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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक ३०

परम आत्मीय स्वजन,

 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के ३० वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है|इस बार का तरही मिसरा मुशायरों के मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है| तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....

 

"रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है "

२१२२ ११२२ ११२२ २२

फाइलातुन फइलातुन  फइलातुन फेलुन 

(बह्र: रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन.)
 
रदीफ़ :- करती है 
काफिया :- अर (दर, घर सफर, सिफर, ज़हर, ज़बर, नगर, इधर, उधर आदि)
विशेष:
अंतिम रुक्न मे २२ की जगह ११२ भी लिया जा सकता है| हालांकि इस रदीफ मे यह छूट संभव नहीं है| 

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ दिसंबर दिन  शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० दिसंबर  दिन इतवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा | 

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम ५ और ज्यादा से ज्यादा ११ अशआर ही होने चाहिएँ.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.  
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये  जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी. . 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  २८ दिसंबर दिन  शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें | 


मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies to This Discussion

आप सभी का स्वागत है ।

आपका इस्तकबाल करते हम भी आनन्द में हैं .. :-))))

जय होऽऽऽऽ

jay ho

जय हो , जय ओ बी ओ

आदरणीय मंच संचालक महोदय,

एक निवेदन है, यदि कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ भी हर ग़ज़ल के नीचे लिख दिए जाए,तो ग़ज़ल समझने में आसानी होगी, नहीं तो मुझ जैसे सामान्य पाठक तो कुछ का कुछ और ही अर्थ समझ बैठेंगे . सादर.

आपकी अपेक्षा और तदनुरूप अनुरोध में मंच के सभी पाठकों का स्वर मुखरित है, डॉ.प्राची.  लेकिन इसी के समानान्तर एक बात और है, कि कठिन शब्द सदा ही सापेक्ष हुआ करते हैं. जो शब्द अर्थ के संदर्भ में आपको सरल लगते हैं, वही मुझे कठिन लग सकते हैं.  किन्तु, रचना में प्रयुक्त अप्रचलित या आंचलिक शब्दों के मायने तो रचनाकार दे ही सकते हैं, ताकि रचना की पहुँच बढ़ जाय.

हमसब का यह प्रयास रहता है कि रचना में प्रयुक्त कम प्रचलित या आंचलिक शब्दों के मायने यथासंभव दे दिया करें. हाँ, यह कभी-कभी होने से रह जाता है.

यक़ीनन आपकी बात सही है ......प्रयास करते हैं ....

हम जैसे सामान्य पाठक की भी यही अपेक्षा है.

dr prachi ji ki baat se sau feesdi etafaaq karta hoo ,,,exactly mera bhi yahi manna hai 

हालिया दौर की विसंगतियों पर एक मुसलसल ग़ज़ल प्रस्तुत है.. सुधी पाठकों के विचारों का आकांक्षी

हर दरिन्दे के कयासों को ज़बर करती है
हाँ, निग़ाहों की असमता ही कहर करती है ॥१॥

खूब दावा कि उठा लेंगे ज़माना सिर पे
हौसला पस्त हुई बात मग़र करती है ॥२॥

मोमबत्ती लिए लोगों के जुलूसों में भी
दानवी भूख कई आँखों में घर करती है ॥३॥

ये कहाँ सच है कि रेतों में नमी ही दोषी
रेत सूखी भी रहे जान दुभर करती है ॥४॥

जो न मरती है न जीती है, सुनो, वो औरत
बेहया काठ सी बस उम्र गुज़र करती है ॥५॥

ज़र्द आँखों की ज़ुबां और कहो क्या सुनता
शर्म वो चीज़ है, ऐसे में असर करती है.. ॥६॥

हालिया दौर में बेटी के पिताओं की हर
रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है ॥७॥

शह्र के ज़ब्त दरिन्दों में है वो शातिर भी
गाँव में एक, खुली माँग सँतर करती है ॥८॥

Waah waah Sir ji............

Mahaul ke hisaab se kahi ghazal............ Kya kahne........ har ek sher apne aap me bahut gahare mayane rakhta hai........... Badhai sweekar karen............

आपका अनुमोदन मुझे अपार संतोष दे रहा है, हरजीत सिंह जी.  परस्पर सहयोग यों ही बना रहे.

सधन्यवाद

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