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बोल चिरैया (बाल-गीत) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

बोल चिरैया बोल चिरैया, कितने घर खो आयी,
दाना-पानी बच्चों ख़ातिर, कितने घर हो आयी।

बोल चिरैया बोल चिरैया, कब रोज़े रख पायी,
कब सहरी, अफ़तारी होती, कब मस्जिद हो आयी।

बोल चिरैया बोल चिरैया, मेलों में क्या पाया,
इतराते इन्सानों में क्या, तरु कोई टकराया।

बोल चिरैया बोल चिरैया, साथी ढूंढे कितने,
कितने ज़िंदा, कितने मुर्दा, कितने देखे फ़ितने।

बोल चिरैया बोल चिरैया, कलयुग कितना भाया,
दूर-दूर अपनों से होकर, ख़ुद को बस बहलाया।

बोल चिरैया बोल चिरैया, दुनिया कैसे बिख़रे,
आसपास बस जंगल बिखरें, सबका जीवन निखरे।


[मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित]

[सार-छंद पर आधारित]

__शेख़ शहज़ाद उस्मानी
शिवपुरी म.प्र.
(२५/०५/२०१६)
_________________________________

कठिन शब्दार्थ :

[1]- तरु = पेड़, वृक्ष
[2]- फ़ितने = अचानक होने वाले उपद्रव, बग़ावत, विरोध आदि।
[3]- रोज़े = उपवास (मुस्लिम समाज के)
[4] - सहरी = रोज़ा रखने हेतु सूर्योदय से पहले लिया जाने वाला अल्प आहार
[5] - अफ़तारी = रोज़ा समाप्त करने हेतु सूर्यास्त के बाद लिया जाने वाला आहार
__________________________________

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Replies to This Discussion

बहुत खूब आदरणीय शहजाद भाई | 

बोल चिरैया बोल चिरैया, कलयुग कितना भाया,
दूर-दूर अपनों से होकर, ख़ुद को बस बहलाया।

बोल चिरैया बोल चिरैया, दुनिया कैसे बिख़रे,
आसपास बस जंगल बिखरें, सबका जीवन निखरे। बहुत खूब | हार्दिक बधाई भाई | 

बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

रचना पर समय देकर अपनी राय से अवगत कराने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब श्याम नारायण वर्मा जी और आदरणीया कल्पना भट्ट जी।

आदाब। विगत वर्ष समापन तक मेरी इस रचना पर लगभग 234  सम्मानित सुधी सदस्यगण उपस्थित हुए। इस हौसला अफ़ज़ाई हेतु आप सभी को तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया। नववर्ष की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं।

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