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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ सातवाँ आयोजन है.   

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

21 मार्च 2020 दिन शनिवार से 22 मार्च 2020  दिन रविवार तक
 
इस बार का छंद है - 

उल्लाला छंद

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

 

एक बात और, आप आयोजन की अवधि में अधिकतम दो ही रचनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं.   

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं. 

उल्लाला छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 

21 मार्च 2020 दिन शनिवार से 22 मार्च 2020 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

सुंदर ’चित्र-चर्चा’ हुई, रोचक रचना-कथ्य भी

बंद-बंद इसका दिखे, सार्थक प्रेरक तथ्य भी ..  
आदरणीय सतविन्द्र भाई, आपकी प्रस्तुति का सादर धन्यवाद
शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ सर, सादर वन्दे, उत्साहवर्धन के लिए सादर हार्दिक आभारं।

आदरणीय सतविन्द्र भाई

गीत भी है छंद भी कथ्य चित्र अनुरूप है। करोना के वातावरण में दोपहर की धूप है॥

हार्दिक बधाई

आदरणीय अखिलेश भाई साहब सादर वंदन सह आभारं

आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करता उल्लाला छंद आधारित सुंदर गीत रचा है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी, सादर नमन सह आभारं

उल्लाला छंद - प्रथम प्रस्तुति
............................................

कहते सब नाई मगर, किस्मत की यह मार है।
पढ़ा बहुत पर क्या हुआ, शिक्षा सब बेकार है॥

यह उसका पेशा नहीं, किन्तु चाहिए रोटियाँ।
नेता सारे खेलते, धर्म जाति की गोटियाँ॥

जहाँ गया कैंची चली, भाग्य नहीं जब साथ में।

मिली नहीं जब नौकरी, कैंची उसके हाथ में॥

स्वतंत्र भारत देश में, काम न आती डिग्रियाँ।
रोज भटकते हैं सभी, लड़के हो या लडकियाँ॥

ग्राहक सब खुश हैं यहाँ, धन जीवन आधार है।
लेकिन मन कहता यही, शिक्षा जग का सार है॥

जो धन शिक्षा में लगा, उसका यहाँ हिसाब है।
सबकी कीमत जोड़िए, जितनी यहाँ किताब है॥

जन सेवा से घर चले, पर इसमें क्या खास है।
शिक्षक बनकर ज्ञान दूं, हर शिक्षित की आस है॥
...................
[मौलिक एवं अप्रकाशित ]

आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन । चित्रानुरूप बेहतरीन छन्द हुए है । हार्दिक बधाई ।

हृदय से धन्यवाद आभार आपका आदरणीय लक्ष्मणजी

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र पर सुंदर उल्लाला छंद रचे हैं आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. आपके छंद देखकर मन मन में एक शंका उठी है. क्या इसके विषम चरणों का प्रारम्भ जगण से होना उचित है ?  क्योंकि हम इसे दोहे के दो विषम चरणों की तरह मान रहे हैं. किन्तु यह एक भिन्न छंद है और इसके विधान में कहीं जगण के निषेध का कोई उल्लेख भी नहीं है. मैं यह नही कह रहा हूँ की जगण से प्रारम्भ हुआ छंद सही नहीं है. मात्र जिज्ञासा है. सादर 

आदरणीय अशोक  भाईजी

विस्तार से टिप्पणी और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।

जग़ण से मैं भी बचना चाहता हूँ पर जब कभी ऐसी नौबत आ गई तो कबीर के दोहे " बड़ा हुआ तो क्या हुआ" की याद आ जाती है।

सादर

’स्वतंत्र’ जैसे जगणात्मक शब्द के बाद भारत जैसे चौकल शब्द का आना जगण-दोष के परिहार का कारण बन रहा है, आदरणीय अशोक भाई जी. 

आदरणीय अखिलेश जी ने सही कहा, बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसा वाक्यांश या चरण इसका सटीक उदाहरण है. 

सादर

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