For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 54 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

सु्धीजनो !
 
दिनांक 17 अक्तूबर 2015 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 54 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी हैं.



इस बार प्रस्तुतियों के लिए दो छन्दों का चयन किया गया था, वे थे रोला और कुण्डलिया छन्द

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के लिहाज से अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें.

फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, ओबीओ

**********************************************************

१. आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी

रोला छंद पद
ये है मेरा ख्व़ाब, नहीं ये परछाई है
मेरे अन्दर आस, जरा सी अकुलाई है
इच्छाओं की दौड़, लगी है सच से आगे
पाकर यह आभास, हमेशा मन ये भागे

हे मन ! क्या है राज, मुझे भी बतलाओं ना?
देता हूँ आवाज, कभी दिल में आओं ना.
हो चाहे मजबूर, समय के आगे जीवन.
पा सकता हूँ आज, प्रयासों से मैं मधुबन.

मंजिल माना दूर, कठिन है उसको पाना.
हे मन! तुम हो साथ, भला फिर क्या अकुलाना.
पक्का हो विश्वास, कहा फिर वो रोते हैं
दिल ने जाना यार, इरादे क्या होते हैं

भीतर का तम हार गया है खुद से ऐसे.
भर आया उजियास, खिला मन गुलशन जैसे
दिल ने कितना आज, कहूँ क्या पाया यारों
बीत गई है रात, सवेरा आया यारों

कुंडलिया छंद
मन से मन का द्वंद है, मन में मन का राज
जड़ चेतन में है छुपी, सपनों की आवाज
सपनों की आवाज ह्रदय से जब टकराई
साया मेरा आज, उड़ा जाता है भाई
चाहत से हैरान, हुआ मन अवचेतन का
कैसा झगड़ा आज, चला है मन से मन का 

रोला छंद

तनहा तनहा आज नहीं तुम पास हमारे

यादों का वो साथ कहाँ है दिन वो प्यारे

अब तो खुद से दूर परेशां मैं रहता हूँ

कब आओगी जान यही हर दिन कहता हूँ

 

वो दिन भी है याद मज़े मस्ती की हालत

खूब कही ये बात सड़क तुम पार करो मत

लेकिन तुमने यार जरा भी ध्यान दिया ना

कितना कहता हार गया पर कान दिया ना

 

गाड़ी आई एक बचाने तुमको दौड़ा

ले आया तैयार कवच ये सीना चौड़ा

लेकिन विपदा हाय बचा खुद को ना पाया

गाड़ी ने ये पैर कुचल कर पार लगाया

 

आज सलामत खूब तसल्ली हमको यारा

लेकिन कितना दूर हुआ वो मुखड़ा प्यारा  

जीवन कैसा मोड़ मुझे ये दिखलाया है

परछाईं के पास मुझे क्यों ले आया है

*****************

२. सौरभ पाण्डेय 
मन के कोरे स्थान में रहती दुबकी आस 
उत्साहित करती वही मानव करे प्रयास 
मानव करे प्रयास, जानता यदि तन साधन 
चाहे अंग स-सीम, प्रबल लेकिन होता मन 
यही सोच का रंग सजे मन सपना बनके 
चाहे तन लाचार खोलता ताले मन के 
***************
३. आदरणीय रवि शुक्ल जी
परछाईं को देख के हुआ भ्रमित बस मौन
मेरे भीतर से भला आया बाहर कौन
आया बाहर कौन छला है जिसने जीवन
करता है उपहास करे करुणा भी क्रंदन
खुद प्रकाश को रोक करी कैसी चतुराई
करे विवशता शोक देख अपनी परछाई 
***************
४. आदरणीय गिरिराज भण्डारीजी
रोला -
है अंदर जो आग, जलेगी इक दिन वो भी
है मन में विश्वास, बचा रख गिन गिन वो भी
करवट लेगा वक़्त , उजाला फिर से होगा
वीराँ खँड़हर, देख , शिवाला फिर से होगा

हूँ तो मैं लाचार , मगर नाचे परछाई
देख उसे हर बार , जगी मुझमें तरुणाई
मै बैठा खामोश , निहाँ कुछ नाच रहा है 
उम्मीदों के हर्फ , कहीं से बाँच रहा है 

अंदर का विश्वास , हमेशा कुछ पाया है
दीवारों पर अक्स , वही बाहर आया है
इसी लिये उम्मीद जगी ली अँगड़ाई है
ज़िस्म भले लाचार , नाचती परछाई है
****************
५. आदरणीय अशोक कुमार रक्तालेजी  
दौड़ रहा है वक्त पर, थमी हुई है चाल |
पहियों पर ही बीतता, दिवस महीना साल ||

दिवस महीना साल, आस है नव जीवन की,

देखें प्रभु इक बार, पीर लाचारी तन की ॥

नहीं मिला सम्मान, नित्य बस घाव सहा है,

फिरभी ले तन आस, वक्त सँग दौड़ रहा है ||

पहियों पर है जिंदगी, मन भर रहा उड़ान |

लगता मानव स्वस्थ यह, पैर मगर बेजान ||

पैर मगर बेजान, नहीं हैं बाधा कोई,

उदित हुआ नव काल, नहीं है दुनिया सोई,
तकनीकी युग आज, साथ दे तो क्या डर है,
पैर रहें बेजान, जिंदगी पहियों पर है ||

रोला गीत
मन में है उत्साह, आज पर रूठा है तन |
बिन पैरों के हाय , हुआ है कैसा जीवन ||

टूटी है उम्मीद, घाव भी मिले नए हैं,
सारे सुख संकेत, हार कर लुढ़क गए हैं,

कुर्सी पहियेदार , लगे जस कोई बंधन,

बिन पैरों के हाय, हुआ है कैसा जीवन ||

जोड़ रहा मनु बैठ , याद के टूटे तागे,
रहा दौड़ में नित्य, जहाँ वह सबसे आगे,

वहीँ हुआ है फेल, और अब व्याकुल है मन,
बिन पैरों के हाय , हुआ है कैसा जीवन ||

फिरभी है कुछ हर्ष, शेष अब भी इस मन में,
नहीं ख़त्म है आस, जान बाकी है तन में,
कहते हैं पर प्राण, आस का थामें दामन,
बिन पैरों के हाय , हुआ है कैसा जीवन ||
*********************
६. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेयजी
कुण्डलियाँ छन्द

पहिया चेयर ठेलते ,देख रहे उस पार 
जल्दी थी किस बात की, कहो मियाँ रफ़्तार 
कहो मियाँ रफ़्तार ,काश गति धीमी रखते 
सच में करते नाच, न यूँ बस सपना तकते 
बाहर गरबा रास ,सोच में अन्दर भइया
कब छोड़ेगी साथ, हाय ये चेयर पहिया 

नाता उससे जोड़ लूँ,अब निश्चय के साथ 
शीशे के उस पार से, हिला रहा जो हाथ 
हिला रहा जो हाथ ,नहीं मेरी परछाईं 
है वो मेरा जोश ,कहे चेयर को बाई 
आता हर दिन पास ,कान में कह के जाता 
मन में पक्की ठान, झटक चेयर से नाता 

रोला छन्द 
आस कहे हर बार, चला आ तुझे पुकारूँ
शीशे के उस पार, खड़ी मैं तुझे निहारूँ 
देर नहीं कर आज, खड़ा हो हिम्मत करके 
निश्चय का ले साज, पैर ये फिर से थिरके 
**************
७. आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी 
कुण्डलिया छंद :
सुनकर डॉक्टर साब की, ऊँची भरूं उड़ान ।
करके अच्छी कामना, ले लूं मैं मुस्कान ।।
ले लूं मैं मुस्कान, जियूं जीवन मैं ऐसा ।
तजकर लघुतर भाव, रहूं ख़ुद्दार हमेशा ।।
कहें 'शेख़' कविराय, दिखाऊंगा कुछ बनकर ।
कुण्ठित मन को त्याग, चलूं मैं दिल की सुनकर ।।

(संशोधित)
*************
८. आदरणीया राजेश कुमारीजी  
कुण्डलिया
छाया के इस रूप में ,मेरा आज अतीत||
कुर्सी पहिया दार पर ,जीवन करूँ व्यतीत|
जीवन करूँ व्यतीत ,कलेजा फटता मेरा|
कितना हूँ लाचार, दिखे हर ओर अँधेरा||
देख कटी परवाज़ ,बिलखती है ये काया|
नये दिखाती ख़्वाब,भीत की अद्भुत छाया||

रोला छंद 
पाखी मन है मौन ,पंख बिन जीवन भारी 
गुम-सुम सा है व्योम ,देख उसकी लाचारी 
पैरों से लाचार ,हुआ है बोझिल तन से
उड़ता पंछी देख ,तड़पता भीतर मन से

कभी पुरानी याद ,नीर आँखों में लाये
खड़ा सामने वक़्त,नया उत्साह जगाये
कभी रहा मन सोच,बेबसी अपनी भूलूँ 
दोनों पंख पसार,उडूँ अम्बर को छू लूँ

जीवन है इक जंग ,जीतनी है हिम्मत से
मन में हो जो चाह,निकलता पथ पर्वत से 
मन मंथन की नित्य ,उभरती मन पर छाया
दिल में हो विश्वास,साथ तब देगी काया 
*********************

९. आदरणीय सचिन देवजी  

कुंडलिया

करता मन में कल्पना, देख भागती छाँव
बिना सहारे के चलूँ, सरपट अपने पाँव
सरपट अपने पाँव, प्रेरणा देती छाया
अपने भीतर देख, दौड़ता है इक साया
मुख पर है मुस्कान, नही ये आहें भरता
मैं भी भरूं उड़ान, यही प्रण मन में करता

लगता घायल कर लिये, अपने दोनों पैर
मजबूरी मैं कर रहे, इस गाडी से सैर
इस गाडी से सैर, कहे कुर्सी का पहिया
थम जायें गर पैर, मगर तू रुक न भईया
टूटे मन का जोश, बड़ी मुश्किल से जगता
जाग उठा है आज, मगर है ऐसा लगता

(संशोधित)
***************
१०. आदरणीय गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी 
कुण्डलिया 
मेरा कोई पाप या फलित हुआ कुछ शाप
व्हील चियर में  जिन्दगी  सचमुच है अभिशाप 
सचमुच है अभिशाप डराता अन्तश्चेतन
लिए रूप साकार खड़ा मेरा अवचेतन
कहते हैं 'गोपाल' साइको  मन का फेरा 
इसने छीना चैन हाय ! मानस का मेरा

(संशोधित)

रोला
मै हतभाग्य अपंग देखता उसकी छाया
जो खिड़की के पार दिखाने निज बल आया
बहुतेरे बलबीर इस तरह हंसी उड़ाते
हो जाते जब वृद्ध अंततः वे पछताते
******************

११. आदरणीय सुशील सरनाजी

रौला छंद
साया रहता साथ, श्वास जब तक होती है
जीने की हर आस, जीव का दृग मोती है
रुके न जीव पतंग, डोर, बिन नभ छू आये
सुख दुःख का हर रंग, जीव सँग चलता जाये

साये का अस्तित्व, प्रकाश संग होता है
हँसता रोता जीव,कहां साया रोता है
काया में ये सांस, ईश की ही माया है
बिन काया निर्मूल ,जीव का हर साया है

(संशोधित)
*******************
१२. आदरणीय जयनित कुमार मेहता ’जय’ जी
रोला छंद~
मन की सुन ले बात,दुखी मत हो तू प्यारे!
मन में हो विश्वास, जीतते तन के हारे!!
रस्ता है आसान, अगर मंज़िल है पाना!
कर लो निश्चय दृढ,न करना हाँ-ना हाँ-ना!!
**************************************

१३. आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवालाजी 
कुण्डलिया छंद
मन की इच्छा पूर्ण हो, अगर करे संकल्प,
कठिन लक्ष्य जो साधते खोजे कई विकल्प |
खोजे कई विकल्प, रखे यदि नेक इरादे
मन से क्यों लाचार, बदन बैसाखी लादे
पूरा हो संकल्प, करे जो काम जतन से,
होता नहीं निशक्त, पूर्ण हो सपने मन से |

निशक्त देख परछाई, हुआ स्वयं ही दंग
सबके वाहन रोकता, कहता कौन अपंग |
कहता कौन अपंग, होंसला उसका भारी
पहिया चूड़ीदार, यही उसकी लाचारी
कह लक्ष्मण कविराय, तन न चाहे हो सशक्त
उसके लगते पंख, रखे जो जज्बा निशक्त |

***********************

१४. पंकज कुमार मिश्रा ’वात्स्यायन’

रोला

सुन ले ओ अनिरुद्ध, पाँव मेरे हैं निर्बल।
लेकिन मन मज़बूत, वही है मेरा सम्बल।।
मन के हारे हार,जीत मिलती है मन से।
लेकर यह विश्वास, लड़ रहा मैं जीवन से।।

पथ में बाधा लाख, भले आ जाये लेकिन।
लक्ष्य सुंदरी साथ, यहाँ आयेगी इक दिन।।

Views: 2794

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ सर आयोजन की सफलता हेतु हार्दिक बधाई एवं त्वरित संकलन हेतु हार्दिक आभार. सादर 

अपनी प्रथम प्रस्तुति की त्रुटियों में संशोधन हेतु यथाशीघ्र निवेदन करता हूँ. सादर 

आदरणीय पंकज जी द्वारा आयोजन की अंतिम प्रस्तुति के रूप में डेढ़ रोला छंद प्रस्तुत किया है. यह प्रस्तुति संकलन में सम्मिलित नहीं हो पाई है.आयोजन में सहभागिता एवं प्रस्तुति हेतु आदरणीय पंकज जी को हार्दिक बधाई 

आपसे मिला उत्साह वर्द्धन तत्पर रखता है, आदरणीय मिथिलेशजी. 

हार्दिक धन्यवाद 

//अंतिम प्रस्तुति के रूप में डेढ़ रोला छंद प्रस्तुत किया है. यह प्रस्तुति संकलन में सम्मिलित नहीं हो पाई है //

जी देखता हूँ. वैसे, अंतिम क्षणों में रचना पोस्ट करने का मुझे औचित्य समझ में नहीं आया. ऐसा रचनाकारों की व्यस्तता के कारण भी हो सकता है जहाँ आयोजन में सहभागिता प्रेरित करती है. 

लेकिन हम संचालकों की दुविधा को समझ सकते हैं 

 

कोई बात नहीं सर; बस अच्छा लगता है कि इस प्रतियोगिता में सहभागी हो सकूं। पहली रचना दोहा थी; इसलिए ख़ारिज हो गयी। रोला जल्दी जल्दी लिखा गया, आगे से समय से उपस्थिति दर्ज होगी।
सादर अभिवादन
वाह !!!! संकलन भी तैयार है । बधाई इस सुंदर और सुखद आयोजन सहित इस संकलन के लिए भी आदरणीय सौरभ सर जी । धीरे - धीरे इन आयोजनों से बहुत कुछ सीखना मेरा जारी है । आयोजन रूपी समंदर के बाद अपने दोनों मुट्ठी में ज्ञान के मोती से भरे होने का एहसास होता है ।यह सत्संग बडा फलदायी है हम सब के लिए । सादर अभिनंदन मंच सहित सभी सुधीजनों को ।

आदरणीया कान्ताजी, मंच पर आयोजन वस्तुतः ऑनलाइन कार्यशाला ही होते हैं. आपको इनसे लाभ मिल रहा है यह सुनना या जानना हमारे लिए भी सुखकारी है.

सादर

आदरणीय मंच, समारोह की सफलता तथा त्वरित संकलन के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
आदरणीय प्रधान संपादक महोदय जी मेरी परिमार्जित 'कुण्डलिया छंद' संकलन में "सातवें" स्थान पर स्थापित कुण्डलिया छंद के स्थान पर प्रस्थापित करने की कृपा करियेगा। त्रुटियों के सुधारों पर पूरा ध्यान दिया है विधान सेे मिलान करके।फिर भी यदि कोई कमी हो,तो कृपया संपादित कर सहयोग करियेगा।मैं किसी भी तरह समारोह में शामिल होना चाहता था इसलिए यह प्रयास किया।सादर
भवदीय
_शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
संलग्न- परिमार्जित कुण्डलिया
**********************

कुण्डलिया छंद :

सुनकर डॉक्टर साब की, ऊँची भरूं उड़ान ।
तजकर ख़ुद लघु भावना, ले लूं मैं मुस्कान ।।
ले लूं मैं मुस्कान, जीवन जियूं मैं ऐसा ।
अपंग बने दबंग, साहस रहता हमेशा ।।
कहते हैं कविराय, शत्रु तो रहते अक्सर ।
लघु भावना जताय, ज़माने की सब सुनकर ।।

(मौलिक व अप्रकाशित)

आपके प्रयासों के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय उस्मानीजी. 

आयोजन वस्तुतः कार्यशाला का ऑनलाइन स्वरूप है. चूँकि आप लगातार नहीं बने रहे आतः आपने कई महत्त्वपूर्ण तथ्य जानने से वंचित रह गये हैं. आपको मौका मिले तो उस आयोजन के पन्ने दर पन्ने एक बार फिर देख जाइये. आपने जो संशोधन वहाँ पोस्ट किया था उस पर भी मैंने तथ्यात्मक बातें रखी थीं. 

रोला छन्द में सम चरण का प्रारम्भ त्रिकल से न हो तो लयबद्धता संभव नहीं होती. इसे आप अवश्य समझे और तदनुरूप संशोधन को देख जायें 

सादर

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी,  आप छन्दोत्सव के संकलन पर संदेश देखें. 

http://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/54-1

शुक्रिया आदरणीय जी, पुनः अध्ययन कर रहा हूँ।सादर
शुक्रिया आदरणीय जी, आज्ञा पालन करता हूँ।

प्रस्तुति के कुछ देर बाद ही कुछ पारिवारिक कारणों से भाग दौड़ आ पड़ी और मंच पर उपस्थित नहीं हो  पाई  . आप सभी की उत्साह वर्धन करती  टिप्पणियों के लिए मैं ह्रदय तल से आभारी हूँ .आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,  आपकी सकारात्मकटिपण्णी  से मन उत्साहित है  .आप सभी का पुनः आभार  व् सफल आयोजन के लिए बधाई  

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
13 hours ago
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service