For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कंवर करतार
  • Male
  • Dharamshala Kangra (HP)
  • India
Share on Facebook MySpace
 

कंवर करतार's Page

Latest Activity

कंवर करतार posted a blog post

ग़ज़ल

ग़ज़ल 1222    1222      1222       1222कोई कातिल सुना जो  शहर में है बेजुबाँ आयाकिसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँकरें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत कोअडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया अगर महफूज रखना है  बला से अह्ल-ए-दुनिया कोकहें हम दूर रहने को जो अपने भी यहाँ आया  किसी की कर रहा तीमारदारी  वह कवच पहनेखुदा का अक्स है…See More
Apr 7, 2020
कंवर करतार commented on कंवर करतार's blog post ग़ज़ल
"जनाब समर कवीर साहब ,आदाब कवूल करें I आपके सुझाव बेमिसाल हैं , अश'आर को निखारने के लिए बहुत बहुत आभारI आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है I शुक्रिया I "
Apr 7, 2020
कंवर करतार commented on कंवर करतार's blog post ग़ज़ल
"जनाब समर कवीर साहब ,आदाब कवूल करें I आपके सुझाव बेमिसाल हैं , अश'आर को निखारने के लिए बहुत बहुत आभारI आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है I शुक्रिया I "
Apr 7, 2020
Samar kabeer commented on कंवर करतार's blog post ग़ज़ल
"'धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई ' ये मिसरा ठीक है । 'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसान ' इस मिसरे को यूँ कर लें:- 'घरों में क़ैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ' 'अगर महफूज रखना है इस अपनी…"
Apr 7, 2020
कंवर करतार commented on कंवर करतार's blog post ग़ज़ल
"समर कवीर जी ,आदाबI  'घरों में कैद होकर रह गया हर कोई इंसान '  भी गलत होगा इसकी जगह ...  'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसान '  कैसा रहेगा ?"
Apr 6, 2020
कंवर करतार commented on कंवर करतार's blog post ग़ज़ल
"समर कबीर जी आदाब ,मैं आपकी टिपणी के लिए उत्सुक था I आपके सुझाव सदैव रचना को उत्कृष्ट करते हैं I 'धरा रह जायेगा  इन्सान का कोई भी हो हथियार' की जगह  'धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई ' और  'घरों में…"
Apr 6, 2020
Samar kabeer commented on कंवर करतार's blog post ग़ज़ल
"जनाब कंवर करतार जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन अभी शिल्प पर मिहनत करने की ज़रूरत है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें । 'धरा रह जायेगा  इन्सान का कोई भी हो हथियार' 'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब ही लोग' आपकी…"
Apr 6, 2020
कंवर करतार commented on Sushil Sarna's blog post समय :
"सरना जी , समय पर बहुत सार गर्भित रचना प्रस्तुत की है I बधाई I  "
Apr 3, 2020
कंवर करतार posted a blog post

ग़ज़ल

ग़ज़ल 1222    1222      1222       1222कोई कातिल सुना जो  शहर में है बेजुबाँ आयाकिसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँकरें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत कोअडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया अगर महफूज रखना है  बला से अह्ल-ए-दुनिया कोकहें हम दूर रहने को जो अपने भी यहाँ आया  किसी की कर रहा तीमारदारी  वह कवच पहनेखुदा का अक्स है…See More
Apr 3, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
Dharamshala Distt. Kangra HP
Native Place
Hamirpur(HP)
Profession
Retd. College Principal (HPHES)
About me
Reader of Hindi literature,compose poems in Hindi and Pahari languages,member of different cultural and social organisations.

ग़ज़ल

 

2122  2122   2122   212

 

मौज मस्ती चंद रोज आखिर जवानी फिर कहाँ I

दोस्तों में प्यार की वो ख़ुश-बयानी फिर कहाँ II

 

ख़्वाबों में बसता जो ऐसा यार-ए–जानी फिर कहाँ I

दिल में वो सोज़-ए–मुहब्बत की रवानी फिर कहाँ II

 

दिल के पुर्ज़े पुर्ज़े पर थी हो नुमायाँ अक्स जो ,

लिखने वाले लिख गये ऐसी कहानी फिर कहाँ I

 

फूल खिलकत के ले आए तोड़ हम उनके लिए ,

जाने उनकी कब मिलेगी मेज़बानी फिर कहाँ I

 

फिर मिलेंगे कब कहाँ जी भर के बातें कर लें हम ,

दौर-ए –उल्फ़त फिर कहाँ ये शादमानी फिर कहाँ I

 

आदमी हैं आदमी से काम कुछ तो कर चलें ,

ये जमाना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ I

 

वो शराफ़त और नफ़ासत के हैं  पैकर बन गये ,

गालिवन उनकी सदाकत का भी सानी फिर कहाँ I

 

आ चमन में सुर्ख इक ‘कंवर’ लगाएं फूल हम ,

कुछ दिनों की जिन्दगी होगी निशानी फिर कहाँ I  

 

 "मौलिक एवं अप्रकाशित"

कंवर करतार's Blog

ग़ज़ल

ग़ज़ल 

1222    1222      1222       1222

कोई कातिल सुना जो  शहर में है बेजुबाँ आया

किसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया

 

धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई 

हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया

 

घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ

करें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया

 

अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत को

अडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया

 

अगर महफूज रखना है  बला…

Continue

Posted on April 3, 2020 at 6:00pm — 6 Comments

कविता

शरद ऋतु गीत

झम झम रिमझिम पावस बीता

अब गीले पथ सब सूख गए

गगन छोर सब सूने सूने

परदेश मेघ जा बिसर गए

हरियावल पर चुपके चुपके

पीताभा देखो पसर गई

हौले हौले ठसक दिखा कर

चंचल चलती पुरवाई है -

लो! शरद ऋतु उतर आई है I

दशहरा, नवरात्र, दीवाली

छठ, दे दे खुशियाँ बीत गए

पक कट गए मकई बाजरा

पीले पीले भी हुए धान

रातें भी बढ़ कर हुईं लम्बी

घटते घटते गए दिनमान

विरहन का तन मन डोल रहा

खुद खुद से ही कुछ बोल…

Continue

Posted on January 8, 2018 at 10:00pm — 11 Comments

ग़ज़ल

212  212  212  212

सज सँवर अंजुमन में वो गर जाएँगे I

नूर परियों के चेहरे   उतर जाएँगे II

जाँ निसार अपनी  है तो उन्हीं पे सदा ,

वो कहेंगे जिधर  हम उधर जाएँगे I

ऐ ! हवा मत करो  ऐसी अठखेलियाँ ,

उनके चेहरे पे गेसू बिखर  जाएँगे I

 

पासवां कितने  बेदार हों हर तरफ ,

उनसे मिलने को हद से गुजर जाएँगे I

है मुहब्बत का तूफां जो दिल में भरा ,

उनकी नफ़रत के शर बे-असर जाएँगे I

बेरुखी उनकी…

Continue

Posted on August 17, 2017 at 9:30pm — 8 Comments

ग़ज़ल

1222  1222  1222  1222

 

अगर तुम पूछते दिल से शिकायत और हो जाती I

सदा दी होती जो  तुमने  शरारत ओर हो जाती II

 

पहन कर के नकावें जिन पे बरसाते कोई पत्थर ,

वयां तुम करते दुख उनका हिमायत और हो जाती I

 

कहो जालिम जमाने क्यों मुहव्वत करने वालों पर?

अकेले सुवकने से ही कयामत और हो जाती I

 

बड़ा रहमो करम वाला है मुर्शिद जो मेरा यारो ,

पुकारा दिल से होता गर सदाकत और हो जाती I

 

मुझे तो होश में लाकर भी…

Continue

Posted on August 15, 2017 at 10:21pm — 12 Comments

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 6:09pm on May 14, 2014, Admin said…

आभार आदरणीय ।

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
1 hour ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service