For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कवि - राज बुन्दॆली's Blog – January 2012 Archive (12)

ज़िन्दगी कॆ रंग,,,,,,,,

ज़िन्दगी कॆ रंग,,,,,,,,

----------------------------

ज़िंदगी कॆ रंग पिचकारी,सॆ सब छूट गयॆ ॥

कैसॆ बतायॆं हम लाचारी, सॆ सब छूट गयॆ ॥१॥

घर, कुआं, खॆत,बगीचा,सब हमारॆ भी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 30, 2012 at 1:59am — 1 Comment

बहती गंगा मॆं,,,,,

बहती गंगा मॆं,,,,,

--------------------------

स्वार्थ की चादर, तानकर सॊयॆ हैं सब ॥

न जानॆ कौन सॆ, भ्रम मॆं खॊयॆ हैं सब ॥१॥

समय किसी का, उधार रखता नहीं है,…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 25, 2012 at 9:23pm — 1 Comment

इशारॊं-इशारॊं सॆ

इशारॊं-इशारॊं सॆ

----------------

इशारॊं-इशारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥

आज सितारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥१॥

गुलॊं सॆ मॊहब्बत, है हर एक कॊ,

क्यूं न ख़ारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥२॥

यह हवॆली महफ़ूज़, है या कि नहीं,

इन पहरॆदारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥३॥

रॊटी की कीमत, समझ मॆं आ जायॆ,

जॊ बॆरॊजगारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥४॥

उस की आबरू, नीलाम हॊगी कैसॆ,

चलॊ पत्रकारॊं सॆ, बात कर ली जायॆ ॥५॥

किसकी सिसकियां, हैं उन खॆतॊं मॆं,

"राज"जमींदारॊं…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 24, 2012 at 3:13pm — 4 Comments

नहीं आती,,,,,,,,

नहीं आती,,,,,,,,

-------------------



क्रिकॆटर हॊ तॊ जातॆ मगर, बैटिंग नहीं आती ॥

इन्टरनॆट पर भाई हमकॊ, चैटिंग नहीं आती ॥१॥…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 19, 2012 at 11:09am — 3 Comments

नीयत साफ़ रखॊ,,,,,, -----------------------

नीयत साफ़ रखॊ,,,,,,

-----------------------



कुछ इस तरह सॆ,तबियत साफ़ रखॊ ।

नज़र साफ़ रखॊ, नीयत साफ़ रखॊ ॥१॥



यॆ सारा ज़माना,तुम्हारा हॊ जायॆगा,

मन साफ़ रखॊ,मॊहब्बत साफ़ रखॊ ॥२॥



हर बात की तासीर दिखाई दॆगी बस,

अदा साफ़ रखॊ,औआदत साफ़ रखॊ ॥३॥



मज़ाल क्या जॊ, बिगड़ जायॆं बच्चॆ,

अदब साफ़ रखॊ,नसीहत साफ़ रखॊ ॥४॥



तुम्हारा बॊया ही,औलाद कॊ मिलॆगा,

बीज साफ़ रखॊ, वशीयत साफ़ रखॊ ॥५॥…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:52am — 2 Comments

रिश्तॆ,,,,,, -----------------

रिश्तॆ,,,,,, -----------------

दूर जब सॆ दिलॊं कॆ मॆल हॊ गयॆ ।

रिश्तॆ जैसॆ राई का तॆल हॊ गयॆ ॥१॥

जिननॆ दी रिश्वत नौकरी मिली,

डिग्रियां लॆ खड़ॆ थॆ फ़ॆल हॊ गयॆ ॥२॥

इरादॆ बहुत नॆक मगर क्या करॆं,

मंहगाई मॆं दब कॆ गुलॆल हॊ गयॆ ॥३॥

बॆमानी भ्रष्टाचार न मरॆंगॆ कभी,

बढ़ रहॆ हैं जैसॆ अमरबॆल हॊ गयॆ ॥४॥

बात की बात मॆं बदल जातॆ लॊग,

वादॆ जैसॆ बच्चॊं, कॆ खॆल हॊ गयॆ ॥५॥

नर और नारी रचॆ थॆ नारायण…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2012 at 2:50am — 3 Comments

बड़ॆ खराब हॊ,,,,

बड़ॆ खराब हॊ,,,,

---------------------

कद से बढ़ कर हाज़िर जवाब हो!

अकेले गज़ल की पूरी किताब हॊ !!



तुम्हे खिज़ाब लगाने की क्या पड़ी,

रंग-रूप से तॊ पैदाइशी खिज़ाब हॊ !!



वक्त की आँधियों ने क्या बिगाड़ा है,

खिले गुलाब थे अब सूखे गुलाब हॊ !!



इस उम्र मे भी आ रहे हैं मिस काल,

मोहब्बत के मामले मॆं कामयाब हॊ !!



हमने तो महज़ सितारा समझा था,

मगर आप तो दहकते आफ़ताब हो !!…



Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 17, 2012 at 7:32pm — 3 Comments

समझ सॆ परॆ हैं हम,,,,,

समझ सॆ परॆ हैं हम,,,,,

-------------------------

यॆ मत सॊच कि इतनॆ गिरॆ हैं हम ॥

फ़क्त तॆरॆ इक वायदॆ पॆ मरॆ हैं हम ॥१॥

हॊशियारी की हरियाली न दिखावॊ,

ऎसॆ तॊ तमाम सारॆ खॆत चरॆ हैं हम ॥२॥

दिल मॆं कैद कर लॆं तुम्हॆं क्यूं कर,

कानूनी अदालत कॆ कटघरॆ हैं हम ॥३॥

हमारी हस्ती कॊ तॊलतॆ हॊ तराजू पॆ,

क्या समझॆ बॆज़ान सॆ बटखरॆ हैं हम ॥४॥

नॆकियॊं का दामन नहीं छॊड़ा कभी,

चाहॆ ला्खॊं मु्सीबत मॆं घिरॆ हैं हम ॥।५॥

शैतान की परवाह नहीं है जी…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 9:01pm — 3 Comments

दीवारॊं मॆं चुनॆं जानॆं कॆ बाद,,,,,,,

दीवारॊं मॆं चुनॆं जानॆं कॆ बाद,,,,,,,

---------------------------------

बात समझ मॆं आती है मगर,गुनॆ जानॆ कॆ बाद ।

शेर हल्का नहीं हॊता बारहां, सुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥१॥



नाम मिटाये नहीं मिटता चाहॆ आग मॆं जला दॊ,

चनॆ आखिर चनॆ ही रहतॆ हैं, भुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥२॥



मगरूरॊ तुम्हारा मिज़ाज, यकीनन बदल जायॆगा,

रुई भी बदल जाती है डंडॆ सॆ, धुनॆ जानॆ कॆ बाद ॥३॥



इज्जत बचाना किसी की इतना आसान नहीं है,

कपड़ा भी बनता है चरखॆ पॆ बुनॆ जानॆ कॆ बाद… Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 16, 2012 at 6:20pm — 2 Comments

मुक्तक

मुक्तक

--------------



हांथों में ले कर ज़ाम रात भर,

बहकते रहे बे-लगाम रात भर,

लतीफ़े उछलते रहे मुशायरे…
Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2012 at 1:29am — 6 Comments

मत पूंछिये,,,,,,,,

मत पूंछियॆ,,,,,,,,,,

---------------------



मतलब की बात करियॆ, बेकार का हाल मत पूछियॆ ॥

जैसी भी है अपनी है, सरकार का हाल मत पूछियॆ ॥१॥



लहराती है नैया, सरकार की तॊ लहरानॆ दीजियॆ,

आप माझी सॆ मगर,पतवार का हाल मत पूछियॆ ॥२॥



चिल्लातॆ चिल्लातॆ अन्ना की तबियत तंग हुई,

अपनॆ भारत मॆं, भ्रष्टाचार का हाल…

Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

कर दिया,,,,,,,,,,,,,,,,

कलम को तलवार कर दिया,,,,,,,,,,

-------------------------------------



सिखाकर आप ने उपकार कर दिया ।

लो हम पे एक और उधार कर दिया ॥१॥



अब उम्र भर न अदा कर पायेंगे हम,

इस कदर आपने कर्जदार कर दिया ॥२॥



ज़माना नीलाम कर देता आबरू मेरी,

वो आप हैं जो कि खबरदार कर दिया ॥३॥…



Continue

Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2012 at 5:00pm — 5 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service