर, मिट्टी से दे अन्त।१।

*

मिट्टी में उपजे फसल, भरे सभी का पेट

मिले इसी से जिन्दगी, मिट्टी को मत मेट।२।

*

मिट्टी बढ़कर स्वर्ण से, सदा लगाओ भाल

केवल मिट्टी ही यहाँ , सब को सकती पाल।३।

*

जन्म, ब्याह, पूजा, मरण, कर मिट्टी की बात

कहते फिर भी लोग नित, घट मिट्टी की जात।४।

*

मिट्टी को घट बोलकर, रखते स्वर्ण सँभाल

पर मिट्टी को ही चलें, जग में चाल कुचाल।५।

*

करते पंछी पेड़ सब, मिट्टी का…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 25, 2023 at 8:31pm — No Comments

दोहे - समय

जो भी घटता  घाट  पर, सिर्फ समय का खेल

बाँकी जो भी जन करें, सब कुछ तुक का मेल।१।

*

कहता है सारा जगत, समय बड़ा बलवान

इसीलिए वह माँगता, हरपल निज सम्मान।२।

*

चाहे जितना आप दो, दौड़ भाग को तूल

कर्म जरूरी है मगर, फले समय अनुकूल।३।

*

जो भी छाया धूप है, या फिर कीर्ति कलंक

समय बनाता  भूप  है, और  समय  ही रंक।४।

*

सच कहते हैं सन्त जन, नहीं समय से खेल

समय करेगा  खेल  जब, नहीं  सकेगा झेल।५।

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2023 at 6:50pm — 2 Comments

दोहा सप्तक- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

जलते दीपक कर रहे, नित्य नये पड्यंत्र।

फूँका उन के  कान  में, तम ने कैसा मंत्र।१।

*

जीवनभर  बैठे  रहे, जो  नदिया  के तीर।

भाँणों ने उनको लिखा, मझधारों के वीर।२।

*

करती हो पतवार जब, दुश्मन सा व्यवहार।

कौन  करे  उम्मीद  फिर, नाव  लगेगी पार।३।

*

दुख के अपने रंग हैं, दुख की अपनी चाल।

जिसके चंगुल में हुए, जग में सभी निढाल।४।

*

लूले-लँगड़े सुख  सकल, साध  रहे  नित मौन।

आगे बढ़कर फिर भला, दुख को कुचले कौन।५।

*

दुख के जनपद हैं बहुत, सुख…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 30, 2023 at 10:25pm — 2 Comments

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