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मौत मिली थी आ गले.....



जलियावाला बाग में, बारूदी था जोर. 

सारे जन मारे गए बचा न कोई और..



कातिल डायर ने कहा फायर फायर मार.

तड़ तड़ बरसें गोलियाँ भीषण करें प्रहार ..



मौत मिली थी…

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Added by Er. Ambarish Srivastava on April 15, 2011 at 12:00am — 13 Comments

भाग्य और पुरुषार्थ

भाग्य और पुरुषार्थ ,
जीवन के दो पहलू हैं ,
पुरुषार्थ कर्म से होता है ,…
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Added by Rash Bihari Ravi on April 14, 2011 at 5:30pm — No Comments

विलीन ...

यूंही अचानक ..ना जाने कब ..



किस मोड़ पे तुम्हारी यादों से टकरा गयी..
और ..बीतती हुई ज़िन्दगी  फिर से लौट के ..
यादों के झरोखों…
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Added by Lata R.Ojha on April 14, 2011 at 5:00pm — 2 Comments

अभिमानवश

जो अभिमानवश अपना आकार बढ़ाना चाहता हैं , 
वो शायद भूल जाता है....
अहं का बढ़ता आकार ही तो अहंकार है ,
इसी वजह से द्रष्टा स्वयं को ,…
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Added by Rash Bihari Ravi on April 14, 2011 at 4:30pm — 14 Comments

सोचता हूँ कुछ बोलूँ क्या उन्हें पसंद आएगा ,

सोचता हूँ कुछ बोलूँ क्या उन्हें पसंद आएगा ,



मेरी टूटी फूटी बोल में क्या उन्हें आंनद आएगा ,


मैं जानता हूँ वो मीन मेख निकालते हैं मगर ,


उस मीन मेख में भी मुझे प्यार नजर आएगा ,


सोचता हूँ कुछ बोलूँ क्या उन्हें पसंद आएगा ,


जानता हूँ कितना भी अच्छा करूँ मगर उनको ,



वो उन्हें भाता नहीं और मुझमे निखार चाहते हैं ,


मगर उनके निखारने में क्या मेरा उम्र चली जाएगी ,



जो कुछ भी हो वो खुश रहे हरदम ये दिल चाहेगा ,


सोचता हूँ…
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Added by Rash Bihari Ravi on April 14, 2011 at 4:19pm — 1 Comment

बैठा है, किसी नय़ी हलचल का इंतजार है

बैठा है, किसी नई हलचल का इंतजार है,

खुदगर्ज दिल को आज फ़िर किसी से प्यार है

पुरानी उलफ़तों की दुहाई अब नही देता,

खुमारी है नई, पर खौफ़ तो बरकरार है

हर ज़ख्म को वक्त ने कर दिया है बख्तरबंद,

कुछ दर्द के निशान आज भी यादगार है

परख लें कंही नकली न हो पैमानें का नशा

पोशीदा बातों का कोई और भी…

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Added by अमि तेष on April 14, 2011 at 2:00pm — 4 Comments

व्यंग्य - फ्लैटों का आदर्श जुगाड़

वैसे देश में भ्रष्टाचार का बखेड़ा जहां-तहां छाया हुआ है। हर जुबान की शोभा केवल भ्रष्टाचार ही बढ़ा रहा है। कुछ महीनों पहले जब आदर्श सोसायटी के फ्लैटों का घोटाला उजागर हुआ, उसके बाद एक के बाद एक कई बडे़ भ्रष्टाचार हुए। जाहिर सी बात है, जब बात बड़ी-बड़ी हो रही हो तो छोटी बातें भला कहां ठहर सकती हैं ? खुद का नहीं, अपनों का फ्लैट के प्रति मोह ने बड़ी शख्सियतों की कुर्सी ले डूबी। ऐसा ही नजारा आदर्श सोसायटी घोटाले में दिखा। भ्रष्टाचार के बड़े भाईयों के पदार्पण बाद, कैसे कोई इन छोटे-मोटे घोटाले को याद करने… Continue

Added by rajkumar sahu on April 14, 2011 at 1:18am — No Comments

कल का आज कैसा होगा ?

 

कल का आज कैसा होगा ,

किसी के  सपनो के ताजमहल नही ,

खंडहर जैसा होगा ,

दीवारें खड़ी बेजान सी ,

जाने पहचाने अनजान सी,

उठने से पहले ,

दबने वाले तूफान सी ,

खड़ी होगी अपने जर्जर नीव पर ,

अपने सत्य को मिथ्या बताते ,

जिन्हें देख कर उठेगा प्रश्न ,

कल का आज कैसा होगा,

इस खँडहर नही,

किसी के…

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Added by Rajeev Kumar Pandey on April 13, 2011 at 12:30pm — 2 Comments

बदल गया है आदमी





आज लगता है शायद बदल गया है आदमी ,

अपनी लगाई आग में ही जल गया है आदमी,



कल जिस चीज  की ओर नजर  भी नही फेरता था,

आज  उसी के लिए  ही क्यूँ मचल गया है आदमी  ,



कल तक था जो पत्थरों  की तरह  अडिग ,…

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Added by Rajeev Kumar Pandey on April 13, 2011 at 12:00pm — 2 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नवगीत-तुलसी के बिरवे ने

नवगीत

------------x----------------

 

तुलसी के बिरवे ने तेरी 
याद दिलाई है
सर्दी नहीं लगी थी फिर भी
खांसी आई है…
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Added by Rana Pratap Singh on April 13, 2011 at 10:00am — 13 Comments

देख गमों को मेरे वे मुस्कुराते बहुत हैं,





उनके गमले में खुशबू हैं बिखरे हुए ,

मेरे दामन हैं  काँटों से निखरे हुए ,

वो  मखमल की सेजों पे भी रोते हैं,

चेहरे धूल में हमारे रहते हैं निखरे हुए,



देख गमों को मेरे वे मुस्कुराते बहुत हैं,…

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Added by Rajeev Kumar Pandey on April 12, 2011 at 11:30pm — 1 Comment

मै नारी हूँ

मै नारी हूँ

अक्सर मै इसी सोच में खो जाती हूँ

क्या मुझे वो अधिकार मिला है ?

मै जिसकी अधिकारी हूँ ?

मै नारी हूँ



मनु कि  अर्धांगिनी मै

विष्णु- शिव कि संगिनी मै

मै अक्सर सोचा करती हूँ…

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Added by Rajeev Kumar Pandey on April 12, 2011 at 9:30pm — 6 Comments

बुलबुला...

          उठा था चमकता-दमकता....…

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Added by Julie on April 12, 2011 at 6:30pm — 4 Comments

जुड़वां -हाईकु

१ चोरों की दसों

उंगलियाँ घी में औ

माथे कढ़ाही....

 

जागते रहो....

शहर की पुलिस

सो गयी अब…

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Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on April 11, 2011 at 11:00pm — 2 Comments

तो करें एक प्रयत्न हम ??

विलुप्त होते हैं जीव,

विलुप्त होता है जल...

विलुप्तप्रायः असंख्य प्राणी आजकल..
विलुप्त नहीं होते  क्यों अब भी…
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Added by Lata R.Ojha on April 11, 2011 at 4:30pm — 2 Comments

नाम और काम का संबंध

ये नाम और काम का संबंध बड़ा नाजुक है

बड़े हिसाब किताब के बाद ही इनके संबंध स्थापित करने चाहिए

अब खुद ही देख लो

भ्रष्टाचारियों को भी नेता कहना पड़ता है

और दलालों को पत्रकार

गुंडों को रक्षक, और जो पकड़ा गया बस वो ही भक्षक

 

किसी ने कहा नाम में क्या रक्खा है

अरे भाई ! नाम का ही तो सारा काम है

और जिसका नाम नहीं उसकी जिंदगी हराम है

 

पांच सो का जूता दो हज़ार में बिकता है नाम की…

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Added by Bhasker Agrawal on April 11, 2011 at 3:07pm — 6 Comments

माँ

दुनियां के सभी रिश्तों में प्रमुख रिश्ता हैं माँ

सचमुच में हर प्राणी के लिए फरिश्ता हैं माँ।।

 

घने कोहरे में गर मंजिल नजर न आयें।

बंद हो सब रास्ते तो इक रास्ता हैं माँ।।

 

दुनियां के इस खौफनाक बियाबां में दोस्तों।

वहशियों से काबिले-हिफाजत पिता हैं माँ



सगे-संबंधी मित्र-बंधु सभी सुख के साथी।

लेकिन दु़ख में साथ निभाने वाली सहभागिता हैं…

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Added by nemichandpuniyachandan on April 11, 2011 at 10:00am — 3 Comments

प्रिय ,अभी

प्रिय ,अभी

वक्त कैसे बीत रहा हैं अब आप को क्या बताऊँ हर तरफ तुम्हारी ही यादें है .हर तरफ हर जगह तुम्ही दिख रहे हो .. तुम्हारी ओ मुस्कुराहट.. तुम्हारी आहट बन कर सताती है.......तुम्हें देखने की जो ललक  तब थी.. ओ…

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Added by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 10, 2011 at 2:30pm — No Comments

गजल

हर लम्हें में निहाँ हैं अक्स जिंदगी का।
ढूंढते रह जाओगे नक्श जिंदगी का ।।

 

रुठों को मनाने में लग जाते हैं जमाने।
ता-उम्र चलता रहता हैं रक्स जिंदगी का।।

 

रंजो-गम में जो साथ न छोडे।
सबसे बेहतर है वो शख्स जिंदगी का।।

 

राहें-मंजिल में जो कदम न लडखडाए।
हासिल कर ही लेते हैं वो लक्ष जिंदगी का।।

 

बनी पे लाखों निसार हो जाते है चंदन।
कोई नहीं होता बरअक्स जिंदगी का।।

 

नेमीचन्द पूनिया चंदन े  

Added by nemichandpuniyachandan on April 10, 2011 at 12:00pm — 1 Comment

सर जायेगा

नफरतों से जब कोई भर जायेगा 
काम कोई दहशती कर जायेगा 
 
इक गली,इक बाग़ कोई छोड़ दो
एक बच्चा खेल कर घर जायेगा
 
बागबाँ को क्यों खबर होती नहीं
फूल इक अहसास है मर जायेगा
 
रेत के सहरा को कब मालूम है
एक बादल तर-ब-तर कर जायेगा
 
अब यक़ीनन राह भूलेगा कोई
जब कोई यूँ कौम को…
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Added by ASHVANI KUMAR SHARMA on April 9, 2011 at 10:00pm — 4 Comments

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