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All Blog Posts Tagged 'ग़ज़ल' (726)

उल्लाला मुक्तिका: दिल पर दिल बलिहार है -संजीव 'सलिल'

उल्लाला मुक्तिका:

दिल पर दिल बलिहार है

संजीव 'सलिल'

*

दिल पर दिल बलिहार है,

हर सूं नवल निखार है..



प्यार चुकाया है नगद,

नफरत रखी उधार है..



कहीं हार में जीत…

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Added by sanjiv verma 'salil' on February 2, 2013 at 4:30pm — 9 Comments

खरामा - खरामा

खरामा - खरामा चली जिंदगी,

खरामा - खरामा घुटन बेबसी,

भरी रात दिन है नमी आँख में,

खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,

अचानक से मेरा गया बाकपन,

खरामा - खरामा गई सादगी,

शरम का ख़तम दौर हो सा गया,…

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Added by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 11:30am — 10 Comments

हाइकु मुक्तिका: संजीव 'सलिल'

हाइकु मुक्तिका:संजीव 'सलिल'

*

जग माटी का

एक खिलौना, फेंका

बिखरा-खोया.

फल सबने

चाहे पापों को नहीं

किसी ने ढोया.

*

गठरी लादे

संबंधों-अनुबंधों

की, थक-हारा.

मैं ढोता, चुप

रहा- किसी ने नहीं

मुझे क्यों ढोया?

*

करें भरोसा

किस पर कितना,…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 7:30pm — 10 Comments

मुक्तिका: क्या कहूँ?... संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'

*

क्या कहूँ कुछ कहा नहीं जाता.

बिन कहे भी रहा नहीं जाता..



काट गर्दन कभी सियासत की

मौन हो अब दहा नहीं जाता..



ऐ ख़ुदा! अश्क ये पत्थर कर दे,

ऐसे बेबस बहा नहीं जाता.



सब्र की चादरें जला दो सब.

ज़ुल्म को अब तहा नहीं जाता..



हाय! मुँह में जुबान रखता हूँ.

सत्य फिर भी कहा नहीं जाता..



देख नापाक हरकतें जड़ हूँ.

कैसे कह दूं ढहा नहीं जाता??



सर न हद से अधिक उठाना तुम…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:30am — 5 Comments

मुक्तिका : संजीव 'सलिल'

मुक्तिका :

नया आज इतिहास लिखें हम

संजीव 'सलिल'


*

नया आज इतिहास लिखें हम.

गम में लब पर हास लिखें हम..



दुराचार के कारक हैं जो

उनकी किस्मत त्रास लिखें हम..



अनुशासन को मालिक मानें

मनमानी को दास लिखें हम..



ना देवी, ना भोग्या मानें

नर-नारी सम, लास लिखें हम..



कल की कल को आज धरोहर

कल न बनें, कल आस लिखें हम..

(कल = गत / आगत / यंत्र / शांति)



नेता-अफसर सेवक…

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Added by sanjiv verma 'salil' on January 10, 2013 at 10:00am — 4 Comments

ग़ज़ल : - याद तेरी में

ग़ज़ल : - याद तेरी में

याद तेरी में गुनगुनाता हूँ

ज़िंदगी को करीब पाता हूँ |

 

शीत कहती मुझे तू छू कर देख

और मैं…

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Added by Abhinav Arun on December 18, 2010 at 8:00pm — 2 Comments

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