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Satish mapatpuri's Blog (95)

सॉरी सर (कहानी )अंक-4

सॉरी सर (कहानी )
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक-4 
 -------------- गतांक से आगे -------------------------
प्रो. सिन्हा के फ़ोन उठाते ही उधर से आवाज़ आई थी --- "मैं आपको एक बहुत बूरी खबर दे रहा हूँ प्रो.साहेब,जिस प्लेन 
से सोनाली सरकार आ रही थीं---------------…
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Added by satish mapatpuri on January 17, 2011 at 3:30pm — No Comments

सॉरी सर (कहानी )अंक -3

सॉरी सर (कहानी )
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक -3
-------------------- गतांक से आगे ----------------------------
"जी नहीं, सोनाली घोष." प्रो. सिन्हा ने आज बड़े गौर से उस लड़की की आँखों में देखा.मनोविज्ञान के विशेषज्ञ
के लिए उस लड़की की आँखों की…
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Added by satish mapatpuri on January 14, 2011 at 3:30pm — No Comments

सॉरी सर (कहानी ) अंक - 2

सॉरी सर (कहानी )
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक - 2
---------------- गतांक से आगे ----------------------------------
इस छोटे से पत्र के समक्ष उन्हें जीवन के…
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Added by satish mapatpuri on January 13, 2011 at 4:00pm — 2 Comments

सॉरी सर (कहानी ) अंक -१

सॉरी सर (कहानी )
लेखक - सतीश मापतपुरी
अंक - १
मनोविज्ञान का ज्ञाता होना अलग बात है,अपनी मनोदशा पर नियंत्रण पा लेना  बिल्कुल  अलग बात.शायद मन का भाव चेहरा पर लिख जाता है अन्यथा प्रो.सिन्हा से   प्रो.वर्मा. यह नहीं पूछ बैठते------"कुछ परेशान दिख रहे हैं
सिन्हा साहेब, क्या बात है?"
"नहीं तो,परेशानी जैसी कोई बात नहीं है." और एक मरियल सी मुस्कान प्रो.सिन्हा के सूखे होठों पर अलसाई
सी पसर गई.संभवत: आदमी ही सृष्टि…
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Added by satish mapatpuri on January 5, 2011 at 5:00pm — 2 Comments

दस का दम

रोना -हंसना,कभी चिल्लाना,कभी ख़ुशी -कभी गम.
सारी दुनिया दंग रह गई, देख के दस का दम.
उठा खलीफा बुर्ज़ जहाँ में, शाने ईमारत बनकर. 
तो गिरा ईमारत दिल्ली में, एक कयामत बनकर.
भारत के रुपया को दस में, नया रूप-परिधान मिला.
अखिल विश्व की पांचवी मुद्रा, का उसको सम्मान मिला.
कभी किया दिल बाग-बाग,तो कभी किया बेदम.
सारी दुनिया दंग रह गई,देख के दस का दम.
चिकन- गोश्त में प्याज डालते, ये है कल की बात.
आज…
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Added by satish mapatpuri on December 29, 2010 at 3:00pm — 3 Comments

पर उनको ख़त लिख नहीं पाया

याद किया और कलम उठाया,
पर उनको ख़त लिख नहीं पाया.
प्यार लिखूं -दिलदार लिखूं या,
दिल की धड़कन- समझ न पाया.
सोने की कोशिश में थककर,
रात को वो भी जगते होंगे.
उनके तसव्वुर में भी शायद,
कितने सपने सजते होंगे.
मिलना तो कई बार हुआ,
पर क्यों मिलता हूँ कह नहीं पाया.
याद किया और कलम उठाया,
पर उनको ख़त लिख नहीं…
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Added by satish mapatpuri on December 14, 2010 at 1:30pm — 3 Comments

इन्सान और फ़रिश्ता

जिसको करने में फ़रिश्ते भी शायद डरते हैं .
हम इन्सान उसको दिल लगाकर करते हैं.
हमको पता है ज़िन्दगी का मौत ही हासिल है.
फिर ज़िन्दगी के वास्ते हम क्यों गुनाह करते हैं?
किस्तों में मिट रही है पुरखों की मर्यादायें.
पर हम इसे विकास की एक नई सुब्ह कहते हैं .
किसने बदल दिया है इस मुल्क की आबोहवा?
लैला का नाम सुनकर जहाँ कैश सहमते हैं .
कायर के हाथ खंजर जब से लगा है पुरी.
परवरदिगार तब से हैरान से रहते हैं.
गीतकार - सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

Added by satish mapatpuri on December 8, 2010 at 3:00pm — 3 Comments

पुलिस आ रही है (लघुकथा)

यूं तो छमिया रोज़ ही हाट से सब्जी बेचकर दिन ढले ही घर आती थी, पर आज तनिक देर हो गयी थी. वह थोड़ी देर के लिए अपनी मौसी से मिलने चली गयी थी. युग -ज़माना का हवाला देकर मौसी ने उसे यहीं रुक जाने को कहा था, पर बूढ़ी माँ को वह अकेले छोड़ भी कैसे सकती थी? जब वह मौसी के घर से चली थी तो सूरज अपनी अलसाई आँखें मुंदने लगा था. छमिया तेज-तेज डग भरने लगी , पर शायद रात को आज कुछ ज्यादा ही जल्दी थी. देखते ही देखते चारो ओर कालिमा पसर गयी. वह पगडण्डी पार कर रही थी. अचानक उसे बगल की झाड़ियों में खड़-खड़ की आवाज़… Continue

Added by satish mapatpuri on November 25, 2010 at 2:00pm — 6 Comments

प्यार चाहिए ( बाल दिवस सप्ताह पर विशेष )

हम बच्चों को आप बड़ों का प्यार चाहिए.

हमें भी फूलने- फलने का आधार चाहिए.



हम भी फूल इसी बगिया के, फिर बहार से क्यों वंचित हैं?

देश के हम भी नौनिहाल हैं, फिर दुलार से क्यों वंचित हैं?



हमें भी खुलकर हँसने का अधिकार चाहिए.

हमें भी फूलने - फलने का आधार चाहिए.



उस समाज का क्या मतलब, जहाँ हम अनपढ़ रह जाते हैं?

उस किताब की क्या कीमत, जिसको हम पढ़ नहीं पाते हैं?



हम सब को भी शिक्षा का सिंगार चाहिए.

हमें भी फूलने -फलने का आधार… Continue

Added by satish mapatpuri on November 19, 2010 at 3:30pm — 2 Comments

कैसे कोई हमको अलग कर पायेगा

क्या पता था राम को, कि ऐसा दिन भी आएगा.

उनकी अयोध्या में ,उन्हें खैरात बांटा जायेगा.

जिस ज़मीं पर ठुमक-ठुमक, भगवान को चलना पड़ा था.

जिस जगह नारायण को, नर रूप में आना पड़ा था.

भावी को भी क्या पता था, ऐसा दिन भी आयेगा.

राम के अस्तित्व को, मुद्दा बनाया जाएगा.

क्या पता था राम --------------------------------

हिन्दू मुस्लिम हैं अलग, ये कब कहा था राम और रहमान ने?

मंदिर मस्जिद है जुदा, क्या यह सिखाया है खुदा भगवान ने?

नींव नफरत है धरम की, है लिखा गीता में या… Continue

Added by satish mapatpuri on October 25, 2010 at 2:54pm — 2 Comments

जय माँ दुर्गे -जय महाकाली (नवरात्रि पर विशेष)

जय माँ दुर्गे -जय महाकाली, जय माँ -जय माँ जय शेरावाली.

तू दानी माता महारानी, बाकी सब ही सवाली.

जय माँ दुर्गे --------------------------------------------------

तुम्हरी शरण में जो भी आते , जो भी तुमसे नेह लगाते.

तुम्हरी महिमा को नहीं जाने, मईया सब तुम्हरे गुण गाते.

हाथ पसारे सब ही आते - जाते ना पर खाली.

जय माँ दुर्गे ---------------------------------------------

शेर सवारी- भुजा कटारी, मुंडमालिनी-खप्परधारी.

ऐसा कौन जो तुमसे बचा हो , सब दुष्टन पर तुम हो… Continue

Added by satish mapatpuri on October 8, 2010 at 12:07pm — 2 Comments

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को

भूलना मत दीन और ईमान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.

अमन से सुन्दर है कुछ दूजा नहीं.

प्रेम से बढ़कर कोई पूजा नहीं.

बांटना क्या राम और रहमान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.

प्यार और खुशियाँ ही बसती थी जहाँ.

हिन्द वो इकबाल का खोया कहाँ.

किसने जख्मी कर दिया मुस्कान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान को.

स्वार्थ से हरगिज़ ना तौलो प्यार को.

दुःख मे पुरी बदलो ना व्यवहार को.

थाम लो तुम गिर रहे इंसान को.

या खुदा दे अक्ल हम इन्सान… Continue

Added by satish mapatpuri on September 29, 2010 at 2:43pm — 1 Comment

चाँद दरिया में

चाँद दरिया में शब भर उतरता रहा .

उनकी आगोश में मैं पिघलता रहा.

एक जवां हुस्न के करवटें लेने से.

चाँदनी का बदन सर्द जलता रहा.

उनकी आगोश में मैं पिघलता रहा.

चाँद छिपने का होता रहा तब भरम.

गेसू रुखसार पे जब बिखरता रहा.

उनकी आगोश में मैं पिघलता रहा.

आ ना जाए क़यामत ये डर भी हुआ.

जब-जब सीने से आँचल सरकता रहा.

उनकी आगोश में मैं पिघलता रहा.

मापतपुरी से तन्हाई में जब मिले.

आईना शर्म का खुद चटकता रहा.

उनकी आगोश में मैं पिघलता… Continue

Added by satish mapatpuri on September 23, 2010 at 5:30pm — 2 Comments

हसीना उसको कहते हैं

हसीं गालों पे जो चमके, नगीना उसको कहते हैं.

घनीं जुल्फों से जो टपके, तो मीना उसको कहते हैं.

यूँ कहने को तो मयखाने में, लाखों रोज़ पीते हैं.

जो छलके गहरी आँखों से, तो पीना उसको कहते हैं.

मचल जाता फिजा का दिल, हसीं जुल्फें बिखरने से.

जो पत्थर को भी पिघला दे, हसीना उसको कहते हैं.

ख़ुशी में हंसना- खुश होना, जहां में सबको आता है.

मगर जो हँस के गम सह ले, तो सीना उसको कहते हैं.

महलों के गलीचों पे पसीना, आता है पुरी.

मगर खेतों में जो बहता, पसीना उसको कहतें… Continue

Added by satish mapatpuri on August 20, 2010 at 4:02pm — 4 Comments

हम आज के इंसान हैं

हम आज के इंसान हैं, हम आज में जीते हैं.

वो और लोग होंगे, जो समाज में जीतें हैं.

गीता- कुरान पढ़तें हैं, मानते नहीं.

इंसान हैं, इंसानियत को जानते नहीं.

ज़ख़्मी को देखतें हैं, ठहरते नहीं.

लाल खून देखकर, सिहरते नहीं.

हम वो घड़े हैं जो, संवेदना से रीते हैं.

हम आज के इंसान हैं, हम आज में जीते हैं.

15 अगस्त आता है, तो राष्ट्र-गान गाते हैं.

घर के मुंडेर पर, तिरंगा भी फहराते हैं.

रचनाकार हैं, रचनाधार्मिता को पोसते हैं.

राष्ट्र की दुहाई देकर, शासन को… Continue

Added by satish mapatpuri on August 10, 2010 at 4:30pm — 2 Comments

रैप टाइम (हास्य ) हिंगलिश- शैली

गिरते -पड़ते डांस करें, बिन सुर - ताल के गाना.

ये है रैप ज़माना - ये है रैप ज़माना.

स्कूल हो या कॉलेज हो, बस फिल्मों का नॉलेज हो.

क्या रखा है किताबों में, अलजबरा के हिसाबों में.

झगड़ा है इतिहासों में, टेंसन संधि- समासों में.

तर्कशास्त्र तो टेढ़ा है, इंगलिश एक बखेड़ा है.

राजनीति में पचड़ा है, अर्थशास्त्र एक दुखड़ा है.

कौन फंसे साइक्लोजी में, लफड़ा है बाईलोजी में.

पानीपत में कौन जीता, बेमतलब सर है खपाना.

ये है रैप ज़माना… Continue

Added by satish mapatpuri on August 6, 2010 at 4:00pm — 2 Comments

क्षितिज के पार

नज़र को धोखा बार- बार यही होता है.
यूँ तो कुछ भी क्षितिज के पार नहीं होता है .
खुदा बनाता है क्यों उनको हसीं.
जिनके दिल में तमिज़े प्यार नहीं होता है .
दिल भले साज़ है पर सबसे जुदा.
ये वो सितार जिसमे तार नहीं होता है.
उनकी मासूमियत पे हैरां हूँ.
ये भी नहीं कहते ऐतबार नहीं होता है .
रेत में गुल खिला रहे हो पुरी.
दिलजलों के लिए बहार नहीं होता है.
गीतकार- सतीश मापतपुरी
मोबाइल - 9334414611

Added by satish mapatpuri on August 2, 2010 at 4:53pm — 1 Comment

सावन का महीना

हसीना तेरे गालों पे पसीना जब भी आता है ।
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।
जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।
कहाँ इनकार है मापतपुरी सूरज के जलने से ।
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611

Added by satish mapatpuri on July 26, 2010 at 1:00pm — 5 Comments

आईना

जो सच है वही दिखाता है आईना.

कहाँ -कहाँ दाग जिस्म पर, दिखलाता है आईना.

जो सच है वही दिखाता है आईना.

चेहरे भले बदलते हैं, पर बदले ना आईना.

राजा-रंक या ऊँच-नीच का, भेद ना माने आईना.

सच्चाई का एक धर्म ही, मानता है आईना.

जो सच है वही दिखाता है आईना.

चाहे कोई कुछ भी कर ले, झूठ कभी ना बोले.

बुरा लगे या भला लगे, ये भेद सभी का खोले.

चेहरा गर हो दागदार तो, शरमाता है आईना.

जो सच है वही दिखाता है आईना.

दिन भर में लाखों को उनका, चेहरा दिखलाता… Continue

Added by satish mapatpuri on July 21, 2010 at 4:44pm — 5 Comments

जिंदगी

जिंदगी फ़िर हमें उस मोड़ पे क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।

जिंदगी तेरे हर फ़साने को , मैंने कोशिश किया भुलाने को ।

मेरी आंखों से खून के आंसू , कब से बेताब हैं गिर जाने को ।

मेरे माजी को मेरे सामने क्यों ले आई । याद आई वो घड़ी आँख मेरी भर आई ।

मैंने बस मुठ्ठी भर खुशी मांगी , प्यार की थोड़ी सी ज़मीं मांगी ।

अपनी तन्हाइयों से घबड़ाकर , अपनेपन की कुछ नमीं मांगी ।

क्या मिला- क्या ना मिला फ़िर वो बात याद आई । याद आई वो आँख मेरी भर आई ।

जिंदगी मैंने तेरा रूप… Continue

Added by satish mapatpuri on July 16, 2010 at 3:58pm — 6 Comments

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