For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Manan Kumar singh's Blog – May 2020 Archive (5)

बाल गजल(मैंने डिग्री हासिल की है..)

22 22 22 22

मैंने डिग्री हासिल की है
सब कहते हैं,नाक बची है।1

फेल अगर तुम हो जाओ, तो
लोग कहेंगे,नाक कटी है।2

गुस्से का इजहार हुआ तो,
यूं लगता है,नाक चढ़ी है।3

हो जाते जब लोग बड़े, सब
कहते,उनकी नाक बड़ी है।4

सर्दी - खांसी,नजला हो,तो
कहते,खुलकर नाक चली है।5

ऑक्सीजन से जीवन देती,
कहते,कितनी नाक भली है!6
'मौलिक व अप्रकाशित'

Added by Manan Kumar singh on May 31, 2020 at 10:58am — 5 Comments

गजल( कैसी आज करोना आई)

22 22 22 22

कैसी आज करोना आई

करते है सब राम दुहाई।

आना जाना बंद हुआ है,

हम घर में रहते बतिआई!

दाढ़ी मूंछ बना लेते हैं

सिर के बाल करें अगुआई।

बंद पड़े सैलून यहां के

रोता फिरता अकलू नाई।

डर के मारे दुबके हैं सब

नाई कहता, 'आओ भाई!

मास्क लगाकर मैं रहता हूं

तुम क्योंकर जाते खिसियाई?

मुंह ढको,फिर आ जाओ जी,

घर जाओ तुम बाल कटाई।

एक दिवस की बात नहीं यह

आगे बढ़ती और लड़ाई।

झाड़ू पोंछा,बर्तन बासन,

अपना कर,अपनी…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 27, 2020 at 1:15pm — 7 Comments

सफेद कौवा(लघुकथा)



कौवा तब सफेद था।बगुलों के साथ आहार के लिए मरी हुई मछलियां, कीड़े वगैरह ढूंढ़ता फिरता। फिर बगुलों ने जीवित मछलियों का स्वाद चखा।वह उन्हें भा गया। अब वे जीवित मछलियां ही उड़ाने लगे।सोचते कि भला कौन मुर्दों की खिंचाई करे।उन्हें भी तो चैन नसीब हो।जिंदगी भर हुआ कि नहीं,किसे पता।अहले सुबह वे कुछ मरी हुई छोटी छोटी मछलियां और कीड़े मकोड़े लिए तालाब के ऊपर मंडराने लगते।उनके टुकड़े कर पानी में फेंकते...मछलियां अपने आहार की खातिर झुंड के झुंड पानी की सतह पर आतीं....फिर बगुले झपट्टा…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 24, 2020 at 6:30am — 4 Comments

खुश हुआ तू बोलकर....(गजल)

2122 2122 2122

खुश हुआ तू बोलकर,' है जानवर तू'

लग रहा खुद को बताता,बेसबर तू।

सांस बनकर बह रहीं ठंडी हवाएं

आग की लपटें उठा मत बन, कहर तू।

ख्वाब पाले  मौन बैठी हैं सदाएं

कानफाड़ू! ला सके तो,ला सहर तू?

तार होती हो नहीं उम्मीद कोई,

हो अगरचे तो बता,कोई पहर तू?

हर्फ हासिल हो गए तो शायरी कर,

क्यूं अंधेरों को बढ़ाता है बशर तू?

मत बिठा मेरी गजल को हाशिए पर

छटपटाती है बहर,देखे अगर तू।

रुक्न रोते, बुदबुदाते शब्द सारे,

नज़्म कहकर…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 17, 2020 at 11:30am — 11 Comments

ग़ज़ल(अश्क धोकर आदमी....)

2122  2122  2122

अश्क धोकर आदमी थकने लगा है

सोचता - अब और रोना तो बला है।1

गर्दिशों का दौर बढ़ता,देखिए तो

शोर का कुछ भाव ज्यादा ही चढ़ा है।2

गुम हुई - सी जा रही पहचान फिर से

जिंदगी जो दे,उसे मरना पड़ा है।3

डंस रहा जाहिल अंधेरा आदमी को,

क्यूं उजाला रेत बन धुंधला हुआ है?4

कोसते हैं लोग कुछ भगवान को भी

जब संजोई गांठ में विष ही भरा है।5

ख्वाब चकनाचूर, आंखें पूछती हैं…

Continue

Added by Manan Kumar singh on May 10, 2020 at 9:45pm — 6 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service