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गुनाहगार बनाया क्यों ?

 

ऐ मालिक ! बता दे तू , कि बहार बनाया क्यों ?
गर बहार बना था , तो उजाड़ बनाया क्यों ?
चमन में खिलती हैं कलियाँ , कली से नेह भौरों को .
पर भंवरे काँप उठे उस वक़्त , आखिर खार बनाया क्यों ?
जुदाई प्यार की मंजिल , तड़पना दिल को पड़ता है .
दिवाना कहती है दुनिया , तो फिर यह  प्यार बनाया क्यों ?
मिलन की चाह होती है , मिलन होता मुकद्दर से .
तो मिलकर क्यों बिछड़ते हैं , आखिर दीदार बनाया क्यों ?
अगर मापतपुरी जालिम  , तो उस पे कर करम मौला .
ख़ता अल्लाह तुम्हारी है , तू गुनाहगार बनाया क्यों ?                  

          ---- सतीश मापतपुरी

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Comment

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Comment by satish mapatpuri on September 1, 2012 at 12:42am

शुक्रिया अभिन्न रेखा जी

Comment by satish mapatpuri on September 1, 2012 at 12:41am

आभार सम्मानित राजेश कुमारी जी

Comment by Rekha Joshi on August 31, 2012 at 9:04pm

बहुत खूब ,अति सुंदर रचना ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सतीश जी 


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Comment by rajesh kumari on August 31, 2012 at 6:55pm

वाह सतीश मापत्पुरी जी बहुत बढ़िया 

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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