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दिल के हाल सुने दिलवाला (लघुकथा)

"अपनी पैरों से रौंदें, दूजी जो भा जाये!"


"घर की मुर्ग़ी दाल बराबर; नयी पीढ़ी को कौन समझाये!"


अपनापन त्याग कर ख़ुदग़र्ज़ी, मनमर्ज़ी, दोगलापन, पागलपन, बचकानापन दिखाती अपने मुल्क की नई पीढ़ी की सोच और पलायन-गतिविधियों पर दो बुजुर्गों ने अपनी-अपनी राय यूं ज़ाहिर की।


"... 'ओल्ड इज़ गोल्ड' कहावत को छोड़ो जी; ओल्ड इज़ सोल्ड! नई पीढ़ी है सो बोल्ड! उन्हें ज़मीनी स्टोरीज़ टोल्ड हों या अनटोल्ड! हम बुड्ढे तो हुए क्लीन-बोल्ड!" उनमें से एक ने दूसरे से कहा, लेकिन ख़ुद के दर्द-ए-दिल और दर्द-ए-ज़िगर को दबाने में नाकामयाब होते हुए और दूसरे के जगाते हुए!


(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on March 17, 2020 at 3:01pm

आपकी लघु कथा बहुत अच्छी लगी। बधाई मित्र शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by Samar kabeer on March 11, 2020 at 7:44am

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 11, 2020 at 7:13am

आ..भाई शेख शहजाद जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on March 10, 2020 at 6:18pm

आदरणीय शैख़ शहज़ाद उस्मानी साहब, आदाब! बहुत सुन्दर लघुकथा लिखी है आपने, दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल फ़रमाएँ। ये मौज़ू मेरे दिल के बहुत क़रीब है, और आपने बहुत कम अलफ़ाज़ में बहुत कुछ कह दिया।

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