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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – November 2013 Archive (1)

ग़ज़ल

बताई बात मिलने की अगर तूँने जमाने को

बचेगा पास मेरे क्या बताओ फिर गँवाने को



न दिल को लगने पाएगा ये गम जुदाई का

तुम्हारी याद जो होगी हमें हँसने-हँसाने को



लगी सूंघने दुनिया तेरी खुशबू हवाओं में

लिखी जब गयी चिट्ठी किताबों में छुपाने को



किया फौलाद जैसा दुखों ने पालकर तन से

खुशी एक ही काफी हमें जी भर रूलाने को

गिरे अनमोल मोती जो सुख की कड़ी टूटी

सहेजे दामनों ने हैं नयन में फिर सजाने को…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 17, 2013 at 7:00am — 8 Comments

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