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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog (122)

डॉ रेखा ( (कहानी)

"ये कहाँ जा रही हो अम्मी ?" पड़ोस वाली महिला ने पूछा

"अरे वो अपनी मधु है न उसके घर से खबर आयी है , उसके पेट में दर्द हो रहा है , पेट से है न वो , पिछला जापा भी मैंने किया था , इस बार भी ......." बूढ़ी अम्मा ने हंस कर उत्तर दिया ।

" हे भगवान किस युग में जीते है ये इस मधु के घर वाले , दुनिया भर के अस्पताल है , पर देखो तो अब भी दायी से जापा करवाना चाहते है वो भी घर में । "



बूढ़ी अम्मा उन सबकी बातें सुन रही थी । लकड़ी की गाडी के सहारे से धीरे धीरे चलने वाली इस अम्मा का जीवन किसने… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 28, 2017 at 11:11pm — 3 Comments

बहती नदी (कविता)

बहती नदी से पूछा मैंने

बहती रहती हो थमती नहीं



देख मुझको वो मुस्कायी

बोली कुछ पल कुछ भी नहीं ।



देख हंसी उसकी फिर पूछा मैंने

बोलो न क्यों तुम रूकती नहीं



देख मेरी उत्सुकता वह बोली

अरे मेरी भोली सी बहना



रुक गयी तो कैसे चलेगा

खेतों का गागर कैसे भरेगा



सागर से फिर कौन मिलेगा

हरियाली से कौन बतियाईएगा



इतराती नहीं नारी हूँ मैं भी

चंचल हिरणी , मनभावन हूँ मैं भी



टकरा जाती हूँ चट्टानों… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 22, 2017 at 7:45am — 6 Comments

शिक्षा सबके लिए ( लघुकथा)

" तुम मुझे रोज़ लेने आ जाती हो , मेरे बाबा मुझे डाँटते है । उनको लगता है मैं आलसी हूँ , स्कूल नहीं जाना चाहती । " शीला ने अपनी सहेली मीना से कहा ।



" हाहा हाहा , सही तो कहते है तुम्हारे बाबा , पढ़ाई चोर तो तुम हो ही , जब देखो तुम्हारी कॉपियां अधूरी रहती है ...।" मीना ने हंसकर कहा



" धत्त , कोई नहीं झूठी मेरी कॉपियां तो पूरी होती है , वो तो ....... वो तो ........."अपनी माँ की तरफ़ देखकर शीला चुप हो गयी ।



मीना यह बात जानती थी कि शीला की माँ को शीला का स्कूल जाना पसंद… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 12, 2017 at 11:38am — 14 Comments

सार छंद ( 16 ,12 )

छन्न पकैया छन्न पकैया , ऐसे मेरे नाना
रोज़ सवेरे पानी देते , औ देते थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , खुश होते थे नाना
उड़ते हुए परिंदे आते , सब चुगने थे दाना

छन्न पकैया छन्न पकैया ,था उनका ये कहना
आपनी तरह परिंदों का भी, खयाल रखना बहना

छन्न पाकैया छन्न पकैया,सबको ये समझाना
पशु पक्षी पेडों पौधों से, प्यार सदा जतलाना

छन्न पकैया छन्न पकैया , जीना चाहें मरना
नाना सदा यही कहते थे ,प्रेम सभी से करना ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 11, 2017 at 1:30pm — 13 Comments

खो गये है शब्द (कविता)

जाने कहाँ खो गये
खो गये हैं शब्द

जिनको पढ़कर कभी
हुआ करती थी सुबह

प्रथम किरणों के संग
ओस की बूंदों के भीतर

खो गये है वे शब्द
जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक

कर देते थे जिवंत
ख़्वाब सजाया करते थे

खो गये हैं शब्द
जाने कहाँ किस ओर गये ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 6, 2017 at 11:08pm — 4 Comments

छाँव

खेतों में चलते हैं

हल जब भी

पसीना बहता है

मिट्टी में घुल मिलकर

लहराती फ़सल की देता सौगात है



धूप की तपिश

बरसात होती वरदान

थके कदमों को

बड़े वृक्ष देतें हैं छाँव



कुदरत के बिना

जीना होगा असम्भव

फिर कैसा घमण्ड

कैसा गुरुर



ज़मीन सभी की

पेड़ सभी के

छोटे बड़ों की

क्या होतीं हैं पहचान ?



ज़मीन भी यहीं

आसमान भी

फिर यह कैसी सोच

कि किसी एक को

मिल रहा सरंक्षण आसमान का



जो नहीं… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 21, 2017 at 9:02am — 8 Comments

हाइकू

लगती प्यारी
मोहे मेरी बिटिया
गोरैया जैसी ।

रोज़ जगाती
नींद से हर दिन
प्यारी बिटिया ।

ठुमक कर
चलती थी नन्हीं सी
मेरी बिटिया ।

बड़ी सयानी
मीठी जिसकी बोली
मेरी बिटिया ।


घर आँगन
महकाती प्यार से
मेरी बिटिया ।

नया घरौंदा
बसाया अपना भी
मेरी बिटिया ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 7, 2017 at 4:30pm — 3 Comments

हाइकु

मौज मनाने
छुट्टियों में हैं आते
नदी किनारे

बड़ी सुहानी
हवा चलती यहाँ
नदी किनारे ।

मन मोहक
नज़ारा यहाँ होता
नदी किनारे ।

मस्त लहर
आकर टकराती
नदी किनारे ।

भीड़ अधिक
हो जाती है अक्सर
नदी किनारे ।

संग पिया के
सन्ध्या देखने आती
नदी किनारे ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 4, 2017 at 7:59pm — 1 Comment

मधुमालती छंद ( मात्रा विधान - 7-7 , 7-7)

शारदे माँ ( मधुमालती छंद)

माँ शारदे वरदान दो
सत बुद्धि दो संग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हों
अच्छे बुरे का सज्ञान दो

वाणी मधुर रसवान दो
मैं मैं का न गुणगान हों
तुमसे कभी हम दूर हों
न ऐसे कभी मज़बूर हों

दिल में सदा ही तुम रहो
रात और दिन बस तुम रहो
तुम बीन न यह जीवन हों
माँ शारदे ऐसा वर दो ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 4, 2017 at 7:06pm — 7 Comments

मधुमालती छंद ( मात्रा विधान - 7-7 , 7-7)

ऐसा हुआ , बारात में
लड़का नहीँ , आया अभी

बोले पिता , बेटा कहे
पैसा अभी , मिला नहीं

शादी नहीँ , होगी अभी
मिला नहीं , दहेज अभी ।

बेटी कहे , देना नहीं
पैसा बुरा , जले चिता

होती नहीं , बेटी बुरी
चलती नही , चालें कभी

पगड़ी भली , लागे मुझे
पिता बोज़ क्यों , माने मुझे

बेटी कभी , चाहे नहीँ
अपमान नहीँ , करे कभी ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 16, 2017 at 4:14pm — 7 Comments

क्षितिज (कविता )

ढूंढ रहा है आज क्षितिज तुम्हें

हाँ वही जो परेशान तुम्हें किया करता था

तुम्हें प्यार करते देख किसीको

अपने आँसूं बहाया करता था



नदी किनारे से अक़्सर देखा करता था

देख कर तुमको वो मुस्कुरा देता था

बादलों से शरारत करने को कहता था

फिर उनमें अपने को छिपा लेता था ।



तुम फिर उसकी तलाश में खो जाती थीं

अटखेलियां करते हुए बादलों से

जब उसका तुम पता पूछा करती थीं

चुपके से वो आड़ से तुम्हें देख लेता था ।



हो तुम दीवानी उसकी जानता है जग… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 6, 2017 at 7:06pm — 6 Comments

सखी

बदमाश सखी की चंचल बातें
करती मस्ती
कभी तो कर देती है दूर
खींच एक लकीर

क्या खोया पाया
मन की वेदना को
अब रास आती है
खामोशियाँ ....

हँसते रहना है
दूर हो जाये हर मुश्किल
सखी की ...

न दो अब कोई आवाज़
थके कदमो से चलना है
अभी बाक़ी है कोई राह
पुकारती हुई सी ...

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 22, 2017 at 7:13am — 2 Comments

बसन्त गीत

देखो देखो री सखी
किया कैसा है श्रृंगार
बसन्ती हवा है चली
ऋतु राजा है तैयार ।

मीठी कोयल की बोली
झूली अम्बुवा की डार ।

ऋतु राजा है बोला
पिया करलो थोडा प्यार ।

गाओ मन भावन ये राग
हो ये बसन्त बहार ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 9, 2017 at 8:49pm — 2 Comments

मन (कविता)

रे मन कह दे
अपनी बात आज
बंद है जो भीतर
बाहर आने दे आज
देख, पवन पुरावई
शीत लहर आई
कह दे अपनी बात
जिसे जड़ कर चुकी हो
देख बाहर प्रवासियों को
घर अपना जो छोड़ आये है
कुछ दिनों के लिये ही सही
नया बसेरा बसाने आये है
आज खोल दे द्वार अपने भी
उड़ जाने दे अपनी पीड़ा को
लग जाने दे पंख परिंदों की तरह
खुली साँसे ले लेने दे ।


मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 20, 2017 at 5:30pm — 3 Comments

प्रेम गीत

मीत नहीं

संगीत नहीं

प्रेम का कोई गीत नहीं ।



दिल ही नहीं

धड़कन ही नहीं

जीवन की यह रीत नहीं ।



इंसान हैं तो दिल भी होगा

दिल में बसा संगीत भी होगा

बिन संगीत जीवन नहीं ।

बिना प्रीत के मिलन नहीं ।



गाओ गाओ मधुर तराने

प्रेम के होते बहुत फ़साने

बिना फ़साने के प्रेम नहीं

प्रेम नहीं तो जीत नहीं ।



जियो जियो तो ऐसे जियो

मधुर प्रेम के प्याले पियो

प्याले में मिश्री भी घोलो

मीठी मीठी वाणी बोलो… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 4, 2017 at 4:03pm — 17 Comments

दर्द दे गया (नज़्म)

न जाने क्यों उनका इंतज़ार करती हूँ
न आये कभी जो उनसे प्यार करती हूँ

देखा था उनकों पहली बार जब
नयन से नयन मिले थे तब
कशिश थीं उनकी आँखों में
डूबती गयी उनकी बाँहों में ।

स्पर्श था प्रथम वो मेहबूब का
एहसास था प्यार का प्रीत का
थामा जब हाथ उन्होंने मेरा
तब शर्माया था दामन मेरा ।


एक ख़्वाब ही तो था
जो प्यार का एहसास था
वो दर्द दे गया है मुझे
आह निकली है मुख से ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 2, 2017 at 10:03pm — 14 Comments

गीत कोई गाऊं मैं





दुःख बिसराये

सुख को लाये

ऐसा गीत गाऊँ मैं

खट्टी  मीठी यादों को

थोड़ा सा गुन गुनाऊं मैं

दूर खड़ा पर्वत पुकारे

चलकर उसतक जाऊं मैं

बादलों से बरसे पानी

झूम झूम कर नाचूँ मैं

खेत बुलाये, परिंदे पुकारें

बोली उनकी समझूँ मैं

नाच उठे मनवा मेरा

गीत ऐसा कोई गाऊँ मैं |



बहती नदी , बहता झरना

कलकल इनकी सुन लूँ मैं

किनारे से टकराती लहरों से

कुछ देर बातें कर लूँ मैं

देखकर वहां गोरी कलाई…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 31, 2016 at 9:30pm — 19 Comments

जज़्बात (नज़्म)

मेरे दिल के जज़्बात साथ नहीं देते हैं

और आँसू भी अपनी बात कहते हैं ।



ना जाने नम सी आँखें रहती हैं

और दर्द की पीर आँखें सहती हैं

देखकर बेवफाई यह रोती है

तन्हाई के हर सितम सहती हैं ।



रात की अँधियारी में कभी रोती हैं

कभी काँधे पे सर रख सोती हैं

अश्क बन जब जब दिखाई देतीं हैं

सारा जग समेट अपने में भर लेतीं है ।



दर्द का दरिया आँखों को कहते हैं

आँखों से ही तो इशारे किया करते हैं

सूनी सूनी सी गलियारी है दिल की

हर…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2016 at 8:30pm — 6 Comments

फूल और माली (कविता)

एक दिन माली रूठ गया

फूल यह जान दुःखी हुआ

सूरज की तपिश भी तेज थी

बिन पानी के फूल सूख गया

ज़मीन पर गिर मिट्टी पर पड़ा

जोत रहा था बाट माली की

सोच रहा था क्या हो गया

मेरा माली क्यों रूठ गया ।

इतने में कोई पास आया

देख उसको मुरझाया फूल हरकाया

बोला माली से बाबा क्या ऐसी बात हुई

आपकी राह देखते देखते देखो

कई कलियाँ भी मुर्झा गयीं ।

माली ने प्यार से उसे उठाया

गिरे हुए फूल को फिर सहलाया

फूल और माली की प्रीत निराली

सूरज बोला मैं… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 24, 2016 at 8:30pm — 5 Comments

सौदा ( कविता)

आज एक सौदा ही कर लें

बोली बॉस एक दिन

सुनकर यह चकित हुई मैं

देखती रही उनको एकटक

देख मुझको भांप गयी वो

मुझे लगा कांप गयी वो

पर नहीं , नहीं हुआ कोई असर

बोलीं न छोडूंगी कोई कसर

अब मैं हुई और परेशान

शैतान आया था बनकर मेहमान

रुकी कुछ पल फिर हंस कर बोलीं

अपने ईमान की पोल खोली

सुनो मेरा तुम करो एक काम

न करना इस बात को आम

मेरे पास काला धन पड़ा है

मोदी जी ने सर पर हथौड़ा मारा है

औरतो के खाते में ढाई लाख़ फ्री है

यह रकम…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 22, 2016 at 8:30am — 6 Comments

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