For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – June 2021 Archive (9)

निष्पक्ष सत्य सुर्खी में -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221-2121-1221-212



अखबार कोई आज भी अच्छा बचा है क्या

हर सत्य जिसमें नाप के छपता खरा है क्या।१।

*

राजा से पूछा  करता  जो  डंके  की चोट पर

जन के दुखों को देख के मानस दुखा है क्या।२।

*

हट  कर खबर  के  पृष्ठों  से  सम्पादकीय में

जनता के हित का मामला कोई उठा है क्या।३।

*

जिस का लगाता दाँव है पत्रकार जान तक

निष्पक्ष सत्य  सुर्खी  में  आता सदा है क्या।४।

*

पीड़ा हो जिस में लोक की केवल छपी हुई

नेता के नित्य कर्म को लिखना घटा है…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 30, 2021 at 6:41am — 3 Comments

भटका रही हैं रोज ही रस्तों की खेतियाँ-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221/2121/1221/212

पत्थर जमाना  बोये  जो  काटों की खेतियाँ

छोड़ो न तुम तो साथियों सुमनों की खेतियाँ।१।

*

कर लेंगे  ये  भी  शौक  से  बेटे  किसान के

लिख दो हमारे हिस्से में जख्मों की खेतियाँ।२।

*

ये जो  है  लोकतंत्र  का  धोखा  मिला  हमें

बन्धक रखी  हैं  वोट  दे  हाथों की खेतियाँ।३।

*

बदलो स्वभाव काम का हर दुख मिटाने को

किस्मत पे छाप  छोड़ती  कर्मों की खेतियाँ।४।

*

उजड़े नगर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 28, 2021 at 1:28pm — No Comments

मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122/2122/2122/212



है नहीं क्या स्थान जीवन भर ठहरने के लिए

जो शिखर चढ़ते हैं सब ही यूँ उतरने के लिए।१।

*

स्वप्न के ही साथ जीवन हो सजाना तो सुनो

भावना की  कूचियाँ  हों  रंग  भरने के लिए।२।

*

ये जगत बैठा के खुश हैं लोग यूँ बारूद पर

भेज दी है अक्ल सबने घास चरने के लिए।३।

*

खिल के आयेगी हिना भी सूखने तो दे सनम

रंग लेता  है  समय  कुछ  यूँ  उभरने के लिए।४।

*

मौत का भय है न जिनको जुल्म वो सहते नहीं

जिन्दगी का  लोभ  काफी  यार …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 23, 2021 at 7:18pm — 8 Comments

सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



इज्जत हमारी उनसे ही पहचान जग में है

सच है हमारा तात से सम्मान जग में है।१।

*

वंदन उन्हीं के चरणों का करते हैं उठते ही

आशीष उन का ईश का वरदान जग में है।२।

*

मागें भला क्या ईश से मालूम हमको सब

माता पिता के रूप में भगवान जग में है।३।

*

सर पर पिता का हाथ है जिसके बना हुआ

वो सच स्वयं नसीब से धनवान जग में है।४।

*

हमको जहाँ के खेल का अनुभव नहीं कोई

जीना उन्हीं की सीख से आसान जग में है।५।

*

ये खेल ये…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2021 at 7:04pm — 6 Comments

सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

221, 2121, 1221, 212

तैराक खुद को जाँचने पानी में आयेगा

तब ही नया सा मोड़ कहानी में आयेगा।१।

*

तुमको सफर मिला भी तो रस्ता बुहार के

रोड़ा न अब  के  कोई  रवानी  में आयेगा।२।

*

सत्तर बरस में बचपना इसका गया नहीं

कब देश अपना यार  जवानी में आयेगा।३।

*

सोने की चिड़िया फिर से कहायेगा देश ये

जब दौर सुनहरा  सा  किसानी में आयेगा।४।

*

देती…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 17, 2021 at 6:30am — 4 Comments

इस को जरूरी रात में कोई जगा रहे-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२

चाहत नहीं कि सब से ही मिलती दुआ रहे

केवल जगत  में  शौक  से  नेकी  बचा रहे।१।

*

हम को कहो  न  आप  गुनाहों का देवता

पापों की गठरी आप की हम ही जला रहे।२।

*

चाहत सभी को नींद जो आये सुकून की

इस को  जरूरी  रात  में  कोई  जगा रहे।३।

*

माना बुरे हैं  दाग  भी हमको लगे हैं पर

वो ही उठाये उँगली जो केवल भला रहे।४।

*

अपनी ही आखें बन्द हैं मानो ये साथियो

अच्छे दिनों को खूब वो कब से दिखा रहे।५।

*

झगड़ा न…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2021 at 4:32am — 7 Comments

कहता था हम से देश को आया सँभालने-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२



करता है जग में धर्म के लोगो न काम वो

लेकिन बताता नाम है सब को ही राम वो।१।

**

कहता था हम से देश को आया सँभालने

पर उजली भोर कर रहा देखो तो शाम वो।२।

**

महँगा हुआ है थाली में निर्धन का कौर भी

सेठों को  मुफ्त  बाँटता  हर दम ईनाम वो।३।

**

केवल उड़ायी  नींद  हो  ऐसा नहीं हुआ

सपने भी लूट ले गया सब के तमाम वो।४।

**

समझा न मन के दर्द को लोगो भले कभी

करता है मन की  बात  बहुत बेलगाम…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 7, 2021 at 7:08am — 5 Comments

कम है-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" (गजल)

२१२२/२१२२/२१२२

गीत में सद् भावना का ज्वार कम है

सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।

**

दे रहे  सब  सान्त्वना  पर  जानता हूँ

शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।

**

सिद्ध कैसे  झट  से  होगी  योग  माया

आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।

**

सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब

हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।

**

हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता

किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।

**…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 4, 2021 at 1:20pm — 11 Comments

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२

लिक्खा सजा के हम ने उजालों ने जो कहा

लाया  मगर  अमल  में  अँधेरों  ने जो कहा।१।

**

बैठक में ला के रख दी वो शोभा बढ़ाने को

समझा बताओ किसने किताबों ने जो कहा।२।

**

देखा जो उसको मान के आँखों का धोखा है

जाना  अमर  है  सत्य  हवाओं  ने  जो  कहा।३।

**

सोचा ही था कि शाप के परिणाम आ गये

आया असर  न  एक  दुआओं ने जो कहा।४।

**

इस दौर कह के झूठ है अन्नों की बात को

सच कह रही है  देह  दवाओं ने जो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 3, 2021 at 11:30am — 9 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
1 minute ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
5 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
6 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
7 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
24 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
29 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
41 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा षष्ठक. . . . आतंक
"ओह!  सहमत एवं संशोधित  सर हार्दिक आभार "
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"जी, सहमत हूं रचना के संबंध में।"
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"शुक्रिया। लेखनी जब चल जाती है तो 'भय' भूल जाती है, भावों को शाब्दिक करती जाती है‌।…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service