For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – February 2021 Archive (8)

जग मिटा कर दुख सुनाने- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२

मत निकल तलवार लेकर

जय  मिलेगी  प्यार लेकर।१।

*

युद्ध  नित   बर्बाद  करता

जी तनिक यह सार लेकर।२।

*

जग मिटा कर दुख सुनाने

जायेगा  किस  द्वार लेकर।३।

*

इस भवन का क्या करूँगा

तुम  गये   आधार   लेकर।४।

*

नेह की दुनिया अलग है

हो जा हल्का भार लेकर।५।

*

बोझ सा हरपल है लगता

दब  गये  आभार  लेकर।६।

*

कर गया कंगाल सब को

हर  भरा  सन्सार  लेकर।७।

*

टूटती  रिश्तों  की माला

जोड़ ले कुछ तार…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2021 at 10:38pm — 4 Comments

रातें तमस भरी हैं उलझन भरे दिवस हैं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२२/२२१/२१२२



वैसे तो उसके  मन  की  बातें  बहुत सरस हैं

पर काम  इस  चमन  में  फैला  रहे तमस हैं।१।

*

पहले भी थीं न अच्छी रावण के वंशजों की

अब  राम  के  मुखौटे  कैसी  लिए  हवस  हैं।२।

*

ये दौर  कैसा  आया  मर  मिट  गये  सहारे

चहुँदिश यहाँ जो दिखतीं टूटन भरी वयस हैं।३।

*

पसरी  जो  आँगनों  में  उन से  हवा लड़ेगी

इन से लड़ेंगे  कैसे  जो  मन  बसी उमस हैं।४।

*

उस गाँव में हैं  अब  भी  बेढब सुस्वाद…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 21, 2021 at 9:19am — 10 Comments

पहरूये ही सो गये हों जब चमन के- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२



बेड़ियाँ टूटी  हैं  बोलो  कब स्वयम् ही

मुक्ति को उठना पड़ेगा अब स्वयम् ही।१।

*

बाँधकर  उत्साह  पाँवों  में चलो बस

पथ सहज होकर रहेंगे सब स्वयम् ही।२।

*

पहरूये ही सो गये हों जब चमन के

है जरूरत जागने की तब स्वयम् ही।३।

*

अब न आयेगा  यहाँ  अवतार हमको

करने होंगे मान लो करतब स्वयम् ही।४।

*

कल जो सेवक  हैं कहा करते थे देखो

हो गये है  आज  वो  साहब  स्वयम्…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2021 at 7:30am — 14 Comments

कच्ची कलियाँ क्यों मरती - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२२२/२२२२/२२२२



काँटा चुभता अगर पाँव को धीरे धीरे

आ जाते हम  यार  ठाँव को धीरे धीरे।१।

*

कच्ची कलियाँ क्यों मरती बिन पानी यूँ

सूरज छलता  अगर  छाँव को धीरे धीरे।२।

*

खेती बाड़ी सिर्फ कहावत होगी क्या

निगल रहा है नगर गाँव को धीरे धीरे।३।

*

कौन दवाई ठीक करेगी बोलो राजन

पेट देश के लगी  आँव को धीरे धीरे।४।

*

जीत कठिन भी हो जाती है सरल उन्हें

जो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 14, 2021 at 7:38am — 8 Comments

इस बार भी करेंगे ये सौदा किसान का -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



पहने हुए हैं जो भी मुखौटा किसान का

हित चाहते नहीं हैं वो थोड़ा किसान का।१।

*

बन के हितेशी नित्य हित अपना साधते

बाधित करेंगे ये ही तो रस्ता किसान का।२।

*

नीयत है इनकी खोटी ये करने चले हैं बस

दस्तार अपने हित में दरीचा किसान का।३।

*

होती इन्हें तो भूख है अवसर की नित्य ही

चाहेंगे पाना खून पसीना किसान का।४।

*

स्वाधीन हो के देश में किस ने उठाया है

रुतबा किया सभी ने है नीचा किसान का।५।

*

सब के टिकी हुई है ये…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 7, 2021 at 10:28am — 10 Comments

हम तो हल के दास ओ राजा-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२२



हम तो हल के दास ओ राजा

कम देखें  मधुमास  ओ राजा।१।

*

रक्त  को  हम  हैं  स्वेद  बनाते

क्या तुमको आभास ओ राजा।२।

*

अन्न तुम्हारे पेट में भरकर

खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।

*

पीता  हर  उम्मीद  हमारी

कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।

*

हम से दूरी  मत  रख इतनी

आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।

*

खेती - बाड़ी  सब  सूखेगी

जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 4, 2021 at 9:56am — 23 Comments

ये लहर ऐसे न साथी साथ देगी अब यहाँ -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



हर लहर से बढ़ के अब तो रार साथी तेज कर

पार  जाने  के  लिए  पतवार  साथी  तेज  कर।१।

*

ये  लहर  ऐसे  न  साथी  साथ  देगी  अब  यहाँ

झील के  पानी  में  थोड़ी  मार  साथी तेज कर।२।

*

जुल्म  के  पत्थर  इसी  से  कट  गिरेंगे  देखना

पहले पत्थर पर कलम की धार साथी तेज कर।३।

*

काट दी है जीभ इन की चीखना सम्भव नहीं

सच कहेंगी  बेड़ियाँ  झन्कार  साथी  तेज…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2021 at 7:58pm — 10 Comments

यूँ तो जनता की रही सरकार कहने के लिए - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

.

शेष इस में  क्या  रहा  इनकार  कहने के लिए

कह गया कनखी में सब दरवार कहने के लिए।१।

*

काम जनता के न आयी आज तक ये एक दिन

यूँ तो जनता  की  रही  सरकार  कहने के लिए।२।

*

इश्तहारों के सिवा जनहित का उसमें कुछ नहीं

शेष है बस  नाम  ही  अखबार  कहने के लिए।३।

*

काम कोई भी किया ऐसा न जिसका दम भरें

बात ही  उस की  रही  दमदार  कहने के लिए।४।

*

सब दिहाड़ी पर  बुलाए  उस के ही मजदूर थे

लोग जितने  भी  जुटे  आभार  कहने के…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 2, 2021 at 3:30am — 3 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service