For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

         रीतिकाल के आचार्य चिंतामणि ने कहा है - जो सुनि  परे सो शब्द है समुझि परे सो अर्थ  I इससे स्पष्ट होता है की सुनने और समझने के बीच कोई एक कड़ी है जो सुनने के बाद शब्द के अर्थ को व्यंजित करती है और यह कड़ी इतनी सूक्ष्म है कि  शब्द और उसका अर्थ कहने भर को पृथक है  I तुलसीदास कहते है - गिरा अर्थ जल  वीचि सम कहियत भिन्न न भिन्न I बंदौ सीताराम पद जिनहि  परम प्रिय खिन्न I  किन्तु यही सूक्ष्म अंतर वह शक्ति है जो सुनने के उपरांत उसका अर्थ स्पष्ट करती है I इसे हम शब्द शक्ति कहते हैं I  चूंकि शब्द स्वतः तीन प्रकार के होते हैं  I  अतः इसी आधार पर शक्तिया भी तीन मानी गयी हैं I

1- अभिधा      2- लक्षणा     ३- व्यंजना 

        अभिधा में शब्द  और अर्थ के बीच सीधा और सहज  सम्बन्ध होता है I इसीलिये शब्द के ध्वनित होते ही उसका अर्थ प्रायशः स्पष्ट  हो जाता  है I जैसे यदि हम गाय कहें तो तत्काल  हमारे मस्तिष्क में  एक चिर परिचित घरेलू व पालतू पशु  का चित्र अंकित हो जाता है  I  अभिधा शब्द शक्ति के भी तीन प्रकार हैं -

1- रूढि        2- यौगिक       ३- योग रूढि

        रूढि अभिधा के अंतर्गत वे मूल शब्द आते है जिनकी व्युतिपत्ति  नहीं होती  और सामान्यतः वे जातिवाचक ,समूह वाचक या व्यक्ति वाचक संज्ञा  होते है I  जैसे- गाय , बैल , पशु , नर , सूर्य या चन्द्र I

        यौगिक अभिधा के अंतर्गत वे शब्द आते हैं जो दो या अधिक शब्दों के योग से बनते  हैं  I  जैसे- सूर्यतनया, सुधांशु आदि  I  यहाँ पर सूर्यतनया सूर्य व् तनया इन दो शब्दों के योग से बना है  जिसका अर्थ सूर्य की पुत्री अर्थात यमुना है  I सुधांशु शब्द सुधा और अंशु के योग से बना है जिसका अर्थ अमृत किरणों वाला  अर्थात चन्द्रमा है I

        योग रूढि अभिधा के अंतर्गत वे शब्द आते है जिनकी व्युत्पत्ति होती है या उनके प्रचलन में आने के पीछे कोई  कारण या इतिहास होता है  I  जलज, अम्बुज, वारिज, तोयज ,नीरज  का उदाहारण ले सकते है   I इन सबका अर्थ है  जल में रहनेवाला I  किन्तु तुलसीदास यह भी कहते है   कि - उपजहि एक संग जल माही I  जलज -जोंक जिमि गुण विलगाही  I अर्थात  जल से जोंक भी पैदा होता है  और हम यह भी जानते है कि जल से  घोंघा व् शैवाल  भी प्रकट होते हैं  I परन्तु इन सबको हम जलज , अम्बुज, वारिज, तोयज  या नीरज नहीं कह सकते  क्योंकि यह शब्द कमल के अर्थ में रूढि हो चूका है I ऐसे ही त्वरा से कुश लाने वाले के लिए प्रयुक्त होने  वाला शब्द कुशल अब दक्षता के लिए योग रूढि हो गया  है I  एक बार एक साधु  की गाय  खो  गयी I  वह गाय की खोज में भटकने लगा  I लोगो ने पुछा - महाराज , कहाँ भटक रहे है  ? साधू ने कहा गवेषणा [ गो + एषणा ] कर रहा हूँ  I  तब से गवेषणा  शब्द खोज के लिया योग रूढि हो गया I

      लक्षणा में शब्द का सीधा-साधा अर्थ नहीं निकलता I  यह वह शब्द शक्ति है जिससे शब्द के लाक्षणिक अर्थ का बोध होता है I  इसके तीन प्रमुख तत्व है -

1- शब्द के मुख्य अर्थ के ज्ञान में अवरोध

2- मुख्यार्थ व  लक्ष्यार्थ का उचित सम्बन्ध

3 -रूढि या प्रयोजन में एक का होना आवश्यक 

      रूढि मूलक लक्षणा में शब्द के मुख्यार्थ के रूढि लक्ष्यार्थ  का विचार किया जाता है I  पदमावत में मालिक मुहम्मद जायसी ने लिखा है - कवि के बोल खरग हिरवानी I  अर्थात कवि के बोल इतने खतरनाक और  मारक होते है जैसे हिरवानी  प्रदेश की बनी तलवारे I यहाँ हिरवानी शब्द खड्ग की तीक्ष्णता के लिए रूढि हो गया है  I  इसी  प्रकार सिरोही शब्द है  I  सिरोही शब्द भी एक खास किस्म की तलवार के लिए रूढि हो गया है जबकि सिरोही उस स्थान का नाम है जहां ये विशिष्ट तलवारे बनतीं थी I रूढि मूलक लक्षणा का सामान्य सा उदहारण यह भी है - जैसे  वह व्यक्ति तो बिलकुल बछिया  का ताऊ है I  यहाँ बछिया के ताऊ का अर्थ बैल है जिसका लाक्षणिक अर्थ मूर्ख व्यक्ति है I

      प्रयोजनवती लक्षणा  के अनुसार समान  शब्दों का अर्थ प्रयोजन के अनुसार बदल जाता है  I मानो किसी ने कहा -अरे अँधेरा हो गया I अब प्रयोजन की द्रष्टि से इसके निम्नांकित या अधिक अर्थ हो सकते है -

1- दिन समाप्त हो रहा है  I

2-रात होने ही वाली है I

3 -कही जाना है देर हो रही है  I

4 -देर हो गयी है अब क्या जांए I

5-काले बादल अचानक आसमान में छा गए I  सूरज  छिप गया I  

       मैथिली शरण गुप्त ने लिखा है - देख लो साकेत नगरी है यही  I  स्वर्ग से  मिलने गगन को जा रही I यहाँ स्वर्ग से मिलने गगन को जा रही का प्रयोजन महलो की ऊँचाई से है  I  अतः  यहाँ पर भी प्रयोजनवती लक्षणा है I  इसी प्रकार जय शंकर प्रसाद की कामायनी  में जो प्रलय वर्णन  है  उसमें भी - लहरें व्योम चूमती उठती , आदि पंक्तियों में लक्षणा के इसी भेद का उपयोग हुआ है  I

      प्रयोजनवती लक्षणा का फलक विस्तृत है  I  इसके भेद-विभेद निम्न प्रकार है -

1- शुद्धा  लक्षणा

2- गौडी लक्षणा

3 -उपादान लक्षणा

4 -लक्षण लक्षणा

5-सारोपा लक्षणा

6-साध्यावसाना लक्षणा

      शुदा लक्षणा में कथन का सम्बन्ध समीपता अथवा निकटता  से होता है  और मुख्यार्थ के स्थान पर लक्ष्यार्थ से ही बोध होता है  I  जैसे - वह मेरा लंगोटिया यार है  I  यहाँ लंगोट से कोई सीधा अर्थ नहीं निकलता  I  परन्तु लाक्षणिक अर्थ यह निकलता है कि हमारी मित्रता तब से है जब हम लंगोट पह्ना करते थे  I  अर्थात हमारी मित्रता बचपन से है और प्रगाढ़ है  I  अतः यहाँ पर शुद्धा  लक्षणा है I

     गौडी लक्षणा में गुणों के आधार पर लक्ष्यार्थ का बोध होता है  I सीधे-साधे हम कह सकते है कि जहाँ पर उपमा अलंकार  हो  वहा गौडी लक्षणा संभावित है  I  अलंकार के ब्याज से हमें पता है कि उपमा में उपमेय ,उपमान , वाचक शब्द और धर्म  यह चार अंग होते है  I  तभी पूर्णोपमा होती है और  एक दो अंग न हो तो लुप्तोपमा होती है  I परन्तु गौडी लक्षणा में धर्म की समानता आवश्यक है  I  जैसे - सीता का मुख कमल सदृश  है  I  यहाँ मुख और कमल की समानता  सौन्दर्य और कमनीयता से है  I अतः यहाँ पर गौडी लक्षणा है  I

      उपादान लक्षणा में मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ दोनों की सत्यता का बोध होता है I  जैसे - लाठिया  चल रही हैं  I  यहाँ मुख्यार्थ भी सत्य है  और लक्ष्यार्थ का भी बोध हो रहा  है कि  दो दलो में किसी बात को लेकर जबरदस्त माँर-पीट चल रही है जिसमे कोई घायल हो सकता है या मर सकता है  I

         लक्षण लक्षणा में मुख्यार्थ से कोई बोध नहीं होता I इसमें अर्थ-बोध शब्द के लक्ष्यार्थ से होता है I  जैसे-

                 जल को गए लक्खनु  है लरिका परिखौ पिय छांह घरीक ह्वे ठाढ़े I

                 पोंछि   पसेयू   बयारि   करों   अरु    पायं   पखारौं   भूभुरि   डाढ़े I

                 तुलसी  रघुनाथ  प्रिय श्रम  जानिकै  बैठ बिलम्ब  लौ कंटक काढ़े I

                 जानकी  नाह  को  नेह लख्यो   पुलक्यो तन  वारि विलोचन बाढ़े  I

       उक्त पंक्तियों में सीता राम से कहती है कि लक्ष्मण पानी लेने केलिये गए हैं  और वे अभी बालक है  तो थोड़ा रूककर उनकी प्रतीक्षा कर ली जाय तब तक मै आपका पसीना पोंछ दू  और धूल दग्ध गरम पैरोको धुल दू I यहाँ लक्ष्यार्थ यह है की सीता स्वयं थकी हुयी हैं , परन्तु वे अपनी स्थिति प्रकट नहीं करना चाहती क्योंकि इससे से प्रिय को दुःख होगा  और अयोध्या से चलते समय जो उन्होंने वन के सारे दुखो को सहन करने का  दावा किया था वह कमजोर होगा किन्तु राम इस लक्ष्यार्थ को समझते हैं और कांटा  निकालने के बहाने देर तक बैठे रहते है I  अब काँटा निकालने के लक्ष्यार्थ को सीता समझ जाती है और प्रिय के इस प्रेम को देखकर उनके प्रेमाश्रु निकल आते है I

    सारोपा लक्षणा  रूपक अलंकार की योजना में होती है  I इसमें उपमेय और उपमान में भेद नहीं प्रतीत होता  I  जैसे-

                  मुख-कमल  समीप  सजे थे

                  दो किसलय इन पुरइन के  I

   उक्त उदहारण में जयशंकर प्रसाद  ने नायिका के कानो का सुन्दर लाक्षणिक वर्णन किया है I  वैसे तो मुख कमल में भी सारोपा लक्षणा  है परन्तु दो किसलय अर्थात कमल के पत्ते यहाँ नायिका के कर्ण की तुलना में है और दोनों में विभेद नहीं है I सुग्रीव कहता है - मै जो कहा रघुवीर कृपाला I बंधू न होय मोर यहू काला I  इस   अपन्हुति अलंकर में बंधु  पर  काल  का  आरोप है I दोनों में विभेद कहा है  I सुग्रीव को भाई नहीं दिखता  I उसे भाई में अपना काल दिखता है I  यह सारोपा लक्षणा है  I

       साध्यावसाना लक्षणा में  श्लेष -प्रतीक जैसी स्थिति होती है  I इसमें उपमेय और उपमान दोनों एक ही शब्द में निहित होते है I अध्यवसान  का अर्थ ही वह स्थिति है जहां प्रकृति व् अप्रकृति एक दुसरे में लींन  हो जाती है I  इसमें मुख्यार्थ काल्पनिक और लक्ष्यार्थ वास्तविक होता है I  साध्यावसाना लक्षणा का उदहारण निम्न प्रकार है -

       अब आया है शेर मैदान में अभी तक तो सब गीदड़ आये थे I

    उक्त उदहारण में शेर शब्द में किसी वीर और साहसी  पुरुष का और गीदड़ में  निर्बल और कायर मनुष्यों का अध्य्वासन है  I  अतः यहाँ पर साध्यावसाना लक्षणा है I

      व्यंजना  शब्द का संधि विग्रह है - वि+अंजना अर्थात विशेष प्रकार का अंजन I  जैसे अंजन आँखों की सुरक्षा और सुन्दरता के लिए  उपयोगी है, उसी प्रकार शब्दार्थ की सुन्दरता के लिए व्यंजना शब्द शक्ति का प्रयोग किया जाता है I इसका आश्रय तब लिया जाता है जब अर्थ-बोध अभिधा  और लक्षणा द्वारा संभव न हो I  लक्षणा में जिस प्रकार मुख्यार्थ के साथ  लक्ष्यार्थ का होना आवश्यक है  I उसी प्रकार व्यंजना मे मुख्यार्थ के साथ व्यंग्यार्थ का होना आवश्यक है  I व्यंजना की विशेषता यह है कि यह न तो अभिधा की भांति केवल शब्द पर निर्भर है और न लक्षणा की भांति अर्थ पर  I अपितु यह शब्द और अर्थ दोनों पर निर्भर करती है  I इसीलिये व्यंजना का बड़ा महत्व है और हिंदी का प्रभूत साहित्य इस शब्द शक्ति के कारण ही अधिकाधिक मार्मिक और ह्रदयस्पर्शी हुआ है  I इसके दो प्रमुख भेद है -

1- शाब्दी व्यंजना          2- आर्थी व्यंजना

            शाब्दी व्यंजना  में व्यंग्यार्थ शब्द में निहित होता है  I  जैसे-

                             चिरजीवो जोरी जुरै  क्यों न सनेह गंभीर  I

                             को घटि ये वृषभानुजा  वे हलधरके वीर I I

    बिहारी के उक्त दोहे में वृषभानुजा यानि कि वृषभानु की पुत्री अर्थात राधा  और हलधर यानि बलराम के वीर  अर्थात् भाई  कृष्ण की जोड़ी  बनाई गयी है, परन्तु व्यंगार्थ में  वृषभानुजा का अर्थ  वृषभ की अनुजा अर्थात गाय और हलधर अर्थात बैल का भाई यानि बैल के अर्थ में गाय और बैल की जोड़ी बनाई गयी है I यह व्यंग्यार्थ ही इस दोहे की जान है I शाब्दी व्यंजना  के भी दो भेद है -

1-अभिधामूलक शाब्दी व्यंजना      2-   लक्षणामूलक  शाब्दी व्यंजना 

                           कमला थिर न रहीम  कह यह जानत सब कोय I

                           पुरुष  पुरातन  की  बधू  क्यों  न  चंचला  होय II  

         उक्त दोहे का प्रथम अर्थ अभिधा  से यह निकलता है कि लक्ष्मी स्थिर नहीं रहती , यह सब कोई जानता है I वे पुरातन पुरुष अर्थात विष्णु की अर्धांगिनी है I  इसलिए वह चंचला  अर्थात लक्ष्मी हैं I परन्तु अभिधा से ही एक दूसरा अर्थ यह भी निकलता है कि पुरातन पुरुष अर्थात बूढ़े व्यक्ति की लक्ष्मी जैसी सुन्दर और युवा  पत्नी चंचल चित्त वाली क्यों नहीं होगी ?

         लक्षणामूलक  शाब्दी व्यंजना में किसी प्रयोजन विशेष से लाक्षणिक शब्द का प्रयोग किया जाता है  I  यथा-

                                             है वरुणा  यहाँ  यही पर असी I

                                              गंगा नदी पर है  काशी बसी II

        यहाँ पर गंगा नदी पर काशी  के बसने का प्रयोग लाक्षणिक है , परन्तु व्यंग्यार्थ यह है कि काशी गंगा नदी  के तट  पर अवस्थित है I  अतः यहाँ पर लक्षणामूलक  शाब्दी व्यंजना है I

        आर्थी व्यंजना में  साधारण कथन में अभिधा और लक्षणा से अचानक ही कोई व्यंग्यार्थ  बोध उत्पन्न होता है  I जैसे-                                      अँधेरा भी है और एकांत भी है I

                                              प्रिय मन थोडा अशांत भी है  I

                                              ठहर  सको  तो  रुको जरा सा

                                              जाना  जरूरी  नितांत  भी  है   I

       उक्त उदहारण में नायिका  नायक से कहती है  इतना सुन्दर मिलन का अवसर है  और तुम्हारा जाना क्या इतना जरूरी है  ? इसमें शाब्दिक कथन भाव कथन से भिन्न है  i व्यंग्यार्थ के रूप में इसमें प्रणय निवेदन छिपा हुआ है  I  अतः  यहाँ पर आर्थी व्यंजना है  I

 

 

 

 

 (मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

 

 

Views: 8637

Replies to This Discussion

आदरणीय डॉ गोपाल जी बहुत उपयोगी ,ज्ञानवर्धक आलेख सीखने समझने लायक आपका बहुत बहुत आभार कि आपने यह उपयोगी जानकारी यहाँ साझा की आजकल समयाभाव और लोगों की रूचि की कमी होने से इससे हम वंचित रह जाते हैं माह की सर्व श्रेष्ट रचना से सम्मानित इस रचना के लिए बधाई 
भ्रमर ५

आदरणीय  भ्रमर जी

आपने रचना हेतु समय दिया i पसंद किया i आपका शत-शत आभार i   

डॉ गोपाल नारायन जी,
वैसे तो मैं हिंदी केवल अ. भा . भाषा के रूप में ही पढ़ पाया क्योंकि अंगरेजी माध्यम था मेरी पढाई का.
लेकिन मेरे बहुत से मित्र हिंदी छात्र थे और वे बड़ी -बड़ी ,सुन्दर कवितायें लिखा करते थे और एक झोंपड़पति के चाय दूकान में हम सब शाम को जमा होकर कविताये सुनते और एक दूसरे की खिचाई किया करते. बाद में उनमे अधिकांश मित्र हिंदी के प्रोफेसर,प्रिंसिपल,हो गए.कुच्छ ने कवि सम्मेलनों में धूम मचाई.बाकी रही मेरी सचाई- जुम्मन मिआं के पिता की रकाबी मलते- मलते अलगू भी चौधुरी हो गया.
अपने मित्रों से अभिधा , व्यंजना , लक्षणा सुनता था पर समझ नहीं पाता था.आपके इस आलेख ने तो "गागर में सागर" की तरह सब स्पष्ट कर दिया.हार्दिक आभार स्वीकारें.

आदरणीय विजय प्रकाश जी

सर्व प्रथम आपको  आभार की आपको रचना पसंद आई  i  जहा तक पढा और समझा,  मैंने यही जाना कि साहित्य की अभिरुचि जन्मजात होती है i मेरी एक कविता है - 

                                    शब्द व्यायाम से गीत बनते नहीं

                                                    वेदना के बिना व्यर्थ अनुराग है i

                                    गीत तो आंसुओ में ढले है सदा

                                                    यदि हृदय में प्रबल आग ही आग है i

और वह आग तो आप में है  फिर पछतावा कैसा ?

      

कहते सुनते तो सभी हैं, पर इस आलेख में गुणने की आपकी क्षमता का मैं कायल हूँ आदरणीय,  बधाई भी स्वीकारें..

आदरणीय विजयजी

आपके इस दुलार का अभारी हूँ i

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
गहन सुस्पस्ट विस्तृत जानकारी पढकर बहुत अच्छा लगा |लगा जैसे क्लास में हूँ |

सादर नमन आदरणीय विस्तृत जानकारी हेतु ....

आदरणीय छाया जी

सादर आभार .

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, शब्द शक्ति पर बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख के लिए हार्दिक आभार 

ये आलेख न पढ़ते तो हम सच में बछिया के ताऊ रह जाते.

एक निवेदन है यदि पैराग्राफ के बीच थोड़ा स्पेस हो तो पढने में सहजता होगी. सादर 

आ० वामनकर जी

आपका बहुत बहुत आभार .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
16 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
17 minutes ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
4 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
7 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
23 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service