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All Blog Posts Tagged 'गीत' (163)

गीत ~ उसकी दीवानगी मेँ अब

उसकी दीवानगी मेँ अब मचलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी यादोँ मेँ रह रहकर

युँ जलना छोड दे ऐ दिल ।



जो तेरा हो नहीँ सकता उसे पाने की चाहत क्योँ ।

किसी संगदिल से आखिर तू करे इतनी मुहब्बत क्योँ ।



ये झूठी ख्वाहिशोँ की राह चलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी दीवानगी मेँ अब.............

तमाशे मेँ तेरे पडकर तमाशा हो गया हूँ मै ।

तेरी नादानियोँ से अब परेशाँ हो गया हूँ मै ।



खयालोँ तू उसके अब बहलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी दीवानगी मेँ… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 9:59am — 13 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
दियालिया उजास दे (नवगीत) // --सौरभ

आँक दूँ ललाट पर

मैं चुम्बनों के दीप, आ..

रात भर विभोर तू

दियालिया उजास दे..



संयमी बना रहा

ये मौन भी विचित्र है

शब्द-शब्द पी

करे निनाद-ब्रह्म का वरण..…

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Added by Saurabh Pandey on October 5, 2014 at 11:30am — 34 Comments

ख़्वाबों की बातें । (गीत)

ख़्वाबों की  बातें, अकसर किया करते  हैं  वो..!

फिर  शब-ए-तन्हाई  में,  रोया  करते  हैं  वो..!

शब-ए-तन्हाई= रात का अकेलापन;

ज़िंदगी  में कई  हादसे, आप ने  झेले  मगर..!

टूटे ख़्वाबों का  शिकवा  किया  करते  हैं  वो..!

ख़्वाबों की  बातें, अकसर किया करते  हैं  वो..!

शिकवा=शिकायत,

बिखरा सा  वो  ख़्वाब  और  अँधेरी  वो  रात..!

हाँ, मातम अब उनका, मनाया  करते  हैं  वो..!

ख़्वाबों की  बातें, अकसर किया करते  हैं …

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Added by MARKAND DAVE. on September 17, 2014 at 5:00pm — 2 Comments

भाईचारा बढ़े

भाईचारा बढ़े संग हम सब त्‍योहार मनायें।

इक ही घर परिवार शहर के हैं सबको अपनायें।

क्‍यूँ आतंक घृणा बर्बरता गली गली फैली है।

क्‍यों बरपाती कहर फज़ा यह तो यहाँ बढ़ी पली है।

पैठी हुईं जड़ें गहरी संस्‍कृति की युगों युगों से,

आयें कभी भी जलजले यह कभी नहीं बदली है।

भूले भटके मिलें राह में, उनको राह बतायें।

भाईचारा बढ़े---------------

 

दामन ना छूटे सच का ना लालच लूटे घर को।

हिंसा मज़हब के दम जेहादी बन शहर शहर…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 6, 2014 at 12:23pm — 2 Comments

याद बहुत ही आती है तू

याद बहुत ही आती है तू, जब से हुई पराई।

कोयल सी कुहका करती थी, घर में सोन चि‍राई।

अनुभव हुआ एक दि‍न तेरी, जब हो गई वि‍दाई।

अमरबेल सी पाली थी, इक दि‍न में हुई पराई।

परि‍यों सी प्‍यारी गुड़ि‍या को जा वि‍देश परणाई।।

याद बहुत ही आती है तू---------

लाख प्रयास कि‍ये समझाया, मन को कि‍सी तरह से।

बरस न जायें बहलाया, दृग घन को कि‍सी तरह से।

वि‍दा समय बेटी को हमने, कुल की रीत सि‍खार्इ।

दोनों घर की लाज रहे बस, तेरी सुनें…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 27, 2014 at 8:00am — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
दर सारे दीवार हो गए ( गीत ) गिरिराज भंडारी

दर सारे दीवार हो गए

**********************

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गये

 

भौतिकता की अति चाहत में

सब सिमटे अपने अपने में

खिंची लकीरें हर आँगन में  

हर घर देखो , चार हो गये

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे दीवार हो गए

 

पुत्र कमाता है विदेश में

पुत्री तो ससुराल हो गयी

सब तन्हा कोने कोने में

तनहा सब त्यौहार हो गए

 

सारी खिड़की बंद लगीं अब 

दर सारे…

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Added by गिरिराज भंडारी on August 25, 2014 at 8:30pm — 34 Comments

बस बात करें हम हिन्‍दी की

बस बात करें हम हिन्‍दी की।

न चंद्रबिन्‍दु और बिन्‍दी की।

ना बहसें, तर्क, दलीलें दें,

हम हिन्‍दुस्‍तानी, हिन्‍दी की।।

हों घर-घर बातें हिन्‍दी की।

ना हिन्‍दू-मुस्लिम-सिन्‍धी की।

बस सर्वोपरि सम्‍मान करें,

हम हिन्‍दुस्‍तानी, हिन्‍दी की।।

पथ-पथ प्रख्‍याति हो हिन्‍दी की।

ना जात-पाँत हो हिन्‍दी की।

बस जन जाग्रति का यज्ञ करें,

हम हिन्‍दुस्‍तानी, हिन्‍दी की।

एक धर्म संस्‍कृति हिन्‍दी…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 25, 2014 at 7:44pm — 6 Comments

हिन्दी ज़िन्‍दाबाद

ज़िन्‍दाबाद--ज़िन्‍दाबाद।

राष्‍ट्रभाषा-मातृभाषा हिन्‍दी ज़िन्‍दाबाद।।

ज़िन्‍दाबाद- जि़न्‍दाबाद।

हिन्द की है शान हिन्दी

हिन्द की है आन हिन्दी

हिन्द का अरमान हिन्दी

हिन्द की पहचान हिन्दी

इसपे न उँगली उठे रहे सदा आबाद।

ज़िन्‍दाबाद-ज़िन्‍दाबाद।

वक्‍़त जन आधार का है

हिन्दी पर विचार का है

काम ये सरकार का है

जीत का न हार का है

हिन्दी से ही आएगा…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 23, 2014 at 8:22am — 9 Comments

आज जो भी है वतन

आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।

क्या दिया हमने इसे, ये सोचने की बात है।

कितने शहीदों की शहादत बोलता इतिहास है।

कितने वीरों की वरासत तौलता इतिहास है।

देश की खातिर जाँबाज़ों ने किये फैसले,

सुन के दिल दहलता है, वो खौलता इतिहास है।

देश है सर्वोपरि, न कोई जात पाँत है।

आज जो भी है वतन, आज़ादी की सौगात है।

आज़ादी से पाई है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

सर उठा के जीने की, कुछ करने की प्रतिबद्धता।

सामर्थ्य कर…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 22, 2014 at 9:00pm — 7 Comments

क्रांति का बिगुल ही अब नव चेतना जगाएगा

लोकतंत्र कब तलक यूँ जनता को भरमाएगा।

स्वतंत्रता का जश्न अब न और देखा जाएगा।

भ्रष्टाचार दुष्कर्मों से घिरा हुआ है देश देखलो,

इतिहास कल का नारी के नाम लिखा जाएगा।

क्रांति का बिगुल ही अब नव-चेतना जगाएगा।

आ गया है फि‍र समय जुट एक होना ही पड़ेगा।

दुष्ट नरखांदकों से फि‍र दो चार होना ही पड़ेगा।

गणतंत्र और स्वतंत्रता की शान की खातिर हमें,

बाँध के सिर पे कफ़न घर से निकलना ही पड़ेगा।

सिर कुचलना होगा साँप जब भी फन…

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Added by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on August 21, 2014 at 9:00pm — 6 Comments

क्यों गाती हो कोयल : नीरज नीर

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल

है पिया मिलन की आस

या बीत चुका मधुमास

वियोग की है वेदना

या पारगमन है पास

मत जाओ न रह जाओ यह छोड़ अम्बर भूतल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल



तू गाती तो आता

यह वसंत मदमाता

तू आती तो आता

मलयानिल महकाता

तू जाती तो देता कर जेठ मुझे बेकल

क्यों गाती हो कोयल होकर इतना विह्वल



कलि कुसुम का यह देश

रह बदल कोई वेष

सुबह सबेरे आना

हौले से तुम गाना…

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Added by Neeraj Neer on April 19, 2014 at 8:30pm — 9 Comments

अरुण से ले प्रकाश तू / गीत (विवेक मिश्र)

अरुण से ले प्रकाश तू

तिमिर की ओर मोड़ दे !



मना न शोक भूत का

है सामने यथार्थ जब

जगत ये कर्म पूजता

धनुष उठा ले पार्थ ! अब

सदैव लक्ष्य ध्यान रख

मगर समय का भान रख

तू साध मीन-दृग सदा

बचे जगत को छोड़ दे !



विजय मिले या हार हो

सदा हो मन में भाव सम

जला दे ज्ञान-दीप यूँ

मनस को छू सके न तम

भले ही सुख को साथ रख

दुखों के दिन भी याद रख

हृदय में स्वाभिमान हो

अहं को पर, झिंझोड़ दे !…



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Added by विवेक मिश्र on March 23, 2014 at 4:00am — 17 Comments

होली और बादर : गीत

आ रे कारे बादर

रँग बरसाने आ रे

श्याम खेलें होरी

तू बरसाने आ रे

रँग अलग अलग भर ला

लाल, बैंगनी, पीला

कोई बच ना जाए

सबको कर दे गीला

खुशियों की बारिश में

तू भिंगाने आ रे

इन्द्रधनुष से रँग ला

त्याग उदासी काली

उल्लसित जीवन, डाल

मुख पे उमंग लाली ..

जो उदास है जग में

उन्हें हँसाने आ रे

हाथों में पिचकारी

गाल पे रंग गुलाल

सब मिल खेलें होरी

अंचल धरा का लाल

जीवन में खुशियाँ भर…

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Added by Neeraj Neer on March 16, 2014 at 2:04pm — 6 Comments

हर बार - (रवि प्रकाश)

उस पार किनारा होगा,हर बार यही लगता है;

कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है।

मंज़िल पे जा निकलेंगे,ये ऊँचे-नीचे रस्ते;

फिर दौर हमारा होगा,हर बार यही लगता है॥

.

तपती राहों पे चल कर,

सूरज से आँख मिलाना;

रातों की बेचैनी को,शबनम के घूँट पिलाना।

बेकार न होंगे आँसू,नाकाम न होंगी आहें;

हर दर्द सहारा होगा,हर बार यही लगता है।

कुछ दूर नज़ारा होगा,हर बार यही लगता है॥

.

अक्सर कच्ची नींदों में,टूटे हैं बहुत से सपने;

उलझे हैं कहीं पे नाते,छूटे… Continue

Added by Ravi Prakash on March 11, 2014 at 2:33pm — 10 Comments

आयी चंद्रिका धवल..............( अन्नपूर्णा बाजपेई )

चाँदी के रथ पे सवार लिए जीवन नवल 

चिर प्रीतम संग चंद्रिका आयी धवल .............. 

प्रिय सखी निशा संग 

भरती किलकारियाँ 

गगन से धरा तक 

करती अठखेलियाँ 

रूप किशोरी सी चंद्रिका आयी धवल .........

शशि प्रियतम संग

चमचम सितारों वाली 

श्याम चुनरिया ओढ़े  

धीरे धीरे दबे पाँव 

प्रिय सुंदरी सी चंद्रिका आयी धवल ................ 

दुग्ध अभिसिंचित हये 

सभी तरुवर तड़ाग 

मुसकुराती…

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Added by annapurna bajpai on February 26, 2014 at 4:30pm — 9 Comments

गीत -- कुछ पात ही अब शेष रहे !!

आँगन की नीम कहे 

कुछ पात ही अब शेष रहे 

 

प्रिय बसंत तुम आना 

नव मधुमास ले आना 

निज कर तुम सजाना 

प्रीतम की राह तके 

आँगन की ..................

 

पत्तों पर से  ओस हटी 

मण्डल मे छायी धुंध हटी

अंतस मे कोंपल सजी 

नवजीवन ही आस रहे 

आँगन की नीम ...................

शरद शिशिर सब  है गए

सज धज ऋतुराज है आए

आहट पा नीम लहराये

चिर बसंत ही  शेष रहे

आँगन की…

Continue

Added by annapurna bajpai on February 5, 2014 at 8:30pm — 8 Comments

जाग रे मन !!!

जाग रे मन !

कब तक यूं ही सोएगा

जग मे मन को खोएगा

अब तो जाग रे मन !!

1)

सत्कर्मों की माला काहे न बनाई

पाप गठरिया है  सीस  धराई  

जाग रे !!!!

2)

माया औ पद्मा कबहु काम न आवे

नात नेवतिया साथ कबहु न निभावे

जाग रे !!!!

3)

दिवस निशि सब विरथा ही गंवाई

प्रीति की रीति अबहूँ  न निभाई

जाग रे !!!!!

4)

सारा जीवन यही जुगत लगाई

मान अभिमान सुत दारा पाई

जाग रे…

Continue

Added by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 5:30pm — 10 Comments

लाड़ली चली.. (अन्नपूर्णा बाजपेई)

बाबा की दहलीज लांघ चली

वो पिया के गाँव चली

बचपन बीता माँ के आंचल

सुनहरे दिन पिता का आँगन

छूटे संगी सहेली बहना भैया

मिले दुलारी को अब सईंया

मीत चुनरिया ओढ़ चली  

बाबा की ................

माँ की सीख पिता की शिक्षा

दुलार भैया का भाभी की दीक्षा

सखियों का स्नेह लाड़ बहना का

वो रूठना मनाना खेल बचपन का

भूल सब मुंह मोड चली

वो पिया के ...............

परब त्योहार हमको  बुलाना

कभी तुम न मुझको…

Continue

Added by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 5:30pm — 32 Comments

कुछ ऐसे पुकारा तुमने (अन्नपूर्णा बाजपेई)

कुछ इस तरह पुकारा तुमने

कदम भी मेरे लगे बहकने 

कुछ इस .........

दामिनी दमक उठी नैनो मे

सरगम छनक उठी साँसों मे

हृद वीणा सी  झंकृत कर दी

जागे से लगने लगे सपने 

कुछ .......................

अन्तर्भावों की सुरवलियों मे

उद्गारों की हारावलियों मे

शब्द सुशोभित सज्जित कर दी

मन-कानन सब लगे महकने 

कुछ .....................

अप्रकाशित एवं…

Continue

Added by annapurna bajpai on December 21, 2013 at 9:00pm — 22 Comments

खुशियों के हम दीप जलाएं

खुशियों के हम दीप जलाएं

जग में उजियारा फैलाएं  



हो हमसे कोई हृदय दुखी

वहाँ  प्रेम का बीज बो आयें

खुशियों के हम दीप जलाएं

जग में उजियारा फैलाएं 



हो न कोई भूखा, ग़मगीन

हों सब रोजगारी व ज़हीन

खुशियों के हम दीप जलाएं

जग में उजियारा फैलाएं 



निर्भय हो समाज में सभी जहाँ

बेटियों का हो सम्मान जहाँ  

खुशियों के हम दीप जलाएं

जग में उजियारा फैलाएं



भाई हों राम लक्ष्मण जहाँ

ना हो सीता वनवास जहाँ   …

Continue

Added by Meena Pathak on December 5, 2013 at 4:30pm — 18 Comments

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