For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts – April 2015 Archive (7)

कवि की मृत्यु के बाद / गीत (विवेक मिश्र)

दूर कोई कवि मरा है



जो मुखर संवेदना थी

आज कोने जा लगी है

थक चुका आक्रोश है यूँ

मौन इसकी बानगी है



अब इन्हें स्वर कौन देगा?

भाग्य का ही आसरा है



अनगिनत सी भावनायें

बीजता रहता है यह मन

किन्तु विरले जानते हैं

भावनाओं पर नियंत्रण



कब किसे है छाँटना और

कौन सा पौधा हरा है?



लेखनी जर्जर पड़ी है

पृष्ठ रस्ता तक रहे हैं

भाव, शब्दों से कहें अब

'हम अकेले थक रहे हैं'



पूर्ण है 'मुख' गीत का,… Continue

Added by विवेक मिश्र on April 27, 2015 at 8:30am — 9 Comments

काला पानी (लघुकथा)

"अरे राधेलाल,फिर चाय का ठेला! तुम तो अपना धंधा समेटकर अपने बेटे और बहू के घर चले गए थे।"

"अरे सिन्हा साब!वो घर नही,काला पानी है काला पानी!सभी अपने ज़िन्दगी में इतने व्यस्त हैं कि न कोई मुझसे बात करता और न कोई मेरी बात सुनता।बस सारा दिन या तो टी वी देखो या फिर छत और दीवारों को ताको।भाग आया।यहाँ आपलोगों के साथ बतियाते और चाय पिलाते बड़ा अच्छा समय बीत जाता है।अरे,आप किस सोच में पड़ गए?"

"सोच रहा हूँ कि मै तो तुम्हारी तरह चाय का ठेला भी नही लगा सकता।बेटा बहुत बड़ा अफ़सर जो ठहरा।"फीकी हँसी…

Continue

Added by Mala Jha on April 25, 2015 at 10:00am — 23 Comments

ग़ज़ल -- हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे

221-2121-1221-212



हर काम यूँ करो कि हुनर बोलने लगे

मेहनत दिखे सभी को, समर बोलने लगे



उस बेवफ़ा से बोलना तौहीन थी मेरी

लेकिन ये मेरे ज़ख़्म-ए-जिगर बोलने लगे



तहज़ीब चुप है इल्मो-अदब आज शर्मसार

देखो पिता के मुँह पे पिसर बोलने लगे



आँखों से मैं ज़बान का ऐसे भी काम लूँ

जो भी मैं कहना चाहूँ नज़र बोलने लगे



सब हमको बुतपरस्त समझते रहे मगर

ऐसे तराशे हमने , हजर बोलने लगे



दैरो हरम के नाम पे जब शह्र बँट गया

दोनों तरफ़… Continue

Added by दिनेश कुमार on April 21, 2015 at 8:30pm — 24 Comments

शिलाचित्र

मिट्टी के तत्वों से

गल चुके सैंकङों शब्द

कि शिलालेख की अर्थवत्ता खो चुकी.

जब कि,

अक्षम शिलालेख के नीचे

हस्ताक्षर सा शिलाचित्र

वयक्त कर रहा था सबकुछ.



कई-कई पुरूषों के बीच

अपह्रीत नारी, उसकी अस्मिता,

संकुचित देह से जैसे फटकर

निकलते आत्मरक्षार्थ हाथ.



पुरुषत्व के आगे याचनावत् थी नारी.



मिट्टी के तत्वों ने

शब्दों की तरह गलाया नहीं उसे,



इसलिए कि वह शिलाचित्र था

सर्वत्र के धरातल पर

सर्वदा की विषैली… Continue

Added by shree suneel on April 9, 2015 at 2:46pm — No Comments

ग़ज़ल-नूर-ख़ुदा का ख़ौफ़ करो

१२१२/ ११२२/ १२१२/ २२ (सभी संभव कॉम्बिनेशन्स)



हमें न ऐसे सताओ ख़ुदा
का ख़ौफ़ करो

ज़रा क़रीब तो आओ ख़ुदा का
ख़ौफ़ करो. …

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 2:00pm — 26 Comments

जल - पंकज त्रिवेदी

जल बहता है -

झरनें बनकर, लिए अपनी शुद्धता का बहाव

वन की गहराई को, पेड़, पौधों, बेलों की झूलन को लिए

जानी-अनजानी जड़ीबूटियों के चमत्कारों से समृद्ध होकर

निर्मलता में तैरते पत्थरों को कोमल स्पर्श से शालिग्राम बनाता हुआ

धरती का अमृत बनकर वनवासियों का, प्राणियों का विराम !



जल बहता है -

नदी बनकर, नालों का बोझ उठाती, कूड़ा घसीटती

मंद गति से बहती, अपने निज रंग पर चढी कालिमा को लिए

भटकती है गाँव-शहरों की सरहदों से छिल जाते अपने अस्तित्व को लेकर…

Continue

Added by Pankaj Trivedi on April 2, 2015 at 12:30pm — 15 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
शह्र छोड़ गई-ग़ज़ल

1212 1122 1212 112/22

गई तो रंग बदलता ये शह्र छोड़ गई

घटा बहारों में ढलता ये शह्र छोड़ गई

 

सबा चमन से गुज़रते हुये महक लेकर

रविश-रविश* यूँ टहलता ये शह्र छोड़ गई                                    *बाग़ के बीच की पगडण्डी          

 

फ़िज़ा ए शह्र तलक आके यक-ब-यक आँधी

यूँ मस्तियों में उछलता ये शह्र छोड़ गई

 

तमाम रात भटकती वो तीरगी* आखिर                                        *अँधेरा

पिघलती शम्अ पिघलता…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2015 at 5:30pm — 20 Comments

Featured Monthly Archives

2025

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
27 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
33 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
36 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
49 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
55 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
19 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service