For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल 

1222    1222      1222       1222

कोई कातिल सुना जो  शहर में है बेजुबाँ आया

किसी भी भीड़ में छुप कर मिटाने गुलिस्तां आया

 

धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई 

हरा सकता नहीं कोई वह होकर खुशगुमां आया

 

घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ

करें कैसे मदद अपनों की कैसा इम्तिहाँ आया

 

अवाम अपने को आफत से बचाने में हुकूमत को

अडंगा दीं लगाए कैसा यह दौर-ए-जहाँ आया

 

अगर महफूज रखना है  बला से अह्ल-ए-दुनिया को

कहें हम दूर रहने को जो अपने भी यहाँ आया 

 

किसी की कर रहा तीमारदारी  वह कवच पहने

खुदा का अक्स है उसमें जो बन के पासबाँ आया 

 

मईशत ठप पड़ी है लड़ते लड़ते उससे दुनिया की

मची है खलबली हर सू कि ‘कंवर’ वह निहाँ आया

 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

डॉ. कंवर करतार 

Views: 638

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कंवर करतार on April 7, 2020 at 5:49pm

जनाब समर कवीर साहब ,आदाब कवूल करें I आपके सुझाव बेमिसाल हैं , अश'आर को निखारने के लिए बहुत बहुत आभारI आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है I शुक्रिया I 

Comment by कंवर करतार on April 7, 2020 at 3:08pm

जनाब समर कवीर साहब ,आदाब कवूल करें I आपके सुझाव बेमिसाल हैं , अश'आर को निखारने के लिए बहुत बहुत आभारI आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है I शुक्रिया I 

Comment by Samar kabeer on April 7, 2020 at 2:50pm

'धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई '

ये मिसरा ठीक है ।

'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसान ' इस मिसरे को यूँ कर लें:-

'घरों में क़ैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसाँ'

'अगर महफूज रखना है इस अपनी अहल-ए-दुनिया को

रहें हम दूर सबसे ही जो अपने यहाँ वहाँ आया'

इस शैर का ऊला यूँ कर लें:-

'अगर महफ़ूज़ रखना है बला से अह्ल-ए-दुनिया को'

और सानी की बह्र ठीक नहीं,बदलने का प्रयास करें ।

Comment by कंवर करतार on April 6, 2020 at 10:50pm

समर कवीर जी ,आदाबI 

'घरों में कैद होकर रह गया हर कोई इंसान '  भी गलत होगा इसकी जगह ...

 'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब इंसान '  कैसा रहेगा ?

Comment by कंवर करतार on April 6, 2020 at 10:38pm

समर कबीर जी आदाब ,मैं आपकी टिपणी के लिए उत्सुक था I आपके सुझाव सदैव रचना को उत्कृष्ट करते हैं I

'धरा रह जायेगा  इन्सान का कोई भी हो हथियार' की जगह 

'धरा रह जायेगा  इन्सान का हथियार हर कोई '

और 

'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब ही लोग'  की जगह 

'घरों में कैद होकर रह गया हर कोई इंसान '    कर दें तो कैसा रहेगा I

'अगर महफूज रखना है इस अपनी अहल-ए-दुनिया को

रहें हम दूर सबसे ही जो अपने यहाँ वहाँ आया'

इस शे'र  के ऊला में  इस अपनी में अलिफ़ वस्ल की छूट ले रहा हूँI हाँ, सानी में क्या 'यहाँ' को 'याँ' -2 लेना उचित रहेगा ?

  

'मईशत ठप पड़ी है लड़ते लड़ते उससे दुनिया की'

इस मिसरे को ----

'पड़ी है ठप मईशत लड़ते लड़ते उससे दुनिया की' लेने का आपका सुझाव अति उत्तम है और शिरोधार्य है I मेरी गुजारिश है कि मेरी उपरोक्त  जिज्ञासा पर अपनी टिप्पणी  जरूर दें I सादर I 

I

Comment by Samar kabeer on April 6, 2020 at 4:13pm

जनाब कंवर करतार जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,लेकिन अभी शिल्प पर मिहनत करने की ज़रूरत है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'धरा रह जायेगा  इन्सान का कोई भी हो हथियार'

'घरों में कैद होकर रह गए हैं सब के सब ही लोग'

आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि 1222 1222 1222 1222 इस बह्र में मिसरे के अंत में एक साकिन लेने की इजाज़त नहीं है,देखियेगा ।

'अगर महफूज रखना है इस अपनी अहल-ए-दुनिया को

रहें हम दूर सबसे ही जो अपने यहाँ वहाँ आया'

इस शैर के ऊला में शब्दों की तरतीब ठीक नहीं,और सानी मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।

'मईशत ठप पड़ी है लड़ते लड़ते उससे दुनिया की'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,मिसरा यूँ कर लें तो ये ऐब निकल जायेगा:-

'पड़ी है ठप मईशत लड़ते लड़ते उससे दुनिया की'

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Jul 12
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service