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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन । 

पिछले 82 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :


"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-83

विषय - "उन्माद"

आयोजन की अवधि- 8 सितम्बर 2017, दिन शुक्रवार से 9 सितम्बर 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू

सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु,  एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 सितम्बर 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें


मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आ. भाई समर जी , अभिवादन । यात्रा से लौटकर रचना पर विचार अवष्य दीजिए ।
मुहतर्मा सीमा साहिबा ,प्रदत्त विषय पर सुंदर सरसी छन्द हुए हैं मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

आदरणीया सीमा जी, आपने प्रदत्त विषय के अनुरूप बहुत बढ़िया गीत लिखा है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर 

उन्माद / गजल

न कोई बीज पत्ता या सजर उन्माद में डूबा
भला फिर क्यों तेरा सारा नगर उन्माद में डूबा ।1।

ये मजहब जो अनेकों हैं बिवादों की वजह इतनी
रही हर नीव तो सहमत शिखर उन्माद में डूबा ।2।

सदा चुनती है जनता पथ जिसे रहबर दिखाता है
रहे भेड़ो सी हालत ही वो गर उन्माद में डूबा ।3।

पलट इतिहास देखो कुछ समझ ये बात आएगी
सलामत कब थे वाशिंदे जो घर उन्माद में डूबा ।4।

किया उद्धार पुरखों का भगीरथ ने विनय अपना
जिन्हें अभिषाप था कारण सगर उन्माद में डूबा ।5।

बहुत विद्वान हूँ कहता मनुज कुछ चाँद तारे छू
तबाही द्वार पर बैठी मगर उन्माद में डूबा।6।

बदल जाएगा सदियों का सफर इतना समझले तू
'मुसाफिर' अब जो जीवन का पहर उन्माद में डूबा ।7।

मौलिक व अप्रकाशित

* राजा दशरथ के पूर्वजों में राजा सगर हुए थे।जिनके अश्वमेघ यज्ञ के समय साठ हजार पुत्र कपिल मुनि के अभिषाप से नष्ट हो गए थे ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
आ. भाई मो. आरिफ जी, अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
जनाब लक्ष्मण धामी साहिब ,प्रदत्त विषय पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
सजर--शजर, वाशिंदे --बाशिंदे
आ.भाई तस्दीक अहमद जी, उत्साहवर्धन और टंकण त्रुटियों की ओर ध्यायान दिलाने के लिए आभार ।

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रदत्त विषय पर बहुत ही खूबसूरत गजल कही है आपने. शेर दर शेर दाद औ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर.

आ. भाई अशोक जी, हार्दिक धन्यवाद ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. इस मिसरे को एक बार देख लीजियेगा-

//ये मजहब जो अनेकों हैं बिवादों की वजह इतनी// इसमें 'अनेक' को 'अनेकों' लिखना उचित है क्या? 'विवादों' सही वर्तनी है. सादर 

बोलने वाला कीड़ा

यह बोलने वाला कीड़ा

जब कंठ में उतर आता है
बोलना शुरु करके,बोलता ही जाता है
सामने वाला बोले तो इसे,
कतई न भाता है
यह अपनी हर बात पर उसकी
दाद चाहता है
कोई अकेला मिले या समूह में
यह सबको पकाता है

यह बोलने वाला कीड़ा

जब यह मंच पर आता है
आत्म मुग्ध होकर,कई बार
बस बोले ही जाता है,और
अपनी बारी के इंतज़ार में
बेचैन ख़ीजे रहते हैं,
कुछ ऐसे ही कीड़े, कईं कण्ठों के
नीचे रहते हैं
नहीं समझता उनकी पीड़ा
यह बोलने वाला कीड़ा

बस बोलता है यह,
बोल के
माप-तोल पे
इसका कोई ध्यान नहीं होता
विशिष्ट सन्देश वाहक बन
कई कानों को, जोड़ता है यह
और प्रशिक्षित करता है
खुद जैसे कईं कीड़े,
जो दिलों में दूरियाँ
बीजतें हैं

यह बोलने वाला कीड़ा

समूहों का नेतृत्व भी करता है
उनका मसीह बनने का दम भरता है
उनको लगता है यह मीठा बोलता है
पर,यह तो नफ़रत का जहर घोलता है
स्वघोषित ईश्वर यह,खुद के अपराध को
अपराध नहीं मानता
और अनेक खामोश कीड़े इसे चाहते हैं
इसके लिए सड़कों पर आते हैं,
तो सड़क औ शहर के
हालात बदल जाते हैं

यह बोलने वाला कीड़ा
बस उन्माद होता है
और उन्माद ही बोता है।

कई बार दबे-कुचले अनेक कीड़ों
की कोई परवाह करता है
खामोश रहता हुआ कोई कीड़ा
एक दम बोल पड़ता है
हक़ के लिए यह उनकी
आवाज़ बनता है
और तब भाने लगता है
यह बोलने वाला कीड़ा।

मौलिक एवं अप्रकाशित
9,9,17

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