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मधुमालती छंद ( मात्रा विधान - 7-7 , 7-7)

शारदे माँ ( मधुमालती छंद)

माँ शारदे वरदान दो
सत बुद्धि दो संग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हों
अच्छे बुरे का सज्ञान दो

वाणी मधुर रसवान दो
मैं मैं का न गुणगान हों
तुमसे कभी हम दूर हों
न ऐसे कभी मज़बूर हों

दिल में सदा ही तुम रहो
रात और दिन बस तुम रहो
तुम बीन न यह जीवन हों
माँ शारदे ऐसा वर दो ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 13, 2017 at 11:41pm
आ सर अब देखें क्या यह सही हुआ है ? कृपया मार्गदर्शन दें

माँ शारदे वरदान दो
सद्बुद्धि दो संग ज्ञान दो
मन में नहीं अभिमान हों
अच्छे बुरे की पहचान दो ।

वाणी मधुर रसवान दो
मैं मैं का न गुणगान हों
बच्चे अभी नादान हम
निर्मल एक मुस्कान दो

न जाने कि हम कौन हैं
हमें अपनी पहचान दो
अल्प ज्ञानी मानो हमें
बस चरण में तुम स्थान दो ।।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 6, 2017 at 6:53pm
Ji aadarniyaa Rajesh di. Prayas me trutiyan rahi khed hai .par sikhne ke liye prayas karungi kya pata 100 times galat ho..di sikhna to hai . Sadar

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2017 at 6:32pm

बहुत ही अच्छा प्रयास हुआ प्रिय कल्पना जी ,इसी तरह कोशिश करती रहिये बेहतर कर  सकेंगी बहुत बहुत बधाई आद० डॉ० गोपाल जी की बात पर गौर करें | 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 5, 2017 at 2:47pm
जी सर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 5, 2017 at 2:20pm

सत बुद्धि  - सद्बुद्धि

सज्ञान माने ज्ञानवान , समझदार /  सज्ञान दो का तात्पर्य ?

न ऐसे कभी / रात और दिन  – 8 मात्राये

अंतिम छंद में चरण का अंत किसी भी पंक्ति में  212 नहीं हुआ  7-7 का निर्वाह भी बाधित रहा

आदरणीया प्रयास के लिये बधाई  पर अभी और श्रम करना होगा . सादर .

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 5, 2017 at 9:36am
धन्यवाद आ मोहम्मद आरिफ जी । जी सर सीखने का प्रयास है । सादर ।
Comment by Mohammed Arif on April 5, 2017 at 9:33am
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, बहुत बढ़िया मधुमालती छंद । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । छांदसिक विधान के बारे में विद्वजजन आगे अपना पक्ष रखेंगे ।

कृपया ध्यान दे...

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