For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरुण से ले प्रकाश तू / गीत (विवेक मिश्र)

अरुण से ले प्रकाश तू
तिमिर की ओर मोड़ दे !

मना न शोक भूत का
है सामने यथार्थ जब
जगत ये कर्म पूजता
धनुष उठा ले पार्थ ! अब
सदैव लक्ष्य ध्यान रख
मगर समय का भान रख
तू साध मीन-दृग सदा
बचे जगत को छोड़ दे !

विजय मिले या हार हो
सदा हो मन में भाव सम
जला दे ज्ञान-दीप यूँ
मनस को छू सके न तम
भले ही सुख को साथ रख
दुखों के दिन भी याद रख
हृदय में स्वाभिमान हो
अहं को पर, झिंझोड़ दे !

अथाह दुख समुद्र में 
कभी कहीं जो तू घिरे
न सोच, पाल तान दे
कि दिन बुरा अभी फिरे
तू बीच सिन्धु ज्वार रख
न संशयों के द्वार रख
उदासियों की सीपियाँ
पड़ी हुईं जो, फोड़ दे !



(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 895

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 3, 2014 at 9:14am

बहुत खूबसूरत गीत लिखा है आ० विवेक जी 

यथार्थवादी हो सिर्फ लक्ष्य को देखना, जीत हार में समभाव रखना, स्वाभिमान संजोना अहं भाव त्यागना....बहुत सुन्दर सुन्दर भावों को सुन्दर प्रवहमान शब्दों में पिरोया है..

बहुत बहुत बधाई इस सार्थक सुन्दर सृजन पर.

Comment by विवेक मिश्र on March 26, 2014 at 8:10pm

आपकी टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभारी हूँ आदरणीय बृजेश नीरज जी, आदरणीया राजेश कुमारी जी, आदरणीया डॉ.आशुतोष मिश्र जी एवं आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी|

Comment by annapurna bajpai on March 25, 2014 at 10:18pm

बेहद सुंदर भाव , शिल्प संयोजन सभी कुछ अपने मे बांधता सा प्रतीत होता  है आपको बहुत बधाई आ0 विवेक मिश्रा जी । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 4:58pm

जीवन को जीने का अंदाज सिखाती उर्जा से ओत प्रोत रचना ..आज आपसे पहली बार रूबरू होने का अवसर मिला..आपको ढेर सारी बधाई के साथ सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 24, 2014 at 9:55pm

बहुत ओजपूर्ण गीत लिखा है बस लय में बहती चली गई ...बहुत- बहुत बधाई विवेक मिश्र  जी .

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:42am

इस रचना में ग़ज़लों की ही तर्ज पर मात्राएँ गिनी और गिराई गयी हैं।
हाँ विवेक भाई यह तो स्पष्ट है ....क्योकि मैंने गीत में इतनी अधिक बार मात्रा गिरने की घटना घटित होते नहीं देखा है
नवगीत में भी मात्रा गिराने को लेकर खूब मतभेद है, कम ही नवगीतकार मात्रा गिराने को सही मानते हैं वो भी इतना अधिक ... !!! 

Comment by विवेक मिश्र on March 24, 2014 at 1:33am
वीनस भाई - यह गीत (या गीत जैसा कुछ जो भी बन पड़ा है) लिखते समय मैंने मात्रा गिनने की कोशिश भी नहीं की थी। बस यूँ ही गुनगुनाते हुए लिखता गया। सच कहूँ तो तो हिन्दी नियमों के अनुसार मात्राओं की गणना मुझे आती ही नहीं। सौरभ जी की बात से सहमत हूँ कि मेरा यह 'प्रथम प्रयास' उर्दू लिहाज़ के सापेक्ष है। कारण कि इस रचना में ग़ज़लों की ही तर्ज पर मात्राएँ गिनी और गिराई गयी हैं।
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 24, 2014 at 1:03am

भाषा-काव्य में कारक के चिह्नों का ’गिरना’ वस्तुतः देवनागरी स्वर की अपनी सीमाओं के कारण मान्य है. इसे मात्रा का ’गिरना’ नहीं कहते. देवनागरी में उपलब्ध स्वरों के अलावे जो स्वर प्रयुक्त होते हैं उनके कारण व्यंजनों की मात्रा प्रतीत होते स्वरों की मात्रा के अलावे दीखने लगती है. यहीं हिन्दी भाषा,  जिसमें देसज की बहुतायत ही नहीं, इसका आचार-व्यवहार भी है, के प्रयोगकर्ता भ्रम मे फँस जाते हैं. 

गीतों ही नहीं छंदों में भी ऐसे प्रयोग मान्य रहे हैं. लेकिन इसकी छूट अन्यान्य शब्दों में नहीं होनी चाहिये जैसा कि उर्दू के लिहाज के अनुसार ग़ज़लों-नज़्मों मे होता है.

आदरणीय एहतराम इस्लाम तो ग़ज़ल तक में मात्रा गिराने को शाइर की विवशता के रूप में लेते हैं. लेकिन कारक की विभक्तियों साथ ही है, हो था आदि-आदि के प्रति नरम रुख़ अपनाने को कहते हैं.

इस गीत / नवगीत में विवेक भाई का प्रयास उर्दू लिहाज़ के सापेक्ष है.

Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 12:38am

यदि यह गीत लाम गाफ़ अनुसार लिखा गया है फिर तो कई प्रश्न खड़े हो जाते हैं
क्योकि मैंने गीत की मात्रा गिनते समय मात्रा को गिरते हुए नहीं देखा है ...
हाँ नवगीत के लिए ऐसा खूब देखा है ... इसका कलेवर नवगीत का तो नहीं दिखता ...

विवेक भाई कृपया स्पष्ट करें

Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 8:12pm

बहुत सुन्दर गीत! आपको बहुत-बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, नए अंदाज़ की ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके संकल्प और आपकी सहमति का स्वागत है, आदरणीय रवि भाईजी.  ओबीओ अपने पुराने वरिष्ठ सदस्यों की…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपका साहित्यिक नजरिया, आदरणीय नीलेश जी, अत्यंत उदार है. आपके संकल्प का मैं अनुमोदन करता हूँ. मैं…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"जी, आदरणीय अशोक भाईजी अशोभनीय नहीं, ऐसे संवादों के लिए घिनौना शब्द सही होगा. "
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . उल्फत
"आदरणीय सुशील सरना जी, इन दोहों के लिए हार्दिक बधाई.  आपने इश्क के दरिया में जोरदार छलांग लगायी…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"माननीय मंच एवं आदरणीय टीम प्रबंधन आदाब।  विगत तरही मुशायरा के दूसरे दिन निजी कारणों से यद्यपि…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"आप पहले दोहे के विषम चरण को दुरुस्त कर लें, आदरणीय सुशील सरना जी.   "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आप वस्तुतः एक बहुत ही साहसी कथाकार हैं, आ० उस्मानी जी. "
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया विभा रानी जी, प्रस्तुति में पंक्चुएशन को और साधा जाना चाहिए था. इस कारण संप्रेषणीयता तनिक…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"सादर नमस्कार आदरणीय सर जी। हमारा सौभाग्य है कि आप गोष्ठी में उपस्थित हो कर हमें समय दे सके। रचना…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रस्तुति नम कर गयी. रक्तपिपासु या हैवान या राक्षस कोई अन्य प्रजाति के नहीं…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"घटनाक्रम तनिक खिंचा हुआ प्रतीत तो हो रहा है, लेकिन संवादों का प्रवाह रुचिकर है, आदरणीय शेख शहज़ाद…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service