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यूँ तो 

बहुत पहले से 
रखी थी 
वह किताब शेल्फ में
उठा कर उसको
आज मैं जो पढने बैठा
उलटते-उलटते वर्क
न जाने क्या हुआ...!!!
की
हिल गयीं सब हर्फों की
बुनियादें
और
उखड-उखड कर
गिरने लगे शब्द..
मैं हैरान हूँ...
"स्पर्श था
उँगलियों में पहले
आज, मेरी उँगलियों में
नाखून हैं |"

 

© AjAy Kum@r

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Comment

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Comment by AjAy Kumar Bohat on April 30, 2011 at 11:13pm
अरुण जी,सौरभ जी,गणेश जी, आप सभी ग्यानी-जनों का मैं बहुत-बहुत आभारी हूँ, की आपने मेरी कृति को सराहा... हौसला-अफ्ज़ाही का शुक्रिया...
Comment by Abhinav Arun on April 29, 2011 at 7:18pm
वाह अजय जी सुन्दर और सशक्त भाव बधाई |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 28, 2011 at 1:43pm

आखिरी इन्वर्टेड पंक्तियाँ भावों को न सिर्फ़ पूरी ताक़त स्थापित करती हैं बल्कि लगातार होते जाते घिनौने बदलाव के प्रत्येक आयाम को उभारती हैं.  बहुत-बहुत बधाई.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 28, 2011 at 10:37am
अच्छी कविता लिखी है आपने , सुंदर अभिव्यक्ति हेतु आभार आपको |

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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