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Sushil Sarna's Blog (880)

कुछ चुटकियाँ. . . .

कुछ चुटकियाँ ....

वो चाय क्या

जिसमें भाप न हो

वो नींद क्या

जिसमें ख्वाब न हो

.............      

वो प्याला क्या

जिसमें शराब न हो

वो हिजाब क्या

जिसमें शबाब न हो

.......... ..........

वो किताब क्या

जिसमें गुलाब न हो

वो ख़्वाब क्या

जिसमें माहताब न हो

.....................

वो समर्पण क्या

जिसमें स्वीकार न हो

वो जीत क्या

जिसमें हार न हो

.........................

वो…

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Added by Sushil Sarna on February 28, 2022 at 1:43pm — No Comments

शोख दोहे .....

शोख़ दोहे : 

कातिल हसीन शोखियाँ, मयखाने सा नूर ।

दिल बहके तो जानिए, सब आपका कुसूर ।।

साँसें दे हर साँस को, साँसों का उपहार ।

साँसों को अच्छा लगे, ये साँसों का प्यार ।।

पागल दिल की हसरतें, पागल दिल के ख़्वाब ।

पागल दिल को कर गए , ख़्वाबों के सैलाब ।।

बड़े तीव्र हैं प्यास के, अधरों पर अंगार  ।

नैनों से नैना करें, मधुर मिलन मनुहार ।।

बेहिज़ाब अगड़ाइयाँ, गज़ब नशीला नूर ।

देख बहकना नूर को, दिल का है…

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Added by Sushil Sarna on February 26, 2022 at 3:53pm — 2 Comments

प्रेम दिवस ......

प्रेम दिवस :

दिलवालों का आ गया, दिलवाला त्योहार ।

दिल ले कर दिल ढूँढता, दिल अपना  दिलदार ।।

लाल दिलों का लग रहा, गली-गली बाजार ।

अब तो दिल का आजकल, होता है व्यापार ।।

प्रेम प्रदर्शन का बना, मुक्त मिलन आधार ।

कैसा यह त्योहार जो, लील रहा संस्कार ।।

कितनी उत्सुक लग रही, युवा सभ्यता आज ।

अवगुंठन में प्यार के, करें कलंकित लाज ।।

वेलेंटाइन की आढ़ में, लज्जित होती लाज ।

देख प्रेम की दुर्दशा, क्षुब्ध आज है…

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Added by Sushil Sarna on February 14, 2022 at 2:42pm — 4 Comments

तेरे मेरे दोहे ..

तेरे मेरे दोहे :

दंतहीन मुख पोपला, हुए दृष्टि से सूर ।

शक्तिहीन काया हुई, चलने से मजबूर ।।

दंतहीन मुख पोपला, दृष्टि से लाचार ।

देख -देख मिष्ठान को, मुख से टपके लार ।।

लघु शंका बस में नहीं, मुख से टपके लार ।

बदला सा लगने लगा , अपनों का व्यवहार ।।

काया का सूरज ढला, ढली श्वास की शाम ।

दूर क्षितिज पर साँझ की, लाली करे प्रणाम ।।

काया साँसों से चले ,चले कर्म से नाम ।

चंचल मन के अश्व की, वश में रखो…

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Added by Sushil Sarna on February 3, 2022 at 3:00pm — 10 Comments

सलाह. . . . लघुकथा

सलाह ...(लघुकथा )

"बाबू जी, बाबू जी । बच्चा भूखा है । कुछ दे दो ।"

 एक भिखारिन अपने 5-6 माह के बच्चे को अस्त-व्यस्त से कपड़ों में दूध पिलाते हुए गिड़गिराई ।

" क्या है ,  काम क्यों नहीं करती । भीख मांगते हुए शर्म नहीं आती क्या । जब बच्चे पाले नहीं जाते तो पैदा क्यों करते हो ।" राहुल भिखारिन को डाँटते हुए बोला ।

"आती है साहब बहुत आती है भीख मांगने में नहीं बल्कि काम करने में आती है ।" भिखारिन ने कहा ।

"क्यों  ?" राहुल ने पूछा ।

"साहब ,आप जैसे ही…

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Added by Sushil Sarna on January 30, 2022 at 4:39pm — 6 Comments

दोहा त्रयी. . . . . .राजनीति

दोहा त्रयी : राजनीति

जलकुंभी सी फैलती, अनाचार  की बेल ।
बड़े गूढ़ हैं क्या कहें, राजनीति के खेल ।।

आश्वासन के फल लगे, भाषण की है बेल ।
राजनीति के खेल की , बड़ी अज़ब है रेल ।।

राजनीति के खेल की, छुक- छुक करती रेल।
डिब्बे बदलें पटरियां, नेता खेलें खेल ।।

सुशील सरना / 23-1-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 23, 2022 at 3:50pm — 8 Comments

दोहा त्रयी .....

दोहा त्रयी...

दुख के जंगल हैं घने , सुख की छिटकी धूप ।
करम पड़ेंगे भोगने , निर्धन हो या भूप ।।

धन वैभव संसार का, आभासी शृंगार ।
कभी  कहकहे जीत के, कभी मौन की हार ।।

विदित वेदना शूल की, विदित पुष्प की गंध ।
सुख-दुख दोनों जीव की, साँसों के अनुबंध ।।


सुशील सरना / 20-1-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on January 20, 2022 at 1:00pm — 5 Comments

इस जग में दाता बता. . . . दोहे

इस जग में दाता बता .....दोहे

इस जग में दाता बता, कोई ऐसा तीर ।

बहता हो जिस तीर पर, बिना दर्द का नीर ।।

इस जग में दाता बता, कोई ऐसा तीर ।

मिल जाए जिस घाट पर, सुख का थोड़ा नीर ।।

इस जग में दाता बता, कोई ऐसा तीर ।

मिट जाए जिस तीर पर, जग की सारी पीर ।।

इस जग में दाता बता, कोई ऐसा तीर ।

राँझे से आकर मिले, उसकी बिछुड़ी हीर ।।

इस जग में दाता बता, कोई ऐसा तीर ।

जहाँ बने बिगड़ी हुई, बन्दों की तकदीर…

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Added by Sushil Sarna on January 13, 2022 at 1:12pm — 1 Comment

दोहा मुक्तक ......

दिल से दिल की हो गई, दिल ही दिल में बात ।
दिल तड़पा दिल के लिए, मचल गए जज़्बात ।
दिल में दिल की जीत है, दिल में दिल की हार -
दिल को दिल ही दिल मिली, धड़कन की सौगात ।

2.

काल गर्भ में है निहित, कर्म फलों का राज़।
अंतस में गूँजे सदा,  कर्मों की आवाज़ ।
कर्म प्राण है जीव का, कर्म जीव की आस -
अच्छे कर्मो से करो, जीने का आगाज़ ।


सुशील सरना / 27-12-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 27, 2021 at 7:30pm — 4 Comments

ममता पर दोहे .....

ममता पर दोहे .....

जाते हैं जो चूमकर, मात-पिता के पाँव ।

राहों में उनके नहीं, आते दुख के गाँव ।1।

जीवन में आते नहीं, उनके दुख के गाँव ।

जिनके सिर रहती सदा, आशीषों की छाँव ।2।

धन वैभव संसार में, मिल जाते सौ बार ।

मिलें नहीं जाकर कभी, मात-पिता साकार  ।3।

दृष्टि धुंधली हो गई, काया हुई निढाल ।

आई बेला साँझ की,  ढूँढे नैना लाल ।4।

ममता ढूँढे पालने, में अपना वो लाल ।

जिसको देखे हो गए,…

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Added by Sushil Sarna on December 13, 2021 at 1:00pm — 8 Comments

दोहा त्रयी. . . . . .

दोहा त्रयी. . . . . . 

ह्रदय सरोवर में भरा, इच्छाओं का नीर ।
जितना इसमें डूबते, उतनी बढ़ती पीर ।।

मन्दिर -मन्दिर घूमिये , मिले न मन को चैन ।
मन के मन्दिर को लगें, अच्छे मन के बैन ।।

झूठे भी सच्चे लगें, स्वार्थ नीर में चित्र ।
मतलब के संसार में, थोड़े सच्चे मित्र ।।

सुशील सरना / 6-12-21
मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 6, 2021 at 3:08pm — 10 Comments

दोहा मुक्तक

मन से मन की हो गई, मन ही मन में बात ।
मन ने मन को वस्ल की, दी मन में सौगात ।
मन मधुकर मन पद्म में, ढूँढे मन का छोर -
साथ निशा के हो गया , मन में उदित  प्रभात ।

तन में चलते श्वास का, मत करना विश्वास ।
इस तन के अस्तित्व का, श्वास -श्वास आभास ।
ये जीवन है मरीचिका , इसकी साँझ न भोर -
झूठा पतझड़ है यहाँ, झूठा है मधुमास ।

सुशील सरना / 4-12-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on December 4, 2021 at 12:00pm — 4 Comments

तेरे मेरे दोहे ......

तेरे मेरे दोहे :......

बनकर यकीन आ गए, वो ख़्वाबों के ख़्वाब ।

मिली दीद से दीद तो, फीकी लगी शराब ।।

जीवन आदि अनंत का, अद्भुत है संसार ।

एक पृष्ठ पर जीत है, एक पृष्ठ पर हार ।।

बढ़ती जाती कामना ,ज्यों-ज्यों घटता  श्वास ।

अवगुंठन में श्वास के, जीवित रहती प्यास ।।

कल में कल की कामना ,छल करती हर बार ।

कल के चक्कर में फँसा , ये सारा संसार ।।

बेचैनी में बुझ गए , जलते हुए चराग़ ।

उम्र भर का दे गए, इस…

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Added by Sushil Sarna on November 28, 2021 at 1:30pm — 16 Comments

बन्धनहीन जीवन :. . . .

बन्धनहीन जीवन :......

क्यों हम 

अपने दु :ख को

विभक्त नहीं कर सकते ?

क्यों हम

कामनाओं की झील में

स्वयं को लीन कर

जीवित रहना चाहते हैं ?

क्यों

यथार्थ के शूल

हमारे पाँव को नहीं सुहाते ?

शायद

हम स्वप्न लोक के यथार्थ से

अनभिज्ञ रहना चाहते हैं ।

एक आदत सी हो गई है

मुदित नयन में

जीने की ।

अन्धकार की चकाचौंध को

अपनी सोच की हाला में

मिला कर पीने की…

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Added by Sushil Sarna on November 10, 2021 at 1:54pm — 4 Comments

तकरार- (कुंडलिया) ....

रहने भी दो अब सनम, आपस की तकरार ।
बीत न जाए व्यर्थ  में, यौवन  के  दिन  चार ।
यौवन के दिन  चार,  न लौटे  कभी  जवानी ।
चार  दिनों   के  बाद , जवानी  बने  कहानी ।
कह  'सरना'  कविराय,  पड़ेंगे  ताने   सहने ।
फिर   सपनों के   साथ, लगेंगी   यादें   रहने ।

सुशील सरना / 25-10-21

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by Sushil Sarna on October 25, 2021 at 1:30pm — 9 Comments

अनपढ़े ग्रन्थ

कुछ दर्द

एक महान ग्रन्थ की तरह होते हैं

पढना पड़ता है जिन्हें बार- बार

उनकी पीड़ा समझने के लिए ।

ऐसे दर्द

अट्टालिकाओं में नहीं

सड़क के किनारों पर

पत्थर तोड़ते

या फिर चन्द सिक्कों की जुगाड़ में

सिर पर टोकरी ढोते हुए

या फिर पेट और परिवार की भूख के लिए

किसी चिकित्सालय के बाहर

अपना रक्त बेचते हुए

या फिर रिश्तों के बाजार में

अपने अस्तित्व की बोली लगाते हुए

अक्सर मिल जाते…

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Added by Sushil Sarna on October 22, 2021 at 1:30pm — 6 Comments

वादे पर चन्द दोहे .......

मीठे वादे दे रही, जनता को सरकार ।

गली-गली में हो रहा, वादों का व्यापार ।1।

जीवन भर नेता करे, बस कुर्सी से प्यार ।

वादों के व्यापार में, पलता भ्रष्टाचार ।2।

जनता को ही लूटती,जनता की सरकार ।

जम कर देखो हो रहा, वादों का व्यापार ।3।

जनता जाने झूठ है, नेता की हर बात ।

झूठे वादों को मगर, माने वो सौगात ।4।

भाषण में है दक्ष  जो ,नेता वही महान ।

वादों से वो भूख का, करता सदा निदान ।5।

सुशील सरना /…

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Added by Sushil Sarna on October 17, 2021 at 4:30pm — 2 Comments

अपने दोहे .......

अपने  दोहे .......

पत्थर को पूजे मगर, दुत्कारे इन्सान ।

कैसे ऐसे जीव का, भला करे भगवान ।1।

पाषाणों को पूजती, कैसी है सन्तान ।

मात-पिता की साधना, भूल गया नादान ।2।

पूजा सारी व्यर्थ है, दुखी अगर माँ -बाप ।

इससे बढ़कर  सृृष्टि में , नहीं दूसरा  पाप।3।

सच्ची पूजा का नहीं, समझा कोई अर्थ ।

बिना कर्म संंसार में,अर्थ सदा है व्यर्थ ।4।

मन से जो पूजा करे, मिल जाएँ भगवान ।

पत्थर के भगवान में, आ जाते हैं प्रान…

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Added by Sushil Sarna on October 16, 2021 at 3:21pm — 7 Comments

मुक्तक (आधार छंद - रोला )

मुक्तक

आधार छंद - रोला

10-10-21

छूट गए सब संग ,देह से साँसें छूटी ।

झूठी देकर आस, जगत ने खुशियाँ लूटी ।

रिश्तों के सब रंग ,बदलते हर पल जग में -

कैसे कह दें श्वास ,देह से कैसे टूटी ।

---------------------------------------------------

बहके-बहके नैन, करें अक्सर मनमानी ।

जीने के दिन चार, न बीते कहीं जवानी ।

अक्सर होती भूल, प्यार की रुत जब आती -

भर देती है शूल, जवानी मैं नादानी  ।

सुशील सरना…

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Added by Sushil Sarna on October 9, 2021 at 4:38pm — 5 Comments

तो रो दिया .......

तो रो दिया .......

मौन की गहन कंदराओं में

मैनें मेरी मैं को

पश्चाताप की धूप में

विक्षिप्त तड़पते देखा

तो रो दिया ।

खामोशी के दरिया पर

मैंने मेरी मैं को

तन्हा समय की नाव पर

अपराध बोध से ग्रसित

तिमिर में लीन तीर की कामना में लिप्त

व्यथित देखा

तो रो दिया

क्रोध के अग्नि कुण्ड में

स्वार्थघृत की आहूति से परिणामों को

जब धू- धू कर जलते देखा

तो रो दिया

सच , क्रोध की सुनामी के बाद जब…

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Added by Sushil Sarna on September 30, 2021 at 10:41pm — 12 Comments

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