Added by rajkumar sahu on August 31, 2011 at 3:39pm — No Comments
1. समारू - कामनवेल्थ गुरू सुरेश कलमाड़ी, जांच एजेंसी के सामने मुंह नहीं खोल रहे हैं।
पहारू - मगर, ए. राजा तो जुबान खोलकर सरकार का सिरदर्द बन गया है।
2. समारू - बिलासपुर में आईटीआई का पर्चा लीक होने की खबर है।
पहारू - छग के लिए पर्चा लीक होना कौन सी बड़ी बात है।
3. समारू - ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने सूत की माला से जूता साफ किया।
पहारू - नेता तो जनता को बरसों से जूते के ‘तलवे’ नीचे रखते आ रहे हैं।
4. समारू - छग सरकार ने अब शहरों…
Added by rajkumar sahu on July 27, 2011 at 9:00pm — No Comments
Added by l.r.gandhi on June 20, 2011 at 5:30pm — 1 Comment
मेरे अग्रज कवि केदारनाथ अग्रवाल का व्यक्तित्व
पत्रों के आइने में ॰॰॰॰
[महेंद्रभटनागर]
महेंद्र के नाम केदार की पाती
संदर्भ : …
ContinueAdded by MAHENDRA BHATNAGAR on June 6, 2011 at 9:30am — No Comments
ये नहीं कहूँगी की याद आ गई, क्योंकि उनको तो कभी भूलती ही नहीं, हाँ उनकी कमी का फिर से एहसास हुआ जब हर ओर माँ के अनुपम स्वरूपों को देखा आज मदर्स डे पर |
सुबह सुबह मुझे भी मेरे बच्चों की ओर से प्यार भरी मुस्कानों के साथ स्वयं बनाया हुआ कार्ड और उपहार मिला :)
सुख और दुःख का अजीब संगम था वो पल..नहीं ..सिर्फ वो पल नहीं ..आज का दिन ही शायद, तब माँ के लिए कोई निर्धारित दिन नहीं था किन्तु माँ थीं मेरे पास..आज वो नहीं, हाँ सशरीर तो नहीं किन्तु उनकी दी शिक्षा, संस्कार और स्नेह सदा ही…
Added by Lata R.Ojha on May 8, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
मेरे आत्मीय बाबा नागार्जुन
[महेंद्रभटनागर]
बाबा नागार्जुन (मैथिली भाषा के कवि ‘यात्री’ / घर का नाम — वैद्यनाथ मिश्र) का जन्म सन् 1911; ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा (जून) के दिन बताया जाता है।…
ContinueAdded by MAHENDRA BHATNAGAR on May 6, 2011 at 10:30am — 2 Comments
Added by R N Tiwari on April 18, 2011 at 10:30am — No Comments
प्रिय ,अभी
वक्त कैसे बीत रहा हैं अब आप को क्या बताऊँ हर तरफ तुम्हारी ही यादें है .हर तरफ हर जगह तुम्ही दिख रहे हो .. तुम्हारी ओ मुस्कुराहट.. तुम्हारी आहट बन कर सताती है.......तुम्हें देखने की जो ललक तब थी.. ओ…
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 10, 2011 at 2:30pm — No Comments
8 मार्च -अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष
जंग ए आजादी के दौर में राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त ने आंख के आंसूओं में अपनी कलम डूबाकर इन पंक्तियों की रचना की थी
अबला जीवन तेरी हाय यही कहानी !
आंचल में है दूध और आंखों में पानी
आज़ादी के दौर में यह कहानी बहुत कुछ बदल चुकी है। देश की महिलाएं सातवें आसमान में देश का झंडा गाड़कर कल्पना चावला बन रही हैं। किरन बेदी बनकर अपराधियों से लोहा ले रही हैं। अरुणा राय और मेधा…
ContinueAdded by prabhat kumar roy on March 7, 2011 at 7:00am — No Comments
कहावत है की प्यार जहाँ, दर्द, वहाँ , आखिर ऐसा क्यूँ ?
प्यार, दर्द, एहसास, सच और झूठ सब मिलकर ' छुपा -छुपी ' का खेल खेलने का फैसला किया ! और जैसे ही दर्द ने छुपाने को कहा सब अपने-अपने जगह छुप गए, फिर दर्द ने गिनती सुरु की और सब पकडे भी गए, पर प्यार पकड़ा नहीं गया, क्यूंकि प्यार गुलाब की झाड़ियों में जा छुपा था, सब ने मिलकर प्यार को खोज निकाला, फिर दर्द ने प्यार को खीचा, गुलाब की झाड़ियों में छुपे होने से दर्द को जोर लगाकर खीचने से गुलाब के कांटे प्यार की…
Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on March 6, 2011 at 7:30pm — No Comments
Added by rajendra kumar on February 22, 2011 at 9:30am — 1 Comment
"इंसाफ जालिमों की हिमायत में जायेगा,
ये हाल है तो कौन अदालत में जायेगा."
राहत इन्दोरी के ये शब्द और २६ नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के द्वारा इलाहाबाद हाईकोर्ट पर किया गया दोषारोपण कि "हाईकोर्ट में सफाई के सख्त कदम उठाने की ज़रुरत है क्योंकि यहाँ कुछ…
ContinueAdded by shalini kaushik on January 21, 2011 at 1:00pm — No Comments
Added by Sachchidanand Pandey on November 24, 2010 at 9:16pm — No Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 9:30am — 21 Comments
Added by Ratnesh Raman Pathak on November 14, 2010 at 12:41pm — 4 Comments
Added by Ratnesh Raman Pathak on October 29, 2010 at 6:00pm — 1 Comment
Added by Sachchidanand Pandey on October 25, 2010 at 4:30am — 2 Comments
Added by Pooja Singh on October 9, 2010 at 12:30am — 4 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on October 4, 2010 at 8:31pm — 3 Comments
Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on July 16, 2010 at 6:00am — 1 Comment
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