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कह-मुकरियाँ

जाऊँ जहाँ वहीं वह  होले,

संग संग वह मेरे डोले,

जीवन उसके बिना अलोन,

क्यों सखि साजन ? ना सेल फोन !

 

हाल चाल सब रखता मेरा,

हमदम सा वह मीत घनेरा,

मै कश्ती तो  वह है साहिल,

क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !

 

चहल पहल वह रौनक लाये,

महफिल में भी रंग जमाये,

उसके बिन जीवन है काहिल,

क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !

.

मौलिक व अप्रकाशित

 

 

 

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Comment by Satyanarayan Singh on May 7, 2018 at 12:03am

हृदयतल से आभार आदरणीय नवीनमणि जी  प्रस्तुति पर उपस्थित होकर उत्साहवर्धन करने के लिए.

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 6, 2018 at 4:35pm

वाह बहुत सुंदर मुकरियाँ  । आ0 हार्दिक बधाई ।

Comment by Satyanarayan Singh on May 3, 2018 at 11:36pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रस्तुति पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूं ँ

Comment by Satyanarayan Singh on May 3, 2018 at 11:33pm

प्रस्तुति पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए हृदय से आभार आदरणीय समर कबीर जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2018 at 10:16am

बहुत खूब...

Comment by Samar kabeer on May 1, 2018 at 6:27pm

जनाव सत्यनारायण सिंह जी आदाब,अच्छी रचना है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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