For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog (496)

सामाजिक न्याय दिवस पर दोहे

सामाजिक न्याय दिवस (२० फरवरी) पर

जाति  धर्म  के  फेर  से, मुक्त  नहीं  जब देश

तब सामाजिक न्याय का, मिले कहाँ परिवेश।।

*

कत्ल अपहरण  रेप की, बलशाली को छूट

है सामाजिक न्याय की, यहाँ आज भी लूट।।

*

चन्द यहाँ खुशहाल है, शेष सभी गमगीन

सामाजिक समता नहीं, देश भले स्वाधीन।।

*

धनवानों को न्याय हित, घर आता आयोग

न्याय न्याय चिल्ला मरे, लेकिन निर्धन लोग।।

*

सज्जन को करना क्षमा, एक बार है न्याय

दुर्जन को बस दण्ड ही, केवल शेष…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2022 at 11:00pm — 10 Comments

रविदास जयन्ती पर दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



माघ पूर्णिमा  जन्म  ले, कहलाए रविदास

जीवन जीकर आम का, बातें की हैं खास।१।

*

देते जीवन भर रहे, नित्य सीख अनमोल

सबके हितकारक रहे, सच है उनके बोल।२।

*

रहो प्रेम से कह गये, जातिवाद को त्याग

जिसमें जले समाज ये, यह तो ऐसी आग।३।

*

दिया नित्य रविदास ने, केवल इतना ज्ञान

छोड़ो पद या जाति को, करो गुणों का मान४।।

*

निर्मल मन भागीरथी, करता कह निष्पाप

जनसाधारण जन्म ले, आप हो गये आप।५।

*

रहे न लालच द्वेष जब, मिटे बैर का भाव

ऐसे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 16, 2022 at 3:13am — 6 Comments

वसंत के दोहे

शुक्ल पंचमी माघ  की,  लायी  यह संदेश

सजधज साथ बसंत के, बदलेगा परिवेश।।

*

कुहरे  की  चादर  हटा, लगी  निखरने  धूप

दुल्हन जैसा खिल रहा, अब धरती का रूप।।

*

डाल नये परिधान अब, दिखे नयी हर डाल

हर्षित इस से सज  रही, भँवरों  की चौपाल।।

*

तरुण हुईं हैं डालियाँ, कोंपल हुई किशोर

उपवन में उल्लास  है, अब  तो चारो ओर।।

*

गुनगुन भँवरों  ने  कहे, स्नेह  भरे जब बोल

मार ठहाका हँस पड़ी, कलियाँ घूँघट खोल।।

*

नहीं  उदासी  से …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 5, 2022 at 9:00am — 8 Comments

दोहा सप्तक -७( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' )

मन्थन कर के सिन्धु का, बँटवारे में कन्त

राजनीति को क्यों दिए, बहुत विषैले दन्त।१।

*

दुख को तो विस्तार है, सुख में लगा हलन्त

ऐसी हम से भूल क्या, कुछ तो बोलो कन्त।२।

*

वैसे कुछ तो बाल भी, कहते सत्य भदन्त

मन छोटी  सी  कोठरी, बातें  रखे अनन्त।३।

*

आया है उत्कर्ष का, यहाँ न एक बसन्त

केवल पतझड़ में जिये, यूँ जीवन पर्यन्त।५।

*

सुख तो मुर्दा देह सा, केवल दुख जीवन्त

जाने किस दिन आ स्वयं, ईश करेंगे अन्त।४।

*

कहलाने की होड़ में,ओछे लोग…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2022 at 8:43pm — 2 Comments

शिशिर के दोहे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

ठण्ड कड़ाके की पड़े, सरसर चले समीर।

नित्य शिशिर में सूर्य का, चाहे ताप शरीर।१।

*

दिखे शिशिर में जो नहीं, गजभर दूरी पार।

लगता  धरती  से  हुआ, अम्बर  एकाकार।२।

*

धुन्ध लपेटे भोर तो, विरहन जैसी साँझ।

विधवा लगते वृक्ष हैं, धरती लगती बाँझ।३।

*

घना कुहासा ढब घिरे, झरे हवा से नीर।

बदली जैसी भीत भी, धूप न पाये चीर।४।

*

देती है हिम खण्ड सा, शीतलहर अहसास।

चन्दा जैसा दीखता, सूर्य  क्षितिज के पास।५।

*

हुए वृक्ष सब काँच से, हिम की ओढ़…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2022 at 7:16am — 4 Comments

मकर संक्रांति के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

आया है जन पर्व जो, मकर संक्रांति आज।

गंगा तट पर सब  जुटे, छोड़  सकारे काज।१।

*

आज उत्तरायण हो चले, मकर राशि पर सूर्य।

हर घाट शंखनाद  अब, बजता  चहुँदिश तूर्य।२।

*

निशा घटे बढ़ते दिवस, बढ़ता सूर्य प्रकाश।

भर देते हैं इस  दिवस, कनकौवे  आकाश।३।

*

विविध प्रांत, भाषा यहाँ, भारत देश विशाल।

विविध पर्व भी हैं  मगर, मनें  सनातन चाल।४।

*

गंगा में डुबकी  लगा, करते हैं सब स्नान।

करते पाने पुण्य फिर, अन्न धन्न का दान।५।

*

कहो मकर संक्रांत…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2022 at 10:39am — 3 Comments

दोहा सप्तक -६( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' )

रह कर अपनी मौज में, बहना  नित चुपचाप

सीख सिन्धु से सीख ये, जीवन पथ को नाप।।

*

जन सम्मुख जो दे रहे, आपस में अभिशाप

सत्ता को करते  मगर, वो  ही  भरत मिलाप।।

*

शासन  भर  देते रहे, जनता  को सन्ताप

सत्ता बाहर बैठ अब, करते बहुत विलाप।।

*

बचपन से ही बन रहे, जो गुण्डों की खाप

राजनीति की छाँव में, रहे नोट नित छाप।।

*

दुख वाले घर द्वार पर, सुख देता जब थाप

उड़ जाते  हैं  सत्य  है, बनकर  आँसू भाप।।

*

कह लो  चाहे  तो  बुरा, चाहे अच्छा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 4, 2022 at 8:47pm — 8 Comments

सिर्फ सुख में रहें सब नये वर्ष में - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२ /१२२१/२२१२



खूब आशीष  दो  रब नये वर्ष में

सिर्फ सुख में रहें सब नये वर्ष में/१

*

सुन जिसे पीर मन की स्वयं ही हरे

गीत  ऐसा  लिखें  अब  नये वर्ष में/२

*

छोड़कर द्वेष बाँटें सभी में सहज

प्रेम की सीख मजहब नये वर्ष में/३

*

नीति ऐसी बने जिससे आगे न हो

बन्द कोई भी मकतब नये वर्ष में/४

*

काम आये यहाँ और के आदमी

सिर्फ साधे न मतलब नये वर्ष में/५

*

मौलिक/अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2021 at 10:39am — 2 Comments

जाते साल के दोहे

आने  वाले  साल   से,  कहे  बीतता  वर्ष
मुझ सा दुख मत बाँटना, देना केवल हर्ष।।
*
वर्ग भेद जग से मिटा, मिटा जाति संधर्ष
कर देना कर थामकर, निर्धन का उत्कर्ष।।
*
पहले सा परमार्थ भी, वह फिर गुणे सहर्ष
स्वार्थ साधना ही न हो, सत्ता का निष्कर्ष।।
*
घर आँगन है जो बसा, झाड़ पोंछ सब कर्ष
भर   देना  सौहार्द्र  से, अब  के   भारतवर्ष।।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर'

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2021 at 7:30am — No Comments

दोहा सप्तक -५ ( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' )

सूरज यूँ है गाँव में, बहुत अधिक अँधियार।

नगर-नगर ही कर रही, किरणें हर व्यापार।।१

*

बन जाती है देश  में, जिस की भी सरकार।

जूती सीधी कर रहे, नित उस की अखबार।।२

*

कैसे ये बस्ती जली, क्यों उजड़ा बाजार।

किस से पूछें बोलिए, जगी नहीं सरकार।।३

*

गमलों में  फसलें  उगा, खेतों  में हथियार।

इसी सोच से क्या सुखी, होगा यह संसार।।४

*

कोई जब हो छीनता, थोड़ा भी अधिकार।

आँखों से आँसू  नहीं, निकलें  बस अंगार।।५

*

बातें व्यर्थ सुकून की,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2021 at 6:02am — 6 Comments

दोहा सप्तक -४ (लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर')

लेता है भुजपाश में, बढ़चढ़ ज्यू ही काम।

एक हवेली प्यार  की, होती नित नीलाम।।१

*

कर लो ढब ऐश्वर्य  को, चाहे  इस के नाम।

दुधली की दुधली रहे, हर जीवन की शाम।।२

*

सिलता रहा जुबान जो, बढ़चढ़ यहाँ निजाम।

शब्दों ने झर आँख से, किया कहन का काम।।३

*

निर्धन को जिसने दिये, हरदम कम ही दाम।

धनी उसे  ठग  ले  गया, पैसा  नित्य तमाम।।४

*

रमे  यहाँ  व्यापार में , सब  ले  उसका नाम।

महज भक्ति के भाव से, किसको प्यारे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2021 at 10:00am — 4 Comments

दोहा सप्तक-३

लघु से लघुतम बात को, जो देते हैं तूल।

ये तो निश्चित जानिए, मन में उनके शूल।१।

*

बनते बाल दबंग अब, पढ़ना लिखना भूल।

हुए नहीं क्यों सभ्य वो, जाकर नित स्कूल।२।

*

करती मैला भाल है, मद में उठकर धूल।

करे शिला को ईश यूँ, न्योछावर हो फूल।३।

*

साक्ष्य समय विपरीत पर, तजे सत्य ना मूल।

ज्यों नद सूखी  पर  हुए, एक  नहीं  दो कूल।४।

*

जलने को पथ काल का, तकना होगी भूल।

हवा कभी  होती  नहीं, सुनो  दीप अनुकूल।५।

*

कड़वी बातें तीर सी,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2021 at 10:28pm — 8 Comments

दोहा सप्तक -२

राजनीति के पेड़  से, लिपटे  बहुत भुजंग।

जिनके विष से हो गये, सब आदर्श अपंग।१।

*

बँधकर पक्की डोर से, छूना नहीं अनंग।

सबके मन की चाह है, होना कटी पतंग।२।

*

शिव सा बना न आचरण, होते गये अनंग।

लील रहे  जीवन  तभी, ओछे  प्रेम प्रसंग।३।

*

क्षीण,हीन उल्लास अब, शेष न कोई ढंग।

हालातों ने कर दिया, जीवन अन्ध सुरंग।४।

*

बेढब फीके  हो  गये, जब  से जीवन रंग।

कितनों ने है कर लिया, अपनी साँसें भंग।५।

*

तन की गलियाँ बढ़ गयीं, मन का आँगन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 16, 2021 at 2:26pm — 4 Comments

दोहा सप्तक -१

धनी बसे परदेश में, जनधन सदा समेट।

ढकते निर्धन  लोग यूँ, यहाँ  पाँव से पेट।१।

*

कीचड़ में जब हैं सने, पाँव तलक हम दीन।

राजन  के  प्रासाद  का, क्या  देखें कालीन।२।

*

नेताओं की हर सभा, फिरे बजाती आज।

यूँ जनता है झुनझुना, भले वोट का नाज।३।

*

ऊँचे  आलीशान   हैं,  नेताओं  के  गेह।

दुहरी जिनके बोझ से, हुई देश की देह।४।

*

गूँगे बहरे लोग  जब, भरे  पड़े इस देश।

कैसे बदले बोलिए, अपना यह परिवेश।५।

*

सुख के दिन दोगे बहुत,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 15, 2021 at 4:30am — 8 Comments

हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



बजेगा भोर का इक दिन गजर आहिस्ता आहिस्ता 

सियासत ये भी बदलेगी मगर आहिस्ता आहिस्ता/१

*

सघन  बादल  शिखर  ऊँचे  इन्हें  घेरे  हुए  हैं पर

उगेगी घाटियों  में  भी  सहर आहिस्ता आहिस्ता/२

*

हमें लगता है हर मन में अगन जलने लगी है अब

तपिस आने लगी है जो इधर आहिस्ता आहिस्ता/३

*

हमीं  कम  हौसले  वाले  पड़े  हैं  घाटियों  में  यूँ

चढ़े दिव्यांग वाले भी शिखर आहिस्ता आहिस्ता/४

*

अभी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 8, 2021 at 6:30am — 8 Comments

दूर तम में बैठकर वो रोशनी अच्छी लगी- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२२/२१२



मन था सुन्दर तो वदन की हर कमी अच्छी लगी

उस के अधरों  ने  कही  जो  शायरी  अच्छी लगी/१

*

सात जन्मों  के  लिए  वो  बन्धनों  में बँध गये

जिन्दगी के बाद जिनको जिन्दगी अच्छी लगी/२

*

आँख चुँधियाती रही जो पास में अपनी सनम

दूर  तम  में  बैठकर  वो  रोशनी  अच्छी  लगी/३

*

एक  हम  ही  भागते  रंगीनियों  से  दूर  नित

और किसको बोलिए तो सादगी अच्छी लगी/४

*

हाथ में था हाथ उनका दूर तक कोई न…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2021 at 7:32pm — 8 Comments

जिसकी आदत है घाव देने की - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२ १२१२ २२

बल रहित मैं हूँ  भीम कहता है

तुच्छ खुद को असीम कहता है/१

*

जिसकी आदत है घाव देने की

वो स्वयम को हकीम कहता है/२

*

आम पीपल  को  भूल बैठा वो

और कीकर को नीम कहता है/३

*

राम से जो गुरेज उस को नित

क्यों तू खुद को रहीम कहता है/४

*

धर्म क्या है समझ  न पाया जो

धर्म को  वो  अफीम  कहता है/५

*

हाथ जिसका है कत्ल में या रब

वो भी खुद को नदीम कहता…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2021 at 10:04pm — 4 Comments

क्यों कर हसीन ख्वाब की बस्ती मिटा दूँ मैं- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



कैसे किसी की याद में सब कुछ भुला दूँ मैं

क्यों कर हसीन ख्वाब की बस्ती मिटा दूँ मैं/१

*

बचपन में जिसने आँखों को आँसू नहीं दिया 

क्योंकर जवानी जोश  में  उस को रुला दूँ मैं/२

*

शायद कहीं  पे  भूल  से वादा  गया मैं भूल

जिससे लिखा है न्याय में खुद को दगा दूँ मैं/३

*

घर में उजाला  मेरे  भी  आयेगा डर यही

पथ में किसी के दीप तो यारो जला दूँ मैं/४

*

अपना पराया भेद  वो  भूलेगा इस से क्या

उसकी जमीं में अपनी भी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2021 at 11:14pm — 2 Comments

हुई कागजों में पूरी यूँ तो नीर की जरूरत - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

११२१/२१२२/११२१/२१२२



भरें खूब घर स्वयं के सदा देशभर को छल के

मिले सारे अगुआ क्योंकर यहाँ सूरतें बदल के/१

*

गिरी  राजनीति  ऐसी  मेरे  देश  में  निरन्तर

कोई जेल से लड़ा तो कोई जेल से निकल के/२

*

मिटा भाईचारा अब तो बँटे सारे मजहबों में

सही बात हैं समझते कहाँ लोग आजकल के/३

*

हुई कागजों में  पूरी  यूँ  तो  नीर की जरूरत

चहुँ ओर किन्तु दिखते हमें सिर्फ सूखे नल के/४

*

कई दौर गुफ्तगू के किये हल को हर समस्या

नहीं आया कोई रस्ता कभी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 25, 2021 at 11:22pm — 2 Comments

शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२२/२२१/२१२२



हँसना सिखाया हमने आँखों के आँसुओं को

सम्बल दिया है हरपल  कमजोर बाजुओं को।१।

*

कहती है रूह उन  की  बलिदान जो हुए थे

पहचान कर  हटाओ  जयचन्द पहरुओं को।२।

*

शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा

करने लगे हैं निशिदिन बदनाम साधुओं को।३।

*

उनको तमस भला क्यों जायेगा ऐसे तजकर

बैठे जो बन्द कर के  दिन  में भी चक्षुओं को।४।

*

कैसे वसन्त आये पतझड़ को रौंद के फिर

हर डाल…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2021 at 10:19pm — 14 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service