For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Satyanarayan Singh's Blog (33)

मजदूर दिन

छंद मदन/रूपमाला

(चार चरण: प्रति चरण २४ मात्रा,

१४, १० पर यति चरणान्त में पताका /गुरु-लघु)



मजदूर दिन



मजदूर दिन जग मनाता, शान से है आज।

कर्म के सच्चे पुजारी, तुम जगत सर ताज।।

प्रतिभागिता हर वर्ग की, देश आंके साथ।

राष्ट्र के उत्थान में है, हर श्रमिक का हाथ।१।



श्रम करो श्रम से न भागो, समझ गीता सार।

सोया हुआ भाग्य जागे, जानता संसार।।

श्रम स्वेद पावन गंग सम, बहे निर्मल धार।

श्रम दिलाता मान जीवन, श्रम प्रगति का द्वार।२।…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on May 1, 2014 at 4:00pm — 13 Comments

गंगा हमारी

गंगा हमारी



भव ताप हारक, पाप नाशक, धरा उतरी गंग।

निर्मल प्रवाहित, प्रेम सरसित, करे मन जल चंग।।

सुंदर मनोरम, घाट उत्तम, देख कर मन दंग।

शिव हरि उपासक, साधु साधक, जपे सुर मुनि संग।१।

 …

Continue

Added by Satyanarayan Singh on April 30, 2014 at 10:30pm — 13 Comments

सारे नेता खेलते

सारे नेता खेलते

सारे नेता खेलते, आज चुनावी खेल।

सत्ता के इस रूप में, द्रुपद सुता का मेल।।

द्रुपद सुता का मेल, पांडु सुत लगती जनता।

नेता शकुनी दाँव, चाल वादों की चलता।

लोक लुभावन खूब, लगाते ये हैं नारे।

चौसर बिछी बिसात, खेलते नेता सारे।१।

हांथी तीर कमान तो,कहीं हाँथ का चिन्ह।

कमल घडी औ साइकिल,फूल पत्तियाँ भिन्न।।

फूल पत्तियाँ भिन्न,दराती कहीं हथोडा।

झाड़ू रही बुहार,उगा सूरज फिर थोडा।।

देख चुनावी रंग, ढंग अपनाता साथी।

मर्कट…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on April 29, 2014 at 7:30am — 9 Comments

लगती छबि मीत !

मनोरम छंद

(संक्षिप्त विधान : मनोरम छंद चार पक्तियों या पदों का वर्णिक छंद है. जिसके प्रत्येक पद में चार सगण और अंत में दो लघु वर्ण / अक्षर का विधान  हैं।)

लगती छबि मीत !

लगती छबि मीत मुझे मन भावन।

मन चंद चकोर समान लुभावन।।

मन प्रीत रिसे सुख पाय सुहावन।…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on April 24, 2014 at 10:30pm — 12 Comments

याद तेरी आविनाशी!

याद तेरी आविनाशी!  

 आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी

 याद तेरी अविनाशी!

 मिलन तुम्हारा बारहमासी  

 कभी लगा ना उबासी

 यादें तव मन मंदिर जग गयी  

 अलखन जगे जिमि काशी

 आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी

 याद तेरी अविनाशी!

 संग तुम्हारा था मधुमासी

 मन ना छायी उदासी

 चाँद सितारों में जा बस गयी

 मधुर हँसी की उजासी 

 आह प्रिये! धूमिल अब हो गयी

 याद तेरी अविनाशी!

 मेरी दुनिया प्रेम पियासी

 रसमयी…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on April 22, 2014 at 11:07pm — 14 Comments

भारत हमारा, कामरूप छंद

भारत हमारा

(कामरूप छंद)

भारत हमारा, देश न्यारा, सृष्टि का उपहार।

तहजीब अपनी, गंग जमुनी, नाज जिसपर यार।।

सीख दे ममता, और समता, कर्म गीता सार ।

जनतंत्र आगर, विश्व नागर,…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on April 21, 2014 at 10:30pm — 15 Comments

स्वागत तव ऋतुराज

ऋतुराज के स्वागत में पांच दोहे



स्वागत तव ऋतुराज



चंप पुष्प कटि मेखला, संग सुभग कचनार।

गेंदा बिछुआ सा फबे, गल जूही का हार।१।

.

बेला बाजूबंद सा, कंगन हरसिंगार।

गुलमोहर भर मांग में, करे सखी श्रृंगार ।२।

.

पहन चमेली मुद्रिका, नथिया सदाबहार।

गुडहल बिंदी भाल दे, मन मोहे गुलनार।३।

.

जूही गजरा केवडा, सजे सखिन के बाल।

तन मन को महका रही, मौलश्री की माल।४।

.

झुमका लटके कान में, अमलतास का आज।

इस अनुपम श्रृंगार…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on February 3, 2014 at 5:30pm — 23 Comments

प्रेम (अतुकांत)

(1)

प्रिये !

अपने मन की व्यथा को

मैं आज किसे सुनाऊँ

इस संसार में

तुम्हारे अलावा इस मन की व्यथा को

दूसरा कौन समझ सकता है

अपमान गरल को

कंठ से लगाकर तुम मीरा तो बन गयी

पर मैं चाहकर भी अब तक

नहीं बन पाया हूँ श्याम

यही मेरे मन की व्यथा है प्रिये !

जिसे तुम्हारे अलावा

और कोई नहीं समझ सकता

इस संसार में

(2)

प्रिये !

तुम्हारा मौन

बहुत कुछ कह जाता है

और बहुत बतियाती है

तुम्हारी आँखे

तुम्हारी मधुर… Continue

Added by Satyanarayan Singh on December 27, 2013 at 5:00pm — 17 Comments

दीवाली के दोहरे

दीवाली के दोहरे

होती है हर एक को, रिद्धि सिद्धि की चाह।

दीप पर्व दिखला रहा, अंतर मन को राह।१।

 

उनका जीवन पथ चुनें, करें आत्म उत्थान।

जिनके जीवन में मिला, यश कीरत…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on November 3, 2013 at 7:00pm — 28 Comments

लुभाये मन गोविंदा

कुण्डलिया छंद

गोविंदा की टोलियाँ, निकल पड़ी चहुँ ओर।

दधि माखन की खोज में, बनकर माखन चोर।।

बनकर माखन चोर, करें लीला बहु न्यारी।

फोड़ें मटकी श्याम, बचाओ गगरी प्यारी।।…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on August 28, 2013 at 10:30pm — 14 Comments

ऊब गया मैं ऊब गया रोज किताबों को पढ़कर !

ऊब गया मैं ऊब गया

रोज किताबों को पढ़कर !

भाषा की सरल किताबों में

जब व्याकरण की मार पड़ी

छंद विधानों में उलझा

तब जोड़ न पाया कोई लड़ी…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on July 12, 2013 at 11:00am — 8 Comments

महाराष्ट्र का भीषण सूखा

पानी को ललात कहीं, दिखी भीड़ बिललात।

लम्बी सी कतार लगी, पात्र रीते घूरते।।

सूख गए कूप सारे, सूने पड़े नल कूप।

सूखी नदियों के घाट, मन देख खीझते।।

जल की…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on March 30, 2013 at 12:30am — 10 Comments

फाग अनुरागी बना, जगत बिरागी मन

Ecstacy                 ओबीओ के समस्त सदस्यों को होली की मंगलमय शुभ कामनाएं

फाग अनुरागी बना, जगत बिरागी मन।

       सुन्दर बसंती छटा, लगी मन…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on March 27, 2013 at 12:00am — 8 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
20 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service