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लुभाये मन गोविंदा

कुण्डलिया छंद

गोविंदा की टोलियाँ, निकल पड़ी चहुँ ओर।

दधि माखन की खोज में, बनकर माखन चोर।।

बनकर माखन चोर, करें लीला बहु न्यारी।

फोड़ें मटकी श्याम, बचाओ गगरी प्यारी।।

द्वापर का वह दृश्य, झांकियां हुई सजिंदा।

राधा रानी संग, लुभायें मन गोविंदा।।

.

-सत्यनारायण सिंह

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Satyanarayan Singh on September 1, 2013 at 6:47pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 4:16pm

द्वापर का वह दृश्य, झांकियां लगती जिन्दा.

वाह वाह वाह

Comment by Satyanarayan Singh on September 1, 2013 at 3:28pm

परम आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम,

                रचना आपको भा गयी यह पढ़कर मन को सुकून मिला अतएव आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीय रचना में निहित दोषों के प्रति आगाह करने हेतु भी आपका ह्रदय से धन्यवाद प्रकट करता हूँ.  आदरणीय मूल रचना में  निम्नवत संशोधन कैसा रहेगा

    झांकियां लगती जिन्दा.

Comment by Satyanarayan Singh on September 1, 2013 at 3:05pm

आदरणीय रामशिरोमणि जी सादर,

      आपकी रचना पर प्रेषित  प्रतिक्रिया  भी आदरणीय उतनी ही  मन को प्यारी  लगी है अतएव आपका ह्रदय से आभार प्रकट करता हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 3:28am

कृष्ण के जन्मोत्सव पर आपकी कुण्डलिया भा गयीं, आदरणीय

दधि माखन के खोज में  .........   की खोज में, कि के खोज में 

सजिंदा .............. संज़ीदा ..

शुभ

Comment by ram shiromani pathak on August 30, 2013 at 10:12pm

श्री कृष्ण की तरह आपकी रचना में भी बड़ी प्यारी सी चंचलता  है //हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Satyanarayan Singh on August 30, 2013 at 8:56pm

आदरणीय जवाहरलाल  जी,  वसुंधरा  जी, श्याम नारायण जी, गिरिराज  जी, विजय जी, केवल प्रसाद जी, राजेश कुमार जी आप सबका हार्दिक आभार

Comment by राजेश 'मृदु' on August 30, 2013 at 3:44pm

जय हो । बड़ी सुंदर रचना है, सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 29, 2013 at 9:15pm

आ0 सत्य नारायण भाई जी, वाह! अतिसुन्दर । हृदयतल से हार्दिक बधाई। सादर,

Comment by विजय मिश्र on August 29, 2013 at 6:16pm
जय जय जय गोविन्दा

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