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आदरणीय काव्य-रसिको,

सादर अभिवादन !

 

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह आयोजन लगातार क्रम में इस बार एक सौ तीनवाँ आयोजन है.   

 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ  

16 नवम्बर 2019 दिन शनिवार से 17 नवम्बर 2019 दिन रविवार तक
 
इस बार के छंद हैं - 

1. उल्लाला छंद, तथा

2. सार छंद 

हम आयोजन के अंतरगत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.

 

एक बात और, आप आयोजन की अवधि में अधिकतम दो ही रचनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं.   

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं. 

उल्लाला छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

सार छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, अन्यान्य छन्दों के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.

********************************************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 

16 नवम्बर 2019 दिन शनिवार से 17 नवम्बर 2019 दिन रविवार तक, यानी दो दिनों के लिए, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करेंआयोजन की रचनाओं के संकलन के प्रकाशन के पोस्ट पर प्राप्त सुझावों के अनुसार संशोधन किया जायेगा.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें। 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  8. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष :

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आयोजन में सुधिजनों का स्वागत है.

सादर अभिवादन..

सादर नमन, अभिवादन आदरणीय सौरभ सर

सार छंद

ज्ञान  बाँटता  सारे  जग  को,  अद्भुत  देश  हमारा
गया न लेकिन हमसे अबतक, घर को यार सँवारा।।
फुटपाथों पर  बच्चे  पलते, फिरते  नित आवारा
रेलगमन पथ है सौचालय, किन्तु स्वच्छता नारा।।

फोन लगाकर बालक कहता, सुनना बात हमारी
नित्य  देश  से  तुम  नेता  जी, करते  हो  गद्दारी।।
खा पी तुम फैलाते  नित  हो, यहाँ गंदगी सारी
हम भूखों से कहते हो क्यों, शौच हमारा भारी।।

शौचालय की सुविधा दे दो, हर झोपड़ बस्ती में
वरना हम तो शौच  करेंगे, इधर -उधर मस्ती में।।
नेता जी तुम अगर डकारो, सब कुछ ना सस्ती में
चार चाँद झट लग  सकते  हैं , भारत की हस्ती में।।

रोटी चावल महँगा लेकिन, अब है सस्ता डाटा
भूखे रह कर सेल्फी  लेना, करना  सैर सपाटा।।
यही नीति  है  सरकारों  की, लूटो, कर दो टाटा
सकल देश को हो जाये फिर, इससे बेहद घाटा।।

मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सादर नमन सह बधाई।

आ. भाई सतविन्द्र जी, सादर आभार।

 प्रस्तुत चित्र पर सार छंद की अच्छी रचना हुई है लक्ष्मण धामी जी बहुत-बहुत बधाई

आ. भाई अजय जी, सादर आभार।

किट-किट पिट-पिट किटर-पिटर में

बचपन पूरा डूबा।

कदमों में जो फैली पिट है

लगती नहीं अजूबा।।

साधन होंगे समय बचेगा

जग ने था यह सोचा

अब साधन की करें चाकरी

नहीं देखते लोचा।

निकट खड़ा जो वह दिखता कब

बात दूर से होती

नजदीकी के मन में हरकत

बीज घृणा के बोती।

घरवाली अब कहे बिफ़र कर

बक्सा है महबूबा।

पटरी पर जीवन लाना है

पटरी, पर है सूनी

जिस पर  तजकर हर चिंता को

बाल रमाएं धूनी

सरकारी नियम-नीति होते,

इनको कहाँ खबर है

मल-चिंता सह सुख जो देती 

पक्की यही डगर है।

मस्त मलंगों की  रुत दिखती,

देखो कोई सूबा।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

बहुत अच्छी और रोचक रचना सतविंदर भाई जी बधाई हो

आ. भाई सतविंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई ।

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"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
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"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
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