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Dr. Geeta Chaudhary
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  • Ghaziabad, U.P.
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Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"प्रणाम  सर, मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Apr 18
Samar kabeer commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"मुहतरमा गीता जी आदाब, कविता का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें । सबसे पहले कविता का शीर्षक दुरुस्त कर लें  'एक वज़ह' इसमें 'वज़ह' ग़लत शब्द है सहीह शब्द है "वज्ह" । इसके इलावा उर्दू के कुछ शब्दों में आपने नुक़्ते…"
Apr 18
Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"सादर प्रणाम! प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार।"
Apr 17
KALPANA BHATT ('रौनक़') commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"इस सुन्दर-सी भावपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया गीता चौधरी जी | "
Apr 17
Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"हार्दिक आभार सर आपका.."
Apr 16
अटल मुरादाबादी commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"बहुत भावपूर्ण सृजन"
Apr 15
Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"आभार सर आपका..."
Mar 31
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"अच्छी प्रवाहमयी कविता के लिए बधाई आदरणीया..."
Mar 31
Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"बहुत आभार सर!"
Mar 22
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post कविता: "एक वज़ह"
"आ. गीता जी, सादर अभिवादन। सुंदर भावपूर्ण रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 22
Dr. Geeta Chaudhary posted a blog post

कविता: "एक वज़ह"

 शिकवों के दौर थे काफी, साथ ना तेरे आने को, पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी, तेरा साथ निभाने को।  अल्फाज़ों का शोर बहुत था, तुझे दगा बताने को। एक मेरी ख़ामोशी थी, सब ख़ामोश कराने को।  हर गुंजाइश फीकी थी, प्रीत परवाज़ चढ़ाने को। एक मेरी उम्मीद थी बाकी, बाकी बचा बचाने को।  तू पूरब, मैं पश्चिम हूं, ना मिलने का छोर है कोई, पर तेरा पता है काफी, मेरी राह बताने को।  उगते सूरज की लाली तू, अंदाज़े आग दिखाने को, मैं पश्चिम की लाली हूं, सब समेट छिप जाने को। "मौलिक व अप्रकाशित"See More
Mar 12
Balram Dhakar and Dr. Geeta Chaudhary are now friends
Feb 1
Dr. Geeta Chaudhary commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बहुत अकेले जोशीमठ को रोते देख रहा हूँ- गीत १३(लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..."
Jan 30
नाथ सोनांचली commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post क्षणिकाएं
"आद0 गीता चौधरी जी सादर अभिवादन। बढ़िया क्षणिकाएँ हुई हैं। बधाई लीजिये।"
May 5, 2020
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post क्षणिकाएं
"आ. गीता जी, अच्छी क्षणिकाएँ हुई हैं । हार्दिक बधाई । शेष आ. समर जी कह चुके हैं । सादर.."
May 4, 2020
Dr. Geeta Chaudhary commented on Dr. Geeta Chaudhary's blog post क्षणिकाएं
"नमस्कार सर, हार्दिक आभार । सर वो शब्द मैंने बे -अदबी ही लिखा था, वो मैंने नोटिस भी कर लिया था, पर सर उसमें बाद में संशोधन नहीं हो सका। आगे इस बात का अवश्य ध्यान रखूंगी। पुनः आपके मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
May 4, 2020

Profile Information

Gender
Female
City State
Ghaziabad
Native Place
Ghaziabad
Profession
Associate professor

Dr. Geeta Chaudhary's Blog

कविता: "एक वज़ह"

 शिकवों के दौर थे काफी,

 साथ ना तेरे आने को,

 पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी,

 तेरा साथ निभाने को।

 

 अल्फाज़ों का शोर बहुत था,

 तुझे दगा बताने को।…

Continue

Posted on March 11, 2023 at 10:28pm — 10 Comments

क्षणिकाएं

1. बड़ी बात ना कर, बड़ी ज़ात ना कर, ना बड़ा गुरूर,
ख़ुदा की नजरे-इनायत हुई, तो आजमाएगा ज़रूर।
.
2 . कभी वक्त का हिसाब, कभी बातों का,
ज्यादा ना माँगा करो, हम गणित के कच्चे हैं।
.
3. मेरे हौसलें भी बेअद्बी,
उसकी बेअद्बी भी हौसलें।
ये दुनियादारी का गणित है,
ज़मीर से नहीं हिसाब से चलता है।
.
4. तर्कों के तीर काट नहीं पाते,
तेरी…
Continue

Posted on May 3, 2020 at 2:00am — 4 Comments

ऐ पागल पथिक !

ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,

रुको जरा , सांस लो तनिक ,

सम्भलो जरा I

सब कुछ पाने की चाह में ,

कुछ टूट गया उस आशियाने में,

कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,

ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I

रुको जरा ........

घर पर नन्हों की आस में ,

और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,

छूटे किसी साज और रियाज़ में ,

वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I

रुको जरा ........

लूडो की गोटियाँ खोजो ,

शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,

कैरम की धूल…

Continue

Posted on March 27, 2020 at 3:32pm — 2 Comments

कविता: "तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?"

तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?

ये दुश्चरित्र है तुम्हारा,

सताता मुझे क्यूँ है?

तुम इन्सान ही बुरे हो,

इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है?

तुम्हे इसमें सुकून है बहुत,

ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है?

ये धर्म के ठेकेदार हैं,

फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं?

ये दोषी है समाज…

Continue

Posted on January 12, 2020 at 8:09pm — 4 Comments

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