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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Blog – November 2015 Archive (7)

इबादत कर रहा हूँ मैं

इबादत कर रहा हूँ कर रहा हूँ

कर रहा हूँ मैं।

खलल मत डालिये चेहरे की पुस्तक,

पढ़ रहा हूँ मैं।।



अभी मैं रोककर साँसों को,

प्राणायाम में रत हूँ।

विधाता की सुघर कृति के सघन,

अवधान में रत हूँ।

अभी मत बोलिये मन में ये प्रतिमा,

गढ़ रहा हूँ मैं।

खलल मत डालिये चेहरे की पुस्तक,

पढ़ रहा हूँ मैं।।



अभी धड़कन सँवरनी है,

अभी शृंगार करना है।

अभी बेजान से बुत पर,

हृदय का हार चढ़ना है।

नज़र मत डालिये प्रियवर मिलन को,

बढ़ रहा… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 17, 2015 at 5:09pm — 4 Comments

मोहब्बत क्यूँ न कर लेती

1222 1222
~~~~~~~~~~~~~~
निगाहों में संवर लेती।
मुहब्बत क्यूँ न कर लेती?

बहुत सुंदर शहर है ये।
मेरे दिल की खबर लेती।।

उदासी का मैं दुश्मन हूँ।
तू दामन क्यूँ न भर लेती।।

नदी कब तक यूँ भटकेगी?
समन्दर में उतर लेती।।

तेरे ख्वाबों की मन्ज़िल हूँ।
कदम अपने इधर लेती।।

तू ख़ुश्बू और मैं "पंकज"।
आ मुझपे ही बिखर लेती।।

~~~~~~~~~~~~~~
मौलिक एवम् अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 15, 2015 at 8:11pm — 2 Comments

काहें खद्दर में? पंकज

खोज रहे हो सूत्र एकता, के तुम काहें खद्दर में।

नैतिकता का बलात्कार, होता है पार्टी दफ्तर में।।



अपनी टाँगें मोड़-माड़कर, खूब बचाकर पड़े रहो।

सोच रहे हो घर बस जाये, तम्बू वाले चद्दर में।।



संसाधन पर हक़ तब भी और, अब भी उन लोगों का है।

जो भी रहता है सत्ता के, इर्द-गिर्द के संस्तर में।।



नींद भला आती ही कैसे, उसकी बेबस आँखों में।

यादों के बादल बरसे वो, जगता रह गया बिस्तर में।।



दिल की धड़कन चलती रहती, ऐसे टूट नहीं जाती।

सच कहता हूँ धार… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 11, 2015 at 11:49pm — 13 Comments

आइये महानुभाव

आइये महानुभाव!

बेख़ौफ़ आईये

मत घबराईये।।



ये गरीबखाना है

यहाँ सबका आना जाना है।



ये जो झीलंगहिया खटिया है न?

दर्द से चुर्र चुर्र ज़रूर कराहती है

पर यह सबके भार उठाती है।।



खैर!

आप मचिया पर बैठिये

किन्तु थोड़ा ठहरिये

इसे साफ़ कर देता हूँ

आपके लायक कर देता हूँ।



आपके श्वेतावरण का ध्यान है मुझे;

दाग अंदर हों, कोई बात नहीं

लेकिन

कपड़ों पर अच्छे नहीं लगते

ज्ञात है मुझे।।



बोलिये… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 8, 2015 at 7:28pm — 8 Comments

जिसमें जितनी कीमत उतनी- पंकज मिश्र

16 रुक्नी ग़ज़ल

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नफ़रत का बाज़ार सजा है; हममें जितनी, कीमत उतनी।

इच्छाओं का दाम लगा है, खुदमें जितनी, कीमत उतनी।।



इस पुस्तक के पन्नों पर तुम, नैतिकता क्यों कर लिखते हो।

मानवता की छद्म व्याख्या, इसमें जितनी, कीमत उतनी।।



व्यवहार और समाचार में, सिर्फ एक सम्बन्ध यही है।

नमक मिर्च की हुई मिलावट, इनमें जितनी, कीमत उतनी।।



कलयुग वाले महाराज के, दरबारी मानक बदले हैं।

चाटुकारिता भरी हुई है, जिसमें…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 7, 2015 at 9:30am — 13 Comments

तुम इस ही बहाने आओ भी

16 रुक्नी ग़ज़ल

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हम अब भी साँसें खींच रहे; कुछ और सितम तुम ढ़ाओ भी।

दीदार तो होगा कम से कम; तुम इस ही बहाने आओ भी।।



कल सुब्ह चले जाना ये शब, तूफ़ान भरी को बीतने दो।

बादल झरते हैं आँखों से, बरसात है तुम रुक जाओ भी।



अरमान भरे दिल की दुनिया, उजड़ी है अभी बर्बाद हुई।

बस बाकी है दीवार ज़रा, माटी में इसको मिलाओ भी।।



तैयार ज़रा कर दो मुझको, बिखरा बिखरा हूँ ठीक नहीं।

शृंगार अधूरा है मेरा, कुछ मोती मुझपे चढ़ाओ… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 2, 2015 at 10:30pm — 18 Comments

मन की देवी कुछ पल ठहरो

2222 2222 2222 2222

(16 रुक्नी ग़ज़ल- बीच बीच में 2 मात्रा को 1-1 भी लिखा गया है)

=====================================

मन की देवी कुछ पल ठहरो, मैं तेरा शृंगार तो कर लूँ।

इन आँखों से झरते हैं जो, उन मोती के हार तो गढ़ लूँ।।



जिस मन्दिर को तोड़ चली हो, उससे बहते रक्तिम रस से।

तेरे इन गोरे हाथों पर, मेहदी बन कर आज बिखर लूँ।।



कुंडल कंगन बिंदिया बाली, ये तेरे होंठों की लाली।

दिल की भष्म से करके टीका, इनकी नज़र मैं आज तो हर लूँ।।



जाना है तो… Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 1, 2015 at 10:46am — 10 Comments

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