For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Samar kabeer's Blog – July 2017 Archive (5)

'महब्बत कर किसी के संग हो जा'

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन



हिमाक़त छोड़ दे फ़रहंग हो जा

महब्बत कर किसी के संग हो जा



ग़ज़ल मेरी सुना लहजे में अपने

मैं गूँगा हूँ मेरा आहंग हो जा



यहाँ घुट घुट के मरने से है बहतर

निकल मैदाँ में मह्व-ए-जंग हो जा



करे अपना के दुनिया फ़ख़्र जिस पर

वफ़ा का वो निराला ढंग हो जा



चढ़े इक बार जिस पर फिर न उतरे

महब्बत का तू ऐसा रंग हो जा



ये दुनिया सीधे साधों की नहीं है

उदासी छोड़ शौख़्-ओ-शंग हो जा



जुदा ता उम्र कोई कर न… Continue

Added by Samar kabeer on July 24, 2017 at 12:00am — 25 Comments

'ये लहू दिल का चूस्ती है बहुत'

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन/फ़ेलान

ज़ह्न में यूँ तो रौशनी है बहुत
पर जमी इसमें गंदगी है बहुत

इतना आसाँ नहीं ग़ज़ल कहना
ये लहू दिल का चूस्ती है बहुत

एक एक पल हज़ार साल का है
चार दिन की भी ज़िन्दगी है बहुत

चींटियाँ सी बदन पे रेंगती हैं
लम्स में तेरे चाशनी है बहुत

फ़न ग़ज़ल का "समर"सिखाने को
एक 'दरवेश भारती'है बहुत
---
लम्स-स्पर्श
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

Added by Samar kabeer on July 18, 2017 at 11:03am — 24 Comments

'अदब की मुल्क में मिट्टी पलीद कैसे हो'

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन

१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२



ख़ुलूस-ओ-प्यार की उनसे उमीद कैसे हो

जो चाहते हैं कि नफ़रत शदीद कैसे हो



छुपा रखे हैं कई राज़ तुमने सीने में

तुम्हारे क़ल्ब की हासिल कलीद् कैसे हो



बुझे बुझे से दरीचे हैं ख़ुश्क आँखों के

शराब इश्क़ की इनसे कशीद् कैसे हो



हमेशा घेर कर कुछ लोग बैठे रहते हैं

अदब पे आपसे गुफ़्त-ओ-शुनीद कैसे हो



इसी जतन में लगे हैं हज़ारहा शाइर

अदब की मुल्क में मिट्टी पलीद कैसे…

Continue

Added by Samar kabeer on July 13, 2017 at 11:30am — 57 Comments

यहाँ के लोग महब्बत शदीद करते हैं

मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन



ये काम आज के एह्ल-ए-जदीद करते हैं

ग़ज़ल के मुँह पे तमांचा रसीद करते हैं



लगे हुए तो हैं पैहम इसी तग-ओ-दौ में

हमें वो देखिये किस दिन शहीद करते हैं



ये नफ़रतें तो महज़ आरज़ी हैं,सच ये है

यहाँ के लोग महब्बत शदीद करते हैं



मुसालहत की अगर आरज़ू है तुमको भी

तो आओ बैठ कर गुफ़्त-ओ-शुनीद करते हैं



वफ़ा से दूर तलक जिन को वास्ता ही नहीं

ये लोग उनसे इसी की उमीद करते हैं



तू भूल से भी "समर" मेरा… Continue

Added by Samar kabeer on July 10, 2017 at 12:31am — 26 Comments

रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़



यारों में जब रंजिश होने लगती है

चुपके चुपके साज़िश होने लगती है



आँखों में जब सोज़िश होने लगती है

रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है



बाबू जी का साया सर से उठते ही

धरती की पैमाइश होने लगती है



तुम जब मेरे साथ नहीं होते जानाँ

मुझ पर ग़म की यूरिश होने लगती है



मुझसे कोई काम अटक जाता है जब

उनको मेरी काविश होने लगती है



जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ

हाथों में क्यूँ लरज़िश… Continue

Added by Samar kabeer on July 4, 2017 at 12:07am — 39 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service