For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – December 2013 Archive (4)

गरीब का पेट ( अतुकांत )

गरीब का पेट



बड़ा जालिम होता है

गरीब का पेट

नहीं देता देखने

सुन्दर-सुन्दर सपने

गरीबी के दिनों में

छीन लेता है वह

सपना देखने का हक

जब कभी

देखना चाहती है आंख

सुंदर सा सपना

मागने लगता है पेट

एक अदद सूखी रोटी

आंख ढूंढ ने लगती है तब

इधर उधर बिखरी जूठन

और फैल जाते हैं हाथ

मागने को निवाला

गरीबी के दिनों में

दूसरों के सम्मुख फैले हुए हाथ

सपना देखती आंख के

मददगार नहीं होते…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 25, 2013 at 6:30am — 10 Comments

ये दुनिया धर्मशाला है (ग़ज़ल )

हैं  कपड़े  साफ  सुथरे  से , पड़ा  काँधे  दुशाला  है

शहर  में भेडि़यों  ने आ, बदल  अब  रूप  डाला है



कहानी  रोज  पापों की, उघड़  कर  सामने  आती

किसी ने  झूठ  बोला था, ये  दुनिया  धर्मशाला है



समझ के आम जैसे ही, आमजन चूसे जाते नित

बनी ये सियासत अब, महज भ्रष्टों  की  खाला है



मथोगे गर मिलेगा नित, यहाँ अमृत भी पीने को

है सिन्धु सम जीवन, कहो मत विष का प्याला है

किया सुबह  शाम झगड़ा , रखी वाणी  में दुत्कारें

'मुसाफिर'…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2013 at 7:30am — 13 Comments

सब हमामों के चरित्तर (ग़ज़ल )

2112     2112   2112    112

**********************************************

दाग  चंदा   को  लगे  हैं, सूरज  का  क्या गया

ढूँढ  लेगा रात  को  वो, फिर से  कोई घर नया



बादलों  को  थी  मनाही ,  कैसे   करते  बारिसें

उसके  सूखे  दामनों  पर, आँसुओं  ने  की दया



कौन बोले, किसको बोले, इस सियासत में बुरा

सब  हमामों  के चरित्तर, शेष  किसमें  है हया



बाज  के  थे  सहायक  चील ,  कौवे  औ’ उलूक

फिर अकेली  बाज से, कब   तलक लड़ती बया



सोच…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 7:00am — 8 Comments

गर जीना हो भोलापन (ग़ज़ल)

1221 1221 1221 121



हमेशा  राह में  नदियों,  बिछे पत्थर नहीं होते

मिला वनवास जिनको हो, उनके घर नहीं होते

.

किसी से बावफा तो, किसी से बेवफा क्यों दिल

कभी   इन  सवालों के,  कोई  उत्तर  नहीं होते

.

कभी  चलके, कभी  तर के, जहाँ   घूम  लेते हैं

परिन्दे जिनके उड़ने को, वदन पे पर नहीं होते

.

चला  देते  हैं झट खन्जर,  नीदों में भी साये पे

ये ना समझो जहन में कातिलों के डर नहीं होते

.

गर  जीना हो  भोलापन,  रहो  भीड़  से…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2013 at 11:00am — 11 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
7 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
8 minutes ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
8 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय भाई लक्ष्मण जी  हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
10 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन।गजल का प्रयास अच्छा है। सुझाव से यह निखर गयी है। इसका संज्ञान…"
15 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई गजेंद्र जी, हार्दिक आभार।"
28 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"मुशाइरे में सहभागिता के लिए बधाई आदरणीय सुरेन्दर जी! मश्क़ जारी रखिए!"
30 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"//हसरत ये लिए ही न चला जाऊँ मैं जग से   "तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए…"
40 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० निलेश जी! बहुत बधाई!"
47 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल के लिए बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी! मतला अच्छा है, अन्य शेर थोड़े से प्रयास से और निखर सकते हैं।"
52 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल के लिए की गई मश्क़ अच्छी है और भविष्य की सुखद उम्मीदें जगाती है। प्रयासरत रहिए आदरणीय आज़ी साहब!…"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service