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यह तन जो साँसों का घर है (गीत)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

यह तन जो साँसों का घर है।
टूटेगा   ही,   जब   नश्वर  है।।
*
साँस महज है पवन डोलती।
तन रहने तक समय तोलती।।
केवल मन की हमजोली बन,
तन को उकसा द्वार खोलती।।
*
कच्ची स्याही, कच्चा कागज,
मिटने वाला हस्ताक्षर है।
*
अभिलाषा पर अभिलाषा गढ़।
मन बढ़ जाता, तन सीने चढ़।।
उस पर भी कर सीनाजोरी,
सब दोषों को तन पर दे मढ़।।
*
मन के कर्मों का अपराधी,
तन हो जाता यूँ ऊसर है।।
*
सतरंगी चञ्चलता मन की।
सह ना पाती जड़ता तन की।।
द्वन्द्व भरा दोनों का बन्धन,
यही कथा है इस जीवन की।।
*
ताल तलैया कूप देह को,
कहे स्वयं को मन निर्झर है।।
*
मन का काम करे उजियारे।
पर लाता क्या-क्या अँधियारे।।
ओढ़ मुखौटा तन का, ये मन,
 नित  रचता  प्रपञ्च  सकारे।।
*
जितनी भी सब मन की बातें,
तन  तो  देता  केवल  स्वर है।।
*
मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2023 at 12:50pm

आ. भाई अमीरूद्दीन जी,सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति , स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 27, 2023 at 7:53am

यह तन जो साँसों का घर है।

टूटेगा ही, जब नश्वर है।।...... वाह! क्या कहने। लाजवाब गीत हुआ है। आदरणीय धामी जी आदाब, हार्दिक बधाई स्वीकार करें। 

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