For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sheikh Shahzad Usmani's Blog – March 2017 Archive (6)

अनिश्चित भविष्य (कविता) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

कुण्ठित व्यथित
या हुए
व्यथित कुण्ठित !

विघटित संगठित
या हुए
संगठित विघटित !

अघटित घटित
या हुआ
घटित अघटित !

निश्चित अनिश्चित
या है
अनिश्चित निश्चित
भविष्य
देश का !

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2017 at 3:25pm — 8 Comments

दशा और दिशा [लघुकथा] /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"कहता था न कि अच्छा साहित्य पढ़ा करो, अच्छी वेबसाइट पर ही जाया करो, वरना भटकने में देर नहीं लगती!"



"सबकी नज़र में 'अच्छा' एक जैसा हो, ज़रूरी तो नहीं? मेरी नज़र में यही सब 'अच्छा' था!" दोस्त की बात का जवाब देते हुए उसने सारी पर्चियां टेबल पर फैला दीं।



"तुम लड़कियों और औरतों के जितने नज़दीक़ गये, उतने ही औरत जात से दूर होते गये, क्या मिला तुम्हें?"



पर्चियां फिर से काँच के जार में डालते हुए दोस्त की बात का जवाब देते हुए उसने कहा- "जो नम्बर इन पर्चियों में लिखे हैं न,… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2017 at 12:36am — 6 Comments

न्याय या अन्याय (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"इंसान अब तो अपने बनाये लैंसों से लैस है, तमाम तरह के कैमरों ने हमारे काम संभाल कर हमें बड़ी ज़िम्मेदारियों से बचा लिया है!" एक आँख ने दूसरी से कहा।





"हमारा हक़ भी तो छीना गया है न! हमारा अपना दायरा कितना सीमित कर दिया गया है, सोचा कभी?" दूसरी आँख बोली।



"सीसीटीवी कैमरों से अधिक हुआ है यह सब!"



"क्योंकि वे इंसानी स्वभाव से मुक्त हैं, जिस कारण वे भावुक नहीं हो सकते। वे इंसानों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा सतर्क रहते हैं, इसलिए पुलिस वालों से भी ज़्यादा भरोसा अब… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 17, 2017 at 9:05pm — 2 Comments

घटते क़द (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

बच्चों के दोनों तरफ क़िताबों के ढेर लगे हुए थे। नन्हें बच्चे अपनी गोदियों में बड़ी सी क़िताबें लिए विश्व-स्तरीय मशहूर तस्वीरों को निहार रहे थे।



क़िताबों के एक ढेर ने दूसरे से कहा- "किसका क़द ऊँचा? मेरा, तेरा या हमसे इन बच्चों का?"



जवाब मिला- "न तेरा, न मेरा और न ही इन बच्चों का! क़द तो ऊँचा है इन्टरनेट का, जो हम में समाया हुआ है, हम सब पर भारी है, जिसके प्रति शिक्षा जगत आभारी है!"



यह सुनकर पहले ढेर ने कहा- "तो शिक्षा जगत का ही क़द ऊँचा हुआ या शिक्षा-नीतियों का?… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2017 at 9:59pm — 6 Comments

किसका क़द ऊँचा? (अतुकांत)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

किसका क़द है ऊँचा ?

पुस्तकों का ?

बच्चों का ?

पालकों का ?

शिक्षा-नीति का ?

सत्ता का ?

व्यापार का?

अंग़्रेज़ियत का ?

इन्सानियत का ?

इंटरनेट का ?

अमरीका का ?

बिल गेट्स का ?

भारतीय का?



कौन ऊपर उठता ?

कौन बस गिरता ?

भारत माता हँसती,

या हम पर

जग हँसते ?



क़िताबें हम पर

हँसतीं,

या इंटरनेट हँसता

पुस्तकों पर ?



या हँसता तोता

तोतले तोतों पर !

तोते उड़ते

या क़ैद… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 9, 2017 at 8:30pm — 4 Comments

छोटे पेट वाले (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

बेटे के ही नहीं, बिटिया के भी अरमान पूरे करने थे। बच्चों की ज़िद पर गांव से अपना अनचाहा, लेकिन बच्चों व पत्नी का मनचाहा पलायन कर तो लिया था, लेकिन शहर की न तो आबो-हवा रास आ रही थी, न ही शहर वालों के आचरण और कटाक्ष वगैरह! किसी तरह किराए के कमरे में बच्चों के साथ ठहरे हुए थे। सुबह चार बजे उन्हें पढ़ने के लिए जगाकर आज साइकल उठायी और चल पड़े लाखन बाबू किसी मन चाही तलाश में। कुछ किलोमीटर दूर जाकर एक लम्बी सी साँस लेकर बड़बड़ाने लगे "हे भगवान, आज साँस लेना अच्छा लग रहा है इस हरियाली में! अच्छा हुआ कि… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 3, 2017 at 7:50pm — 9 Comments

Monthly Archives

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service