For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 29 (Now closed with 846 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर वन्दे.

 

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 29 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले 28 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 28 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.

फागुन का महीना बसंत ऋतु के रंग-वैविध्य से अनुप्राणित हुआ नयनाभिराम रंगीनियों से संतृप्त होता है. तभी तो चित्त की उन्मुक्तता से भावोन्माद की पिनक-आवृति खेलने क्या लगती है, सारा वातावरण ही मानों मताया हुआ प्रक्रुति के विविध रंगों में नहा उठता है ! लोहित टेसू के वाचाल रंगों, पीत सरसों के मुखर रंगों, निरभ्र नील गगन के उद्दात रंगों से प्रमुग्ध धरा नव कोंपलों की अनिर्वचनीय हरीतिमा से स्वयं को सजाती-सँवारती हुई ऊषा की केसरिया संभावना तथा निशा की चटख उत्फुल्लता से आकंठ भरी सहसा सरस हो उठती है. 

इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होती है. ऐसे अद्भुत रंगीन समय में आयोजित हो रहे काव्य-महोत्सव का शीर्षक और क्या हो सकता है.. सिवा रंग होने के !!

इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक - 29

विषय - "रंग"

आयोजन की अवधि-  शुक्रवार 08 मार्च 2013  से रविवार 10 मार्च 2013 तक

ऋतुराज की यह रंगों पगी उद्विग्नता है कि यौवन की अपरिमित चंचलता मन्मथ की अनवरत थपकियों से उपजी जामुनी जलन को झेले नहीं झेल पाती.. अह्हाह ! बार-बार झंकृत होती रहती है !... .  तभी तो वसुधा के अंगों से धानी चुनर बार-बार ढलकती दिखती है... . तभी तो अरुणाभ अंचल में हरी-हरी पलकें खोल रही वसुधा की कमनीयता अगड़ाइयों पर अँगड़ाइयाँ लेती दुहरी हुई जाती है.. . तभी तो यौवना देह की रक्तिम गदराहट और-और गहराती हुई कमसिन दुधिया-दुधिया महुआ के फूट रहे अंगों की फेनिल सुगंध से आप्लावित हो उठती है... . तभी तो मत्त हुए कृष्ण भ्रमरों को आम्र-मंजरों के रस की ऐसी लत लगी होती है कि वे बौराये-बौराये डोलते फिरते हैं... तभी तो.. तभी तो.. चन्दन-चन्दन अनंग के पनियाये तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्र और-और मारक हुए मुग्धा को विवस्त्र किये जाते हैं !... .

तो आइए मित्रो,  उठायें हम अपनी-अपनी कलम और दिये गये विषय को केन्द्रित कर दे डालें अपने भावों को एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति !  बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है. साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना : OBO लाइव महा उत्सव अंक- 29 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 मार्च -13 दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय (Saurabh Pandey)
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 15334

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जी आदरणीय  Saurabh Pandey जी! मै अभी सीखने के क्षेत्र में हूँ और अपने आपको भाग्यशालिनी मानती हूँ की यहाँ आप जैसे तार खींच कर कसाव करने वाले विद्वानों के बीच में हूँ। बस कृपा दृष्टी बनाये रहिये। सधन्यवाद 
सादर  वेदिका

पिचकारी की धार की तरह रंग की धार धीरे धीरे देर तक मन को रंगती रही...

इस सुंदर रचना के हेतु  बहुत बहुत बधाई आदरणीया वेदिका जी:

मुठी भर गुलाल लो

दुश्मनी पे डाल दो

हुयी बैर प्रीत, बुरा;

मानो नही यह नारा

 

सुन्दर भाव युक्त रचना...

बौर भरीं साखें है

नशे भरी आँखें है

होली की ठिठोली में

चित्त हुआ मतवारा

आदरणीया वेदिका जी 

सादर 

गीत हो या अगीत हो 

भाव भारी प्रीत हो 

उन्मुक्त खोल दो झोरी 

आयें मनाएं होरी 

जय हो बधाई 

आदरेया वेदिका जी, होली के सारे दृश्य सजीव हो उठे हैं. आंचलिक पुट लिए सुंदर रचना के लिए बधाइयाँ....

आदरनीय संचालक जी, ओबीओ महोत्सव-२९ में के प्रथम दिन महिला दिवस पर प्रथम पुष्प खिलाने का प्रयास सादर -
 
चन्दन से मह्कायेंगे

एक रंगीन सपना अंखियों में समाया 

सुन्दर दुल्हे का मुखड़ा जब सामने आया |
शादी वाले दिन यानी "रश दे" को याद कर-
सुन्दर सलौने सपने मन में बुने -
लाल रंग की चुनरिया होगी मेरी,
सफ़ेद रंग घोड़ी पर दूल्हा आएगा,
केसरिया शेरवानी,साफे में चेहरा-
मनमोहक रंगीन माहौल में-
जीवन होगा खूब सुनहरा |
मंद मंद मन मयूर खिला,
तैयारी का चला सिलसिला,
दुल्हे से सपने में बाते होती,
रंग बिरंगी आतिश बाजी होगी |
बाराती काले,नीले,पीले, बेंगनी,
तरह तरह के रंग की पैशाक में 
मनमौजी मस्ती के रंग में |
तभी पता चला, इन दिनों-
महंगाई का हर ओर बज रहा है डंका 
सफ़ेद घोड़ी की रेट डबल है,
पालकी की "रश रेट्स" की सीमा नहीं,
बढ़िया बैण्ड, सहनाई तो देखो-
इनकी आकाशी कीमते कहर ढा रही | 
दुल्हे से मोबाइल पर चर्चा हुई-
अपने जीवन को रंगीन बनायेंगे,
रंग बिरंगी कलियाँ बिखराएंगे,
आँगन कुटी में किलकारी महकेगी,
सुन्दर लाल रंग की रंगोली होगी,
गुलाबी फूलों के महक वाले गजरे-
एक दुजें को पहनाएंगे,
और इस तरह सादगी से ही-
हम अब अपनी शादी रचाएंगे |
माता-पिता, भाई बहन के चेहरे का-
महंगाई में रंग नहीं उड़ने देंगे.
मेहँदी से कलाई को, मोगरे-गुलाब 
के फूलों से बालो के गजरे को,
मन मदिर के देव को हम -
चन्दन से मह्कायेंगे |
रंग बिरंगी राखी से हाथ को,
चमकते बिछुए,पायजब से पाँव को, 
सिंदूरी मांग पर सुनहरे लाकेट को,
सौलह सिंगार में सजायेंगे |
प्रक्रति के सभी रंगों का,
बसंत में सरसों के खेत में,
होली पर गुलाल अबीर से,
स्नेह भाव जगायेंगे |  
मद मस्त हवाओं का, 
बगिया की हरियाली का,
प्रातः की सुनहरी लालिमा का,
आपस में बतियाते, छत पर- 
चंदा की चांदनी का,
भरपूर आनंद उठाएंगे |
- - -- - - - - - - - - - - - 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

हार्दिक आभार श्री किशन कुमार जी 

बहुत खूब आदरणीय Laxman Prasad Ladiwala जी 
सादर  वेदिका .

रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार वेदिका जी 

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी:

 

दुल्हे से मोबाइल पर चर्चा हुई-
अपने जीवन को रंगीन बनायेंगे,
रंग बिरंगी कलियाँ बिखराएंगे,
आँगन कुटी में किलकारी महकेगी,
सुन्दर लाल रंग की रंगोली होगी,
गुलाबी फूलों के महक वाले गजरे-
एक दुजें को पहनाएंगे,
और इस तरह सादगी से ही-
हम अब अपनी शादी रचाएंगे |
 
बहुत ही मनमोहक!
 
बधाई,
विजय निकोर

 रचना पसंद कर होंसला अफ्जाई के लिए हार्दिक आभार आदरणीय श्री विजय निकोरे जी 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service